Saturday, 6 February 2016

ट्रांसफर पोस्टिंग उद्योग




“ट्रान्सफर पोस्टिंग उद्योग”
(आम के आम और गुठलियों के दाम)

     ट्रान्सफर और पोस्टिंग उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसमे नेता हो या अफसर उसे न जमीन खरीदने की जरूरत है न ही किसी बैंक से कर्ज लेने की ज़रूरत है। ज़रूरत है तो एक अदद सरकारी पावर की जहाँ सरकार द्वारा दिये गए वातानुकूलित कार्यालय मे बैठकर वे उन लोगों का भला कर सकें जिनहे एक ही जगह और सीट की दरकार हमेशा रहती है । नए लोगों को भर्ती मे अपने लोगों को को कैसे समाहित किया जाए ताकि वे अगले टर्न तक खुद की और उपकृत करने वाले की लगातार बार बार सेवा करते रहें। इस पूरे गोरख धंधे मे कुछ ईमानदार लोगों की बलि चढ़ती है तो चढ़ जाए उनके ठेंगे से। वैसे भी ईमानदार नेता हो या अधिकारी या कर्मचारी उसका तो जन्म बलि चढ़ने के लिए ही हुआ होता है। इतिहास मे ऐसे ढेरों किस्से भरे पड़े है जिसमे  कई ईमानदार लोगों की कब्र साम,दाम  दण्ड और भेद की नीति का कैसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। अशोक खेमका जो हरियाणा सरकार मे वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक अधिकारी हैं का जीवंत उदाहरण सबके सामने है। 
          भारत मे स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेज़ अधिकारी (सामान्यत: अंग्रेज़ अधिकारी ही होते थे) अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का ट्रान्सफर और पोस्टिंग अपने फायदे को देखते हुए ही करते थे। अंग्रेज़ इस उद्योग के लिए सिर्फ एक नियम का पालन करते थे कि कर्मचारी अंग्रेज़ सरकार का वफादार है या नहीं और उस अधिकारी का जिसके नीचे वो अधीनस्थ है। सिफ़ारिश (यदा कदा चलती हो तो कहा नहीं जा सकता) वो सामान्यत: किसी कि भी मानते नहीं थे। हाँ कर्मचारी की काबिलियत पर जरूरु ध्यान दिया जाता था। काम चाहे कोई भी हो अंग्रेज़ो की एक ही फितरत थी कि उसमे ईमानदारी ही बरती जाए फिर वो चाहे सड़क बनाने का काम हो पुल बनाने का काम हो या भवन इत्यादि। क्वालिटी से समझोता किसी भी सूरत मे बरदाश्त नहीं किया जाता था इक्का दुक्का हुई ऐसी घटनाओ मे कठोर सज़ा ही दी जाती थी जिसके कई प्रमाण इतिहास मे दर्ज हैं।

     अब बात करते हैं स्वतंत्र भारत वर्ष की। स्वतंत्रता के पश्चात भारत वर्ष मे जो सरकार बनी उसने अनेक देशो के संविधान का अधय्यन कर भारत का संविधान तैयार किया जिसे 1950 से मान्यता प्राप्त हुई। चूंकि भारत नया नया स्वतंत्र  हुआ था व अविकसित देश था अतएव  नई सरकार के गठन के पश्चात नई नई योजनाएँ परियोजनाएं अपना आकार ले रही थी। उस दौर मे सभी का (सरकार और आम जन का) एक मात्र लक्ष्य था कि जितनी जल्दी हो सके भारत वर्ष को अपने पैरो पर खड़ा किया जाए। इसके लिए भारत सरकार द्वारा भी नित नए प्रयोग किए जा रहे थे। बहुत सारे सरकारी महकमे भी नई नई योजनाओ के कार्यावयन हेतु खोले जा रहे थे और नई नई भर्तियाँ भी उस दौरान की जा रही थीं। चूँकि उस समय शिक्षा का ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं था अतएव पढे लिखे लोगों की बहुत ज्यादा पूछ थी और भर्तियों मे भी उन्ही को प्राथमिकता मिलती थी।

