रिपोर्ताज
"देर लगी आने में हमको, शुक्र है फ़िर भी आया तो "
"ठीक हो रही खाँसी खुर्रा, लेकिन कनिया* बंद हो गये
अच्छे ख़ासे मलमल थे पर टाट के अब पैबंद हो गये"
* कान (इंस्टेंट)
थोड़ा हँस भी लिया करो 😄😄😄😄
मौका था महफ़िल ए बारादरी की मासिक गोष्ठी का जो कि 8 दिसम्बर को होनी निश्चित हुई थी। वर्ष 2024 की आखिरी हसीन शाम में मैंने भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने को आतुर था😊। इसी क्रम में दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में ही आलोक यात्री जी की ओर से स सम्मान आमंत्रण प्राप्त हो चुका था। पिछले एक महीने से नजले खांसी ज़ुकाम और थोड़े से बुखार बाबू के संग हम लगभग उल्टे टंगे हुए थे।🫠 खांसते ही पसलियां चीत्कार कर देती थीं। बेसाख्ता मुझे लखनऊ में बिताए बचपन की कुछ यादें ताज़ा हो आई जिनमें सर्दी की रात में "हे भुनी भुनी हैं, ये मुंगफली हैं" वो मुंगफली बेचने का अंदाज़ और सर्दी में कंपकपाते हाथों से अख़बार काटकर बनाए गए लिफ़ाफे में ढाई सौ ग्राम मुंगफली और साथ में काला नमक आहहह और गर्मियों में ककड़ी बेचता हुआ वो बंदा जो आवाज़ लगाता था "लैला की उंगलियां ले लो, मजनू की पसलियां ले लो" वो भी काले नमक के साथ, 🥒अब इन दोनों बंदों के अंदाज़ पर लाखों की MBA की डिग्रियां भी न्यौछावर �सो भैय्या जब भी खांसी आती मुझे तुरत बचपने में ले जाती और लैला की उंगलियां और मजनू की पसलियां याद आ जाती। लेकिन साहब इस बार तय कर लिया था कि महफ़िल ए बारादरी जरूर ज़रूर जरूर अटेंड करनी है।भले ही खांसी पढ़ने में व्यवधान ही क्यों न डाले। शायद नजले खांसी ज़ुकाम को अंदाज़ा हो गया था ये बंदा बहुत बड़े वाला ढीठ वाला बंदा है 🙃सो 8 तारीख़ आते आते सवेरे वाली गाड़ी से चुपके से ये तीनों तिलंगे निकल लिए। सच कै रिया हूँ भाया पिछले नवंबर में भी इन्होंने हरिद्वार में मुझे कैच कर लिया था किंतु जब इस साल मैं दिसम्बर के प्रथम सप्ताह में हरिद्वार कार्यक्रम करके लौटा तो मुझे 6 को ही अहसास हो गया था कि इस नज़ले खांसी ज़ुकाम ने तय कर लिया था कि अब दुबारा इस बंदे के साथ ना जावेंगे लेकिन साहब आदत तो बदल सकती है लेकिन फितरत नहीं सो जाते जाते मुए पर्ची छोड़ गए "मिलते हैं नवंबर 2025 में"🌶️
सो भैय्या 8 तारीख़ को 11.00 बजे स्कूटी उठाई और सीधे भैंसाली बस अड्डे, पहली फुर्सत में अपनी स्कूटी जमा की और गाजियाबाद वाली बस में जा बैठे की। 12 बजे जैसे ही बस ने जुंबिश की और बस अड्डे को टाटा बाय बाय बोला आगे वाली बस का ड्राईवर कूद कर आ गया और सवारी उठाने को लेकर महाभारत शुरु हो गया पहले एक दूसरे को छोटी बड़ी सभी उपाधियां दे डाली जब मन नहीं भरा तो वन टू का फोर, फोर टू का वन यानि कंडक्टर भी भिड़ गए, रास्ता पूरी तरह जाम 👻, अब तक बस की सवारियां और भीड़ ड्राईवर कंडक्टर को मोटी मोटी सुना भी रहे थे तभी दो स्टार लगाए एक पुलिस वाला और दो कांस्टेबल भी आ पहुंचे मामला बातचीत से न संभलते देख दो ⭐ ⭐ वाले ने पुलिस वाले से डंडा लिया तो चारों की तशरीफ़ को बढ़िया तरीके से गर्म कर दिया। ये लीजिए हुज़ूर मामला निपटा और हम आनंद के सागर में गोते लगाते हुए 2.45 गाजियाबाद, ई रिक्शा ली और बताया सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल, नेहरू नगर, तभी हमारा फुनवा टुनटुना गया और हम हो गए जी गापियाने में मस्त। मोबाईल से फ्री हुए तो जोर का झटका जोर से लगा, बंदा बुलंदशहर वाले स्कूल की तरफ़ अग्रसर लगा, टोका तो बोला मेरे सुनने में ग़लती हो गई लगती है। ख़ैर उसे छोड़ा दूसरा पकड़ा अब ये वाला भी पता नहीं भैय्या किन किन रास्तों की हमें सैर कराता रहा। देर से पहुंचना हमारी शान के खिलाफ़ है लेकिन मरता क्या न करता। काश मैं भी सड़क पर सन्नी देओल की तरह एक मोड़ पर गड्डी छोड़कर कार्यक्रम स्थल पहुंच जाता। ख़ैर जैसे तैसे 4.00 बजे पहुंचे हमेशा की तरह पहली मुलाक़ात आलोक जी से ही हुई, देर के आने के लिए हाथ जोड़ क्षमा मांगी⏰ फ़िर एक कुर्सी पर अपने आप को धकेल दिया।
