Monday, 1 February 2016

बड़ा वही जो बड़े जैसे काम करे



“बड़ा वही जो बड़े जैसे काम करे”
    मै गुलाम रसूल देहलवी का लेख “इस्लाम के बुनियादी मूल्यों के प्रशंसक थे विवेकानंद” पढ़कर थोड़ा असमंजस मे आ गया उनका ये कहना की स्वामी विवेकानंद का मानना था कि हिंदुस्तान का भविष्य पूर्ण ,शानदार और अपराजेय तभी होगा  जब इसे वेदान्त का दिमाग और इस्लाम का शरीर मिल जाए। उन्होने “स्वामी  विवेकानंद की शिक्षा नमक पुस्तक का अंश उद्धरत किया है। जो सही भी हो सकती है किन्तु अपने आगे के लेख मे उन्होने बिना वस्तु स्थिति को समझे लिखा है कि “जैसे ही एक ब्यक्ति मुसलमान हो जाता है, इस्लाम के सभी अनुयायी किसी प्रकार का भेद भाव किए बिना उसे एक भाई के रूप मे स्वीकार कर लेते हैं ।वह किसी अन्य धर्म मे नहीं पाया जाता।अगर कोई अमेरिकी भारतीय मुसलमान बन जाता है तो उसे तुर्की के सुल्तान को उसके साथ खाना खाने मे कोई आपत्ति नहीं होगी।लेकिन इस देश अमेरिका मे मैंने अभी तक ऐसा कोई चर्च नहीं देखा जहां गोरा और हबशी कंधे से कंधा मिलाकर भगवान कि पूजा के लिए झुक सके। इसके अतिरिक्त लेख मे एक जगह विवेकानंद जी के हवाले से कहा कहा गया है कि भारत का इस्लाम किसी भी अन्य देश से पूरी तरह अलग है।कोई अशांति या फूट तभी होती है जब,अन्य देशो से मुसलमान आते हैं और हिंदुस्तान मे मुसलमानो के बीच उन लोगों के साथ न रहने का प्रचार करते हैं जो उनके धर्म के नहीं हैं। वे ऐसे मुसलमानो की आलोचना करते हैं जो मुसलमानो या गैरमुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार करते हैं।
     इससे पहले कि मैं किसी धर्म विशेष का विश्लेषण करूँ यह आवश्यक है कि थोड़ी सी जानकारी हिन्दू धर्म को छोडकर(सही समय कि प्रतीक्षा) इस्लाम और सिख धर्म  के बारे मे कुछ जानकारी शेयर कर ली जाये।
     मुहम्मद साहब (हज़रत मुहम्मद  सल्ललाहू अलैहि वसल्लम) का जन्म 570 ईस्वी मे मक्का मे हुआ था। मक्का के एक धार्मिक स्थल पर उनके परिवार का प्रभुत्व था क्यों कि अरबी लोग उस समय मूर्तिपूजक थे। उस समय वहाँ बहुतत्यत मे अलग अगल कबीलो के हुकूमत चलती थे और उनके अपने अपने देवता या भगवान होते थे। मक्का के काबे मे वर्ष मे एक बार सभी लोग एकत्र होते थे व सामूहिक पूजन मे भाग लेते थे मुहम्मद साहब ने खादीजा नमक विधवा व्यापारी से और शादी की मुहम्मद साहब ने 613 ईस्वी के आसपास लोगों को मानवता के विषय मे उपदेश देना प्रारम्भ किया और बताया की ईश्वर एक है और मूर्ति पूजा का विरोध इसी समय से प्रारम्भ किया। लोगों के विरोध स्वरूप उन्हे 622  मे मक्का छोडकर जाना पड़ा ।जिसे बाद मे इस्लाम का आरम्भ माना गया। हिजरा जब मुहम्मद साहब साहब ने मदीना के लिए प्रस्थान किया के काल से ही इस्लाम एक धार्मिक संप्रदाय के रूप मे मान्य हो गया। इसी हिजरा से इस्लामी कैलेंडर हिजरी की शुरुआत हुई। यहाँ यह उल्लेख करना आवश्यक है की उस काल मे मक्का मे यहूदी और ईसाई भी रहते थे। मुहम्मद साहब के इस काल और इसके पश्चात बहुत सारे अनुयायी बने। इसी काल मे मुहम्मद साहब ने मक्का को युद्ध मे जीत लिया।तत्पश्चात गैर मुस्लिम भी मुहम्मद साहब या उनके अनुयायियों से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म मे परिवर्तित हुए। उसी काल मे अरबों ने उत्तरी अफ्रीका और मिस्र पर विजय पताका फहराई और उसके बाद फारसी शासकों और बैजेंटाइन को हराया।उसके बाद फारस मे संघर्ष के पश्चात उन्हे विजय प्राप्त हुई। वहीं यूरोप मे वो अपनी सफलता नहीं दोहरा सके।1200 ईस्वी आते आते उन्होने भारत मे प्रवेश किया उसके बाद उन्होने भारतीय प्रायद्वीप और मध्य एशिया और मलेशिया मे विजय दर्ज की। इसके बाद उनके अनुयायियों और समर्थको को मुसलमान कहा जाने लगा। मुहम्मद साहब की मृत्यु (वफ़ात) 632 मे हुई, उस समय मुस्लिमो का कोई भी वैध उत्तराधिकारी नहीं था। इसी काल मे खिलाफ़त संस्था का गठन हुआ और उसने मुहम्मद साहब के मित्र आबु बकर को मुहम्मद साहब का वाज़िब उत्तराधिकारी घोषित किया ।
     अली मुहम्मद साहब के चचेरे भाई फ़रिक थे जिन्होने मुहम्मद साहब की बेटी फातिमा से निकाह किया पर इस सबके बावजूद उनके खिलाफ़त के समय तीसरे खलीफा उस्मान के समर्थको ने उनके खिलाफ़त को चुनौती दी और अरब मे गृह युद्ध छिड़ गया।661 मे अली का कत्ल कर दिया गया और उस्मान के एक रिश्तेदार मुयाविया ने अपने आप को खलीफा घोषित कर लिया। इसी से उमेय्य्द वंश का प्रारम्भ माना जाता है। इसी काल मे खिलाफ़त एक दूसरे को देने का रिवाज प्रारम्भ हुआ माना जाता है जो समान्यत: बाप अपने बेटे को देता रहा। यही पर अरब और उम्मयदों मे तकरार बढ्ने लगी अरबों का ऐसा मानना थे कि उम्मयदों ने इस्लाम के मूल रूप को ही बादल दिया है व उसे सांसरिकता मे ढाल दिया है तदुपरान्त उन्होने अली को ही इस्लाम का असली खलीफा समाज और उसे ही इस्लाम का असली उत्तराधिकारी माना।
        740 मे अबू नाम के फ़ारसी (ईरानी) ने उम्मयदों के खिलाफ मोर्चा तैयार किया और खोरासन (पूर्वी ईरान) मे विद्रोह कर दिया ।खोरासन पहले ही अरबों से नाराज़ थे अतएव उम्मयदों के खिलाफ उन्हे विशाल जनसमर्थन हासिल हुआ। उम्मयदों के शाही अंदाज़ और विलासिता पूर्ण जीवन ने उन्हे और भी नाराज़ कर दिया वे इसे इस्लाम के वीरुध मानते थे अतएव 749-50 मे उन्होने न केवल उम्मयदों को युद्ध मे हारा दिया बल्कि अपना एक नया खलीफा अबुल अब्बास घोषित कर दिया।चूंकि अब्बास मुहम्मद साहब के वंश का था अतएव उसने अली को फांसी पर लटका दिया इससे लोग उसके खिलाफ हो गए। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि जो लोग अब्बास पर भरोसा नहीं कर पाये वो शिया (अली और हुसैन चूंकि इस्लाम के सच्चे मानने वाले थे अतएव उनको मानने वालों को शिया कहा जाता है) बने इसलिए आज ईरान की लगभग 92 प्रतिशत आबादी शिया है। किन्तु सत्य यह भी है कि अब्बास और उसके वंशजों ने लगभग 500 वर्षो तक बगदाद को राजधानी बनाकर राज किया और  यह भी सत्य है कि उसी दौरान अब्बासियों ने इरानियों को भी साम्रजय मे भागीदार बनाया।ईरानी किसी धार्मिक ओहदे पर तो नहीं थे किन्तु वे लालित्य कालाओ मे अपना विशेष अधिकार रखते थे। उमर खय्याम ने 12वीं सदी मे पूर्वी ईरान मे ज्योतिष विद्या मे काफी नाम कमाया।एक नए पंचांग के अतिरिक्त रुबाई शैली उन्होने ही विकसित की। इसके अतिरिक्त फ़िरदौसी (1215 इसवीं ) जो की फ़ारसी कवि और रूमी थे  और 11वीं सदी मे महमूद गजनी के पिता के दरबारी थे ने सूफी विचारक इसी काल पे पैदा हुए। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि इस काल मे इस्लामी साम्रजय स्पेन से भारत तक फैला हुआ था चूंकि किसी एक के बस मे सबको रखना मुश्किल था अतएव बगदाद को सिर्फ धार्मिक हैड्क्वार्टर या मुख्यालय रखा गया और स्थानीय शासको को ही सैनिक रूप से वहाँ कि ज़िम्मेदारी निर्वहन हेतु आजाद रखा गया। पूर्वी ईरान मे सामानियों के पश्चात जहां गजनविन आजाद रहे वहीं मध्य तथा पश्चिम सलजुक तुर्क बलशाली हो गए।1258 मे मंगोलो ने बगदाद को हारा दिया और पूरे शहर मे लूटमार मचा दी, लाखो लोग मारे गए इस्लामी पुस्तकालयों को जला दिया गया यहाँ यह भी लिखना उचित होगा कि उस समय मंगोल मुस्लिम नहीं थे  किन्तु 14वीं सदी आते आते सभी तुर्क (मंगोल) मुस्लिम बन गए।

     जहां तक भारतीय उपमहाद्वीप जो कि अफगानिस्तान तक फैला हुआ था का प्रश्न है, गजनी का महमूद धीरे धीरे शक्तिशाली होता जा रहा था किन्तु भारतीय उपमहद्वीप मे इस्लाम का प्रचार और प्रसार दोनों ही अपने शैशव काल मे थे। उनकी शक्ति को गौर को शासको ने बहुत ही क्षीण कर दिया था गौर के महमूद ने सन 1192 मे तराई के युद्ध मे महान शासक पृथ्वीराज चौहान को हारा दिया था किन्तु इस युद्ध के कुछ अप्रत्याशित परिणाम हुए मोहम्म्द गौरी तो वापिस आ गया किन्तु उसने अपने अधीन गुलामो को वहाँ का शासक नियुक्त कर दिया। कुतुबुद्दीन एबाक एक ऐसा ही काबिल गुलाम था जिसने  आपे साम्राज्य की स्थापना उसी की राखी नीव पर मुस्लिमो ने लगभग 900 सालों तक मुगल राजवंश की आधारशिला के परिणाम थे।

       जहाँ भारतवर्ष का प्रश्न है 12वीं सदी मे इस्लाम धर्म का आगमन हुआ और जल्दी ही यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत मे घुल मिल गया। आज के दौर मे भारत विश्व का इकलौता ऐसा देश हैं जहाँ हज के  लिए अनुदान प्रदान किया जाता है और भारत सरकार  प्रत्येक हज यात्री पर लगभग 50 हजार खर्च करती है। यही नहीं भारत मे मुस्लिम आबादी विश्व मे तीसरी है जिनमे फारस और मध्य एशिया के मुसलमान भी शामिल हैं।पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध के पश्चात बांग्लादेश बना युद्ध से पहले भी और अब भी काफी बंगलादेशी मुसलमान भारत मे गलत तरीके से निवास करते हैं।अजीब बात ये भी है की 1947 के बाद जहाँ हिन्दू महिला ने मात्र 2.9 प्रतिशत बच्चों को जन्म दिया वहीं मुस्लिम महिलाओ ने 4.1 प्रतिशत को जन्म दिया। जहाँ हिन्दू 50 प्रतिशत से अधिक परिवार नियोजन को अपनाते हैं वही मुस्लिम मात्र 35 प्रतिशत के लगभग ही।
     यूं तो मुसलमानो मे भी जाति व्यवस्था (लगभग 35 branch)मौजूद है जिनमे प्रमुख शेख़, ख़ान,फ़कीर,पठान,जुलाहा,हांफि,जाफ़री,अंसारी शामिल हैं। इसी के साथ मुस्लिमो मे भी संप्रदाय का चलन काफी बढ़ा है।बरेली के विद्वान इमाम अहमद राजा ख़ान ने बीसवीं सदी मे एक सूफी आंदोलन प्रारम्भ किया उनका मकसद रूढ़िवादी मुसलमानो का बचाव करना था चूंकि वो बरेली से ताल्लुक रखते थे अतएव बरेलवी नाम दिया गया।चूंकि वो लोग बरसो से इस्लाम सुनियात को मानते हैं और साथ ही उनका आला हज़रत से जायदा लगाव रहा इसलिए उन्हे बरेलवी बुलाया गया ।
     बरेली के अतिरिक्त पूरे विश्व मे दारुल उलूम देवबंद (इसकी आधारशिला 30 मई 1866 को हाजी आबिद हुसैन व मौलाना कासिम न्नोतावी द्वारा रखी गई)  बहुत ज्यादा तवज्जो पाता है। दारुल उलूम देवबंद सिर्फ एक विशविद्यालय ही नहीं अपितु वहाबी विचारधारा का एक मुखी केंद्र भी है। इसी विचारधारा को मानने वालों को देवबंदी भी कहा जाता है।
     मुगलों का  भारतवर्ष पर कब्जा कई सदी तक रहा उसी दौरान मुसलमान शासको द्वारा हिन्दुओ पर बेरहमी की सारी हदें पर की जाने लगीं। चूंकि हिन्दू शासक बिखरे हुए थे इस कारण वो मुसलमान शासको का प्रतिकार पूरी गति से करने मे नाकाम रहे इसी का फायदा मुस्लिम शासको ने उठाया और हिन्दू राजाओ को आत्मसमर्पण के लिए कहा जाने लगा लिखने की आवश्यकता नहीं की मना करने पर उस राज्य की जनता के साथ साथ राज परिवार के लोगों के साथ भी बर्बरता पूर्वक व्यवहार किया गया। बूढ़ो,बच्चों और जवानो का कत्ल कर दिया गया और कन्याओ और औरतों पर अनेतिक अत्याचार किया गया। फिर भी कुछ हिन्दू राजाओ ने डटकर मुस्लिम शासको का सामना किया।


     इसी दौरान गुरु नानक देव जी का उदभव हुआ जिन्का जन्म 20 ओक्टोबर 1469 को ननकाना साहिब (अब पाकिस्तान मे है ) जिन्होने सिख धर्म की स्थापना की जिसमे सभी धर्मो के लोगों का सत्कार किया गया ।गुरु नानक देव जी का विवाह सुलखानी देवी के साथ हुआ उनके दो पुत्र हुए श्री चंद और लक्ष्मी दास। गुरु नानक देव जी देहावसान करतारपुर मे 7 सेप्टेम्बर 1539 मे हुआ। चूंकि मुस्लिम शासको द्वारा हिन्दुओ का कत्ल –ए-आम मचाया जा रहा था और जहाँगीर द्वारा सिखों पर अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा थे अतएव 1606 मे मुगल और मुस्लिमो के बीच युद्ध हुआ जिसमे सिखों के पांचवे गुरु अर्जन देव की मुस्लिम शासक जहाँगीर द्वारा हत्या कर दी गई परिणाम स्वरूप उनके पुत्र गुरु हर गोविंद ने उनकी न केवल जगह ली वरन सिख धर्म को अपनाने वालो को मूलत: योद्धा के रूप मे तैयार किया गया । उन्होने मुगलों को एक युद्ध मे परास्त भी किया।तत्पश्च्त 1665 मे गुरु तेग बहादुर गुरु बने एवम 1675 तक उन्होने सिखों का नेत्रतत्व किया। यहाँ यह उल्लेखनीय है की जब मुगल्स कश्मीरी पंडितो को इस्लाम अपनाने के लिए उन पर तरह तरह के जुल्म करने लगे। कश्मीरी पंडितो तो सारे आम फांसी पर लटकाया जाने लगा तब कश्मीरी पंडितो ने गुरु तेग बहादुर से मदद मांगी। गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितो की मात्र मदद ही नहीं की वरन उन्हे मुस्लिमो ने लड़ने के लिए प्रेरित भी किया। जिन कश्मीरी पंडितों ने प्रशिक्षण लेकर मुगलों के साथ युद्ध किया उनको “लड़ाका” कहा गया। कश्मीरी पंडितो की सहायता और उन्हे मुगल्स के विरुद्ध भड़काने के आरोप मे औरंगजेब द्वारा उन्हे फांसी पर लटका दिया गया।
