Friday, 28 April 2017

कव्वा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूला



कव्वा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूला
 -अरविन्द केजरीवाल यानि अति महत्वकाशां का शिकारव्यक्ति-


बचपन से एक कहावत सुनते आ रहे है कि चौबे जी छब्बे जी बनने चले थे दूबे जी बनकर लौटे कुछ ऐसा ही हाल वर्तमान में श्रीमान अरविन्द केजरीवाल का हुआ था। डेल्ही की तीनों नगरपालिकाओं के हुए चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी ये और बात के वो पहली बार अपनी पार्टी का भाग्य आजमा रहे थे किन्तु उनके द्वारा लगातार दिए जा रहे अनाप- शनाप  बयानों से डेल्ही की जनता ये सोचने पर मजबूर होती दिखाई दी कि जिस व्यक्ति की क़ाबलियत को देखकर उन्होंने डेल्ही विधानसभा चुनाव में पहली बार कुल 70 28 और दूसरी बार 67 सीटें आम आदमी पार्टी को सौंपी क्या वो इसके लायक है? निश्चित रूप से केजरीवाल डेल्ही वालों की कसौटी पर खरे उतरने में नाकामयाब रहे। आख़िर ऐसा क्या हुआ कि जिस डेल्ही ने उनके लिए पलक पावंडे बिछाए थे उसी डेल्ही ने मात्र दो वर्षो में उन्हें उनकी औकात दिखा दी। केजरीवाल की वर्तमान हालात का बयां करने के लिए ये शेर सबसे उपयुक्त है।

      तुमने मुझे इस बुलंदी तक नवाज़ा क्यूँ था
गिर के मैं टूट गया कांच के बर्तन की तरह

अन्ना हजारे महाराट्र में काफ़ी लोकप्रिय हैं। वे नेता नहीं हैं किन्तु उनकी बातों को लोग गंभीरता से लेते हैं उन्हें ही लोकपाल आन्दोलन की शुरुआत का श्रेय जाता है शुरू शुरू में अन्ना हजारे के साथ सद इच्छा   से लोग इनके साथ जुड़े और डेल्ही में धरना प्रदर्शन तक किया उन्हीं लोगों में से एक अरविन्द केजरीवाल भी थे जो कि काफ़ी महत्वकांशी थे किन्तु शुरुआत में उनकी इस महत्त्वकांशा का लोग समझने में और विशेष रूप से अन्ना हजारे अन्यथा क्या कारण रहा कि जिस व्यक्ति ने अन्ना हजारे के कंधे पर चढ़कर डेल्ही के  मुख्यमंत्री का पद प्राप्त किया वही उनकी विचारधारा को आगे ना बढ़ाकर स्वमं अपनी ही विचारधारा को जिसे डिक्टेटरशिप कहाँ ज्यादा उपर्युक्त होगा सभी पर थोपने लगा और रिजल्ट सामने है। जो व्यक्ति दो वर्ष पहले तक डेल्ही वालों की पहली पसंद था वही आज उनकी दुत्कार का खा रहा है। अन्ना हजारे कभी नहीं चाहते थे कि उनके प्लेटफार्म का राजनीती के लिए इस्तेमाल हो इसलिए वो राजनैतिक लोगों से मिलते ज़रूर रहे लेकिन राजनीती से सदा उन्होंने एक हाथ की दुरी बनाकर रखी।


आम आदमी पार्टी का उद्भव 2011 में  इण्डिया अगेंस्ट करप्शन द्वारा अन्ना हजारे के नेतृत्व में चलाये गये   तथा बाद में जन लोकपाल आन्दोलन के समापन के दौरान हुआ।  चूँकि अन्ना हजारे बार बार डेल्ही जाकर इस आन्दोलन को धार दे रहे थे और कुछ लोग तत्कालीन सरकार के रवैय्ये से नाखुश थे अतएव राजनीतिक विकल्प की तलाश की जाने लगी थी। अन्ना हजारे भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आन्दोलन को राजनीति से अलग रखना चाहते थे किन्तु  अरविन्द केजरीवाल आन्दोलन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये एक अलग पार्टी बनाकर चुनाव में शामिल होने के पक्षधर थे।इसमें इनका साथ किरण बेदी भी दे रहीं थे और किरण बेदी चाहती थीं कि अलग पार्टी ना बनाकर भाजपा का साथ दिया जाये जो प्रमुख विपक्षी पार्टी थे जब कि अरविन्द केजरीवाल ऐसा नहीं चाहते थे।  19 सितम्बर 2012 को अन्ना और अरविन्द इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उनके राजनीति में शामिल होने सम्बन्धी मतभेदों का दूर होना मुश्किल है। इसलिये उन्होंने समान लक्ष्यों के बावजूद अपना रास्ता अलग करने का निश्चय किया। जन लोकपाल आन्दोलन से जुड़े प्रशांत भूषण योगेन्द्र यादव और अरविन्द केजरीवाल के साथ शुरू से खड़े रहे मनीष सिसोदिया ने 2 अक्टूबर 2012 को राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की। इस प्रकार भारतीय संविधान की वर्षगांठ के दिन 26 नवम्वर (2012) को औपचारिक रूप से आम आदमी पार्टी का गठन हुआ। इसके बाद इसी उद्देश्य के तहत पार्टी पहली बार दिसम्बर 2013 में डेल्ही विधानसभा  में झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरी।पार्टी ने चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज़ की और कांग्रेस  के समर्थन से दिल्ली में  सरकार  बनायी। अरविन्द केजरीवाल ने 28 दिसम्बर  2013 को दिल्ली के 7वें मुख्य मन्त्री पद की शपथ ली। 49 दिनों के बाद 14 फ़रवरी 2014 को विधान सभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया। तब भारत सरकार ने डेल्ही में राष्टपति शासन लगा दिया कुछ समय बाद जब पुन चुनाव हुए तो अप्रयाषित रूप से आम आदमी पार्टी ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए कुल जमा 70 में से 67 विधानसभा सीटों पर कब्ज़ा कर लिया भाजपा को जहाँ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा वहीँ सत्ताधारी कांग्रेस का डेल्ही से सूपड़ा ही साफ़ हो गया।

दिल्ली चुनाव के पहले पार्टी को कई विवादों का सामना करना पड़ा। भारत सरकार के गृहमन्त्री, सुशील कुमार शिंदे  ने पार्टी के विदेशी दान की जाँच कराने की बात कही। पार्टी ने दान राशि का सम्पूर्ण ब्यौरा पार्टी वेवसाइट पर पहले से ही सार्वजनिक होने की बात कही और अन्य राजनीतिक दलों को भी अपने चन्दे को सार्वजनिक करने की चुनौती दी।दिल्ली विधान सभा चुनाव के कुछ पहले एक मीडिया पोर्टल द्वारा आम आदमी के विधायक पद के उम्मीदवारों का स्टिंग ऑपरेशन सामने आया जिसमें उन पर ग़ैर-इमानदार होने के आरोप लगाये गये। आम आदमी पार्टी ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर स्टिंग वीडियो में कई महत्वपूर्ण भागों को काट-छाँट कर प्रस्तुत करने का आरोप लगाया और मीडिया पोर्टल के खिलाफ मानहानि की याचिका दायर की।

ये अरविन्द केजरीवाल की महत्वकाशां ही थी जिसने उन्हने डेल्ही की जनता से किये गए वादों को पूरा न कर लोकसभा चुनाव -2014 में सीधे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे डाली और डेल्ही की समस्याओं को छोड़कर सीधे बनारस मोदी के ख़िलाफ़ खड़े हो गए। नतीज़ा तो सर्विदित है किन्तु ये महाराज फिर भी नहीं माने और डेल्ही के उपराज्यपाल से जब तब लड़ते रहे और अपना मुकाबला सीधे प्रधानमंत्री मोदी से करना शुरू कर दिया गोया डेल्ही या देश की किसी भी समस्या का समाधान मोदी के विषय में अपशब्द बोलने भर से हो जायेगा। जब सभी पासे फेल हो रहे थे तो इन्हें समझ जाना चाहिए था किन्तु इन्होने फ़िर 5 राज्यों के चुनाव में दमखम ठोक दिया और इतने आत्मविश्वास से भर उठे कि पंजाब और गोवा में सरकार बनाने की क़वायद तक शुरू कर दी लेकिन जब रिजल्ट आया तो हाथों के तोते ही उड़े पाए। फिर मायावती की तर्ज पर ई वी एम् एक पक्षीय निर्णय कर रही है इल्जाम लगा दिया। इस पूरे प्रकरण में वो ये भूल गए कि अप्रैल में डेल्ही में 3 नगरपालिकाओं के चुनाव भी हैं इसलिए जब तक ये जागते काफ़ी देर हो चुकी थे। तब आनन फानन में डेल्ही की जनता को ही धमकी दे डाली कि अगर भाजपा आई तो ये हो जायेगा वो जायेगा और साथ ही ये भी बोल गए कि अगर हम हारे तो ई वी एम् के कारण ही हारेंगे और जीते तो अपने 2 वर्षो में किये गए कार्यों की बदौलत और जब 26 अप्रैल को रिजल्ट आया तो एक बार फिर आप के हाथ के तोते उड़े हुए थे। भाजपा जहाँ 182 सीटें लेकर शीर्ष पर थी वहीँ आम आदमी पार्टी को 48 ,कांग्रेस को 29 और निर्दलीय 11 सीटें हासिल हुईं।



  -प्रदीप भट्ट – 28,April,2017

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