थोड़ा संयत हुए तो मंच पर निगाह डाली तो पाया कि बारादरी की सदारत मशहूर शायर इक़बाल अशहर कर रहे हैं सदा की भांति 'डॉक्टर माला कपूर गौहर', गोविंद गुलशन, अजीज नबील, सोमदत्त शर्मा वगैरह वगैरह मंच संचालन की जिम्मेदारी इस बार तरुणा मिश्र ने संभाली। इस शुभ अवसर पर महफ़िल ए बारादरी की ओर से डॉक्टर वीणा मित्तल एवम् ईश्वर सिंह तेवतिया जी को सम्मानित किया गया। प्रिय आलोक यात्री जी महफ़िल में हर जगह मौजूद नज़र आए। चूंकि हम देर से उपस्थित हुए थे सो कार्यक्रम तो अनवरत चालू ही था सो अन्य के अतिरिक्त जब हमारा नाम पुकारा गया तो हम जा पहुंचे देर से उपस्थित होने के लिए अपनी आदत के अनुसार सर्वप्रथम सभागार में उपस्थित सभी से क्षमा मांगी फ़िर गीत प्रस्तुत करने से पूर्व बचपन का एक किस्सा सभी से साझा किया कि जब मैं दसवीं में फेल हुआ तो घर पर पिताजी द्वारा शरीर की डेंटिंग पेंटिंग कर दी गई, फेल होने का दुःख तो हुआ किंतु ज्यादा ख़ुशी तब मिली जब अगले दिन पता चला कि प्रमोद और दिनेश गुप्ता भी फेल हो गए। 🙃🙃🙃🙃सच्ची सच्ची बताऊं अगर भगवान जी इस ख़ुशी के बदले स्वर्ग भी देता तो मैं तुरन्त ठुकरा देता। मेरे बाद आने वाले मित्रों जिसमें डॉक्टर उर्वी अग्रवाल भी को देर से आता देखकर आज वही ख़ुशी हुई (कोई भी मित्र बुरा न माने होली दूर है) ख़ैर हमारी प्रस्तुति कुछ यूं रही:
गीत
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तुम्हारे नाम का धागा, प्रिय फ़िर बाँध लेते हैं
कि थोड़ा ही सही पर, ज़िंदगी को साध लेते हैं
हमें मालूम है मुश्किल मग़र,उम्मीद है फिर भी
भले किरदार हो उलझा मगर हम बांच लेते हैं
कहानी कोई भी हो प्रेम की, लगती सभी इक सी
यक़ी गर हो नहीं सुन लो, हँसी भी है हँसी जैसी
जिसे कहना है जो कह ले, वही होगा जो होना है
ज़माने से नहीं डरना, कि उसकी ऐसी की तैसी
क़सम लेते तो हैं लेकिन,कि बस एक आध लेते हैं
भले किरदार हो कैसा, उसे हम बांच लेते हैं
तुम्हें मालूम है मेरी कहानी, फ़िर भी ले तू सुन
कि जो अच्छा लगे हिस्सा तू उसमें से वही ले गुन
हमारा क्या हमें मालूम है, होगा नहीं कुछ भी
तुम्हीं परखो तुम्हीं समझो,तुम्हीं उनमें से लो इक चुन
लगी दिल में जो बरसों से उसी से आँच लेते हैं
भले किरदार हो उलझा मगर हम बांच लेते हैं
सदा हमने सुनी दिल की तुम्हारे दिल की तुम जानो
अगर नाराज हो हमसे कमान ओ तीर न तानो
भरोसा हो भले न जिंदगी का यार परसों तक
हमीं वो हैं तुम्हारे काम जो आएँगे बरसों तक
बशर कैसा भी हो हम देख उसको जाँच लेते हैं
भले किरदार हो कैसा मगर हम बांच लेते हैं
मेरी हर चाह तुमसे है, नया विश्वास तुमसे है
जो बाक़ी रह गईं अब भी, वो हर इक आस तुमसे है
हुईं जो भूल भूले से, ग़िला उसका नहीं करना
मग़र ये सत्य भी जानो, कि हर उजलास तुमसे है
अगर वरदान दे कोई तो पूरे पाँच लेते हैं
भले किरदार हो उलझा उसे हम बांच लेते हैं
तुम्हीं सर्वस्व हो मेरे,ये बिलकुल सत्य तुम जानो
कि मैं पहले जैसी हूँ ,मुझे अंतस से पहचानो
बुरा जो है भला उसका, हमेशा 'दीप' है करता
यही है रीत सदियों से, इसे मानो कि ना मानो
अंत में एक अच्छे और खूबसूरत कार्यक्रम के लिए टीम महफ़िल ए बारादरी को साधुवाद। और पूर्व की भांति इस बार भी समोसे, छोले चावल और स्वादिष्ट गाजर का हलवा। एक ब्राह्मण को इससे ज्यादा कि
चाईदा।🙏🏾🙏🏾🙏🏾🌹🌹🌹🙏🏾🙏🏾
प्रदीप DS भट्ट 151224
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