     सिखों के अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर 1666 मे पटना (बिहार) मे हुआ था उनका बचपन का नाम गोविंद राय सोढ़ी था वे गुरु तेग बहादुर जी की एक मात्र संतान थे  द्वारा 1699 मे खालसा पंथ  (ख़ालिस/शुद्ध /Pure) की स्थापना की गई। गुरु गोविंद सिंह जी मुगल्स के खिलाफ जीवन भर लड़ते रहे उनकी मृत्यु अगस्त 1708 मे नांदेड़ (महाराष्ट्र) मे हुई। उनकी मृत्यु के बाद बाबा बंदा सिंह बहादुर सिख सेना के सिपहसलार बन गए ,उन्होने भी अंत तक मुगल्स के खिलाफ कई युद्ध किए। बंदा सिंह बहादुर द्वारा इस्लाम धर्म न अपनाने के कारण जहांदार शाह ने उन्हे फांसी पर चढ़ा दिया। अंग्रेज़ो और सिखों के मध्य कई युद्ध हुए तदुपरान्त 1849 मे सिख साम्राज्य को ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य मे मिला लिया गया।1947 मे स्वतन्त्रता के पश्चात लगभग 55 लाख मुसलमान भारत से पाकिस्तान के पश्चिम पंजाब और लगभग 35 लाख हिन्दू और सिख पाकिस्तान से भारत के पूर्वी पंजाब मे आ बसे।
     बात सिर्फ मुसलमान बन जाने से नहीं अपितु उसे दिल से मानने कि है जो यहाँ भारत मे भी inter cast marriages मे भी देखने को मिलती है प्रेम के वशीभूत होकर कुछ युवक और युवतियाँ एक दूसरे के धर्म (99.9 प्रतिशत लड़कियां ही हिन्दू धर्म को छोडकर इस्लाम )को स्वीकार कर शादी तो कर लेती हैं किन्तु बच्चे होने पर और जैसे जैसे उम्र होने लगती है उनकी खुमारी उतार जाती है और उन्हे (ज़्यादातर) को अपनी गलती का अहसास होने लगता हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती है और इसकी भरपाई भी 100 प्रतिशत लड़कियां ही करती हैं क्यों कि ज़्यादातर मामलो मे (लगभग 90 प्रतिशत) उनके घरवाले और रिश्तेदार भी उनका साथ छोड़ जाते हैं।उदाहरण के लिए प्रमुख तौर पर आमिर खान कि प्रथम पत्नी रीना जिसे तलाक देकर आमिर ने किरण राव से शादी कि, अभी अभी आपसी सहमति से फरहान अख्तर और अधुना ने भी अलग अलग रहने का फैसला लिया है। यहाँ मैं एक बात ज़ोर देकर कहना चाहूँगा कि कुछ फिल्म स्टारों ने योवन मद मे और भावुक होकर धर्म परिवर्तन कर शादी तो कर ली लेकिन वो इस्लाम धर्म का इस्तेमाल सिर्फ शादी के लिए कर रहे थे क्यो कि इस्लाम धर्म मे एक पुरुष को एक से अधिक शादी कि इजाजत है जब कि हिन्दू धर्म मे नहीं।

     उपरोक्त तथ्यों को देने का एक ही कारण है कि ये बिलकुल भी सही नहीं है कि  कोई व्यक्ति चाहे वो किसी भी धर्म का हो अगर इस्लाम अपनाकर मुसलमान बन गया  है तो उसे दूसरे सभी मुसलमान अपना भाई मान लेंगे ? कभी नहीं, ये सिर्फ एक खुशफगमी है । भारत विभाजन के समय बिहार व अन्य प्रांतो से लगभग 55 लाख मुसलमान पाकिस्तान चले गए ये सोचकर कि पाकिस्तान हमारा अपना मुल्क होगा किन्तु वस्तु स्थिति इससे बिलकुल अलहदा है। आज भी पाकिस्तान मे भारत से गए लगभग 55 लाख मुसलमानो को मोहाजिर (Immigrants/अप्रवासी) के नाम से जाना जाता है। उन्हे आज 68 वर्ष बीतने के बाद भी पाकिस्तान मे दोयम दर्जे कि हैसियत भी प्राप्त नहीं है।  आए दिन उन पर बेइंतेहा जुल्म किए जाते हैं और वहाँ विभाजन के बाद बचे हिन्दुओ कि स्थिति तो उनसे भी बदतर है उन्हे किसी किस्म के कोई भी अधिकार पाकिस्तान मे प्राप्त नहीं हैं। सारे आम हिन्दुओ कि बहू बेटियो को उठा लिया जाता है,बलात्कार किया जाता है और मार दिया जाता है। उन्हे इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कोई लालच नहीं अपितु डराया धमकाया जाता है। भारत विभाजन के पश्चात जो सिंधी मुस्लिम भारत से पाकिस्तान गए उन पर भी तरह तरह के अतयाचार किए गए। पाकिस्तान के सिंध मे सिंधी बोली जाती है किन्तु पाकिस्तान के कर्णधारो ने सिंधी भाषा के स्थान पर उर्दू को तरजीह प्रदान ही नहीं कि वरन ये सुनिश्चित भी किया कि सिंधी स्कूलो /colleges और university मे भी सिंधी के स्थान पर उर्दू का ही प्रचार प्रसार हो।कुछ ही स्थिति POK (Pak occupied कश्मीर) मे भी है वहाँ भी कश्मीरियो के साथ तीसरे और चौथे दर्जे का व्यवहार किया जाता है। यही हाल पाकिस्तान के बलूचिस्तान का भी है और यही हाल बांग्लादेश का भी है।

     अब प्रश्न उठता है कि भारत से गए मुस्लिम क्या मुस्लिम नहीं हैं जो उनके साथ दोयम ही नहीं वरन तीसरे और चौथे दर्जे का व्यवहार किया जाता है। क्या ये हाल सिर्फ पाकिस्तान का ही है जहां मुस्लिम को मुस्लिम नहीं समझा जाता। जी नहीं ऐसा तो ईरान और इराक, सिरिया,तुर्की और अरब देशो मे भी होता है जो कि भारत ही नहीं अपितु पाकिस्तान और बांग्लादेश से गए मुसलमानो पर विशेष द्रष्टि रखते हैं। इन देशो मे भी भारत से गए मुसलमानो को प्रथम,पाकिस्तान से जाने वाले मुसलमानो  को दितीय और बांग्लादेश से गए मुसलमानो को तृतीय श्रेणी मे रखा जाता है।किन्तु ये सभी देश इसका सार्वजनिक बखान नहीं करते बल्कि सुरक्षा कि द्रष्टि से करते हैं। विश्व मे लगभग 50 देश हैं जिनमे मुसलमान वास करते हैं किन्तु भारत एक मात्र ऐसा देश हैं जहां अल्पसंख्यकों को भी  वही अधिकार प्राप्त हैं जो बहुसंख्यकों को हैं । हाँ एक्का दुक्का घटनाएँ ज़रूर हो जाती हैं किन्तु इस देश कि संसक्रती और विशालता के आगे ये घटनाएँ नगण्य हैं। भारत मे मुस्लिम पूरी तरह महफूज हैं।किसी भी अपराध के लिए अरब देशो मे जो सजाएँ प्रचलित हैं क्या भारत देश मे उन सजाओ के साथ रहा जा सकता है निश्चित रूप से नहीं। क्यो कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है और बड़ा वही जो बड़े जैसे काम करे।


:::::प्रदीप भट्ट ::::::::01.02.2016

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