     इसी दौरान भारत वर्ष को 1948 मे पाकिस्तानी काबलियों के द्वारा कश्मीर मे घुसपैठ पर युद्ध मे उलझना पड़ा तत्पश्चात 1962 मे चीन के साथ 1965 मे पुन: पाकिस्तान के साथ तत्पश्चात 1971 मे अंतिम बार बांग्लादेश की स्वतंत्रता हेतु पाकिस्तान से आमने सामने के युद्ध मे भिड़ना पड़ा। (1999 मे करगिल एक संक्षिप्त युद्ध था) इस घटना का उल्लेख इसलिए भी आवश्यक है कि आर्मी (थल सेना ) मे जो रंगरूट भर्ती होता है उस दौरान उसकी शैक्षिक योग्यता को ज्यादा तवज्जो न देकर शारीरिक योग्यता को ज्यादा तवज्जो दी जाती थी। अतएव सेना मे उस समय पैसे देकर भर्ती प्रक्रिया को दरकिरनार करने का कोई भी साक्ष्य या कहानी कहीं नहीं सुनने को मिलती ।



                   श्री नरेंद्र मोदी,प्रधानमंत्री,भारत सरकार (पारदर्शिता के पैरोकार)

                 Transfer Posting System
Sr.
No.
Before May-2014
 To whom
After May-2014                                               
To
Whom
Remarks
1॰
Officer Applied to
CCA(Cadre Control Authority)
Officer Applied to
CCA(Cadre Control Authority)

2.
CCA forwarded to
EO (under Cabinet Secretary)
CCA forwarded to
EO (under Cabinet Secretary)

3.
E.O. forwarded to(Establishment Officer)
CSB
(Central Service Board)
E.O. forwarded to
(Establishment Officer)
PMO
E.O. with the help of PMO’s investigate N take report from Senior & junior & batch mate too(Focus only honesty & Work Delivery)  
4.
CSB selected  three name and send to
Concerned
Minister. Concerned
E.O.PMO forwarded to
CSB
(Whose check the profile etc. N vacant post)
5.
Minister identify a Name and send back to (minimum three months time)  
CSB
(Central Service Board)
CSB  forwarded to
ACC
made all necessary formalities
6.
CSB forwarded the name to
ACC may declare the name of selected candidate
ACC(Control under PMO,
ACC declare the name of successes candidate with in 24 hrs.(PMO also ensure the candidate not belongs to Officers or Minister Home Town)

     सरकारी नौकरियों मे भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करने का कम से कम 1962 या 1965 तक तो कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आया। किन्तु 1965 के पश्चात  पोस्टिंग और ट्रान्सफर उद्योग अपने शैशव काल मे था किन्तु 1971 के पश्चात तो ये उद्योग बहुत ज्यादा फल फूल गया। आठवे और नवे दशक तक आते आते तो इसने बड़े बड़े घोटालो का जन्म दे दिया। अगर ये कहा जाए कि ये  उद्योग उद्योग न होकर एक बीमारी बन गई तो ज्यादा उचित होगा। क्यों कि तब तक ये कहा जाने लगा कि भारत सरकार/राज्य सरकार की कार्यपालिका मे ऊपर नीचे से तक ट्रान्सफर पोस्टिंग उद्योग की जड़े इतनी गहरे पैठ गई हैं कि एक कनिष्ठ अपने वरिष्ठ का अनादर सिर्फ इसलिए करने लगा है कि उसकी पहुँच बड़े बड़े अधिकारियों से इतर मंत्रियों तक है। इससे कार्य बहुत ज्यादा प्रभावित होने लगा। जनता को एक ये मैसेज जाने लगा कि जिन लोगों को चुनकर वे संसद या विधायिका मे भेजते हैं वे नेता एक अलग एलीट ग्रुप के मेम्बर हो गए हैं जिनके पास आम जन की पहुँच उन लोगों द्वारा ही संभव है जिनहे सरकारी नुमाइन्दे कहा जाता है। और जब तक सरकारी नुमाइन्दों को चढ़ावा न चढ़ाया जाए उनका काम होना बिलकुल भी संभव नहीं है (इक्का दुक्का केसो मे ईमानदारी भी बरती जाती है)
     राजीव गांधी ने एक बार पब्लिक मीटिंग मे एक अधिकारी को खड़े खड़े संस्पेंड कर दिया था,इन्दिरा गांधी के राज मे तो सभी क्या प्रशासनिक क्या राजकीय अधकरी सब डरे सहमे रहते थे कि पता नहीं कब किसका ट्रान्सफर आ जाए। उत्तर प्रदेश राज्य मे जब जब मायावती मुख्यमंत्री कि कुर्सी पर विराजी तब- तब ज़्यादातर आईएएस अधिकारी deputation मे केंद्र सरकार मे रहना पसंद करते थे। क्यों कि उनका भी कार्य करने का तरीका हिटलरशाही वाला ही रहा बिना कारण जाने खड़े - खड़े अधिकारी हो या कर्मचारी सस्पैंड कर  दिया। किन्तु इसका एक अच्छा परिणाम भी होता रहा है कि अधिकारियों मे विधारियका का भय बना रहता है। (ये विषय अलग है कि मायावती ज़्यादातर दलित बस्तियो पर ही फोकस करती रही हैं किन्तु यह भी सत्य है कि वे जब - जब सत्ता मे आयी उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था कानून के हाथ मे रही न कि गुंडो और बदमाशो के)
     इसी दौर मे राजनीति मे बिचोलियों की भी बल्ले बल्ले होने लगी वे हर काम मे अपनी दखल रखने लगे। सिर्फ राजनेताओ के लिए ही नहीं वरन वे भारत सरकार द्वारा विदेशी सौदो मे भी हस्तक्षेप करने लगे ऐसा इसलिए भी कि विदेशी अपने रक्षा सौदो के लिए बिचोलियों का ज्यादा मुफीद मानते रहे हैं। कहने कि आवश्यकता नहीं कि इन्ही बिचोलिए धीरे धीरे अपनी पैठ हर जगह बना ली और वे अधिकारियों और कर्मचारियो की पोस्टिंग और ट्रान्सफर मे सीधा सीधा दखल देने लगे जिसमे लाखो और करोड़ो के वारे न्यारे होने लाज़मी थे। बात सिर्फ किसी एक पार्टी की न होकर धंधे मे सिमट कर रह गई जिसका फायदा सभी को मिलने लगा तो बोले कौन? और स्थिति यहाँ तक आ गई जीआई उत्तर प्रदेश मे NHRC घोटाला और मध्य प्रदेश मे व्यापम घोटाला पिछले कुछ वर्षो मे भारतीय जन मानस मे गलत कारणो से छाया रहा। इसका कारण इन घोटालो मे हुई मौतों की संख्या भी है।

     अब बात करते है 2014 मे आयी बीजेपी सरकार की यूँ तो बीजेपी सरकार 1998 से 2004 तक सत्ता मे रही लेकिन जहाँ तक ट्रान्सफर पोस्टिंग का प्रश्न है हालत वही पूर्ववर्ती सरकारो के मानिंद ही रहे। चूँकि इस बार की स्थिति पिछली बीजेपी सरकार से अलहदा थी और बीजेपी ने लोकसभा का चुनाव ही भ्रस्टाचार के मुद्दे पर लड़ा गया था अतएव नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही उनकी पहली कुछ प्राथमिकताओ मे ट्रास्फर और पोस्टिंग उद्योग को जड़ से खत्म करने प्रयास किया गया। वर्तमान मे जो पॉलिसी DOPT ने बनाई है उसमे पारदर्शिता बने रहे इसका विशेष ध्यान रखा गया है। इस विषय मे ऊपर दी गई तालिका का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता हैं जहाँ पहले की पद्धति मे मंत्रियो को पूरे अधिकार थे कि वे अपने मन पसंद स्टाफ या अधिकारी को रख सकते थे वहीं इस बार कि बीजेपी सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी ने इस के बिलकुल उलट ऐसी वयवस्था बैठा दी है कि जो अधिकारी चुना जा रहा है वह मंत्री और चयन समिति के गृह राज्य का नहीं होना चाहिए। चुनाव इतना निष्पक्ष तौर पर हो रहा है कि अब चहुं ओर से इसके पक्ष मे आवाज़े भी आनी शुरू हो गई हैं कि वास्तव मे यही वयवस्था सही है इससे मंत्री और सचिव या सयुंक्त सचिव स्तर के अधिकारी के मन मे बैठ गया है कि कम पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना है क्यो कि उनके पीछे कितनी आँख (Spy) लगी हुई हैं उन्हे इसका आभास तक नहीं है,

     पूर्व मे सिर्फ बैंको मे ही एक transfer policy को कार्यान्वित होते देखते थे ये अब धीरे धीरे सरकारी संगठनो मे दिखाई दी जाने लगेगी।इसी परंपरा मे Bank Board Bureau के द्वारा ही बैंको मे transfer किए जाएंगे। ये पारदर्शी पद्धति अगर सभी सरकारी संगठनो मे लागू हो जाए तो पारदर्शिता भी बनी रहेगी और corruption से किसी हद तक बचा भी जा सकेगा।


              :::::प्रदीप भट्ट ::::::::06.02.2016

1 comment: