रिपोर्ताज
"हम जैसों से बच के रहियो"
आलोक यात्री जी द्वारा आमंत्रण प्राप्त होने पर हम "मैं जिंदगी का गीत गाते हुए महफ़िल ए बारादरी का हिस्सा बनने "सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल" नेहरू नगर गाज़ियाबाद जा पहुँचे। अब रविवार का दिन हो तो मन तो यही करता है कि घर पर शेष शैय्या पर विराजे विराजे बस आर्डर देते रहो और अपने कुक्ष को भरते रहो। ये विषय अलग है कि हम जैसे ज्ञानी ध्यानी श्री श्री 1008 'स्वामी प्रदीपानंद' महाराज जी छ: दिन रात का खाना छोड़ने का ढिंढोरा पिटते रहें और रविवार को पूरे दिन चरते रहें 😝😝😝।
ख़ैर "हुआ यूँ के" वैसे तो ये टाइटल आलोक जी के नाम रजिस्टर्ड है किन्तु अनुज होने का फ़ायदा उठाते हुए मैंने झाँसी प्रवास का रिपोर्ताज इसी शीर्षक से फ़ेसबुक पर पोस्ट भी कर दिया था🌹🙏🏾🙏🏾 हास्य व्यंग्य का आनन्द भी तभी आता है जब आप निष्पक्ष रूप से अपने ऊपर भी उसे लागू करें। मिथ्या तो यही है कि मेरा प्रयास यही रहता है 😹 । मैं इससे पूर्व भी महफिल ए बारादरी का एक कार्यक्रम यहीं एवं दूसरा भव्य पुस्तक लोकार्पण समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुका हूँ किन्तु अपनी आदत के अनुसार मैं पहले दो तीन कार्यक्रम सिर्फ़ देखने एवं समझने के लिए अटेंड करता हूँ उसके बाद ही अपनी क़लम सत्य निष्ठा के अनुसार चलती है।😇
सो हुआ यूँ के 13 अक्टूबर को 11 बजे जैसे ही स्कूटी स्टार्ट की तो उसका डिजिटल मीटर गुस्से 😡से उबलते हुए बोला अबे कित्ते आलसी हो बे🙃 साल होने को आया हमें कब ठीक करवाओगे अगर आज नहीं तो फिर छोटी आँख करके हममे झाँक कर मति देखना कि कित्ता तेल बचा है, कसम से हम दिखते को भी छुपा लेंगे फिर किसी दिन 2,4 किलोमीटर घसिटवायेंगे तब हमारी क़ीमत पता चलेगी। हमने हाथ जोड़कर कहा प्रभु ये जुल्म कतई न करियो हम आज ही आपकी इच्छा पूर्ति किये देते हैं सो पहले भूरा मिस्त्री ढूंढा। अजब तमाशा है नाम भूरा रंग काला देखते ही बोला 950 हमने कहा न भाई अब तो 11.30 हो रहे हैं। वो मुस्कराते😊 हुए बोला जनाब मैंने नए मीटर के रेट बताएं हैं टाईम नहीं मैंने भी कहा कदी हँस भी लिया करो। खैर मामला 850 में निपटा। मीटर चेंज करके बोला कौन सा मॉडल है हमने कहा 2014 तो हूं करके बोला अभी तक 12023 किलोमीटर ही चली है। अब मुझे बारादरी में पहुँचने की जल्दी थी सो पेमेंट किया और सीधे बस स्टैंड, स्कूटी पार्क की 12.40 की बस ली और लो जी ठीक 14.45 पर हम सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में, इस बार भी प्रथम दर्शन आलोक जी के ही हुए। अब भैय्या संयोजक हैं तो जिम्मेदारी भी है और जो उसे निभा ले जाए उसी का नाम आलोक यात्री है। फ्रेश होने आरामगाह गए तो ख्याल आया कि अगर मीटर नया है तो रीडिंग पुरानी कैसे इसका मतलब... बस पूछो मत 😊 धीरे धीरे महफिल सजने लगी और 15:00 की जगह ठीक 16:00 बजे सभा शुरू हो गई। लोगोँ को समय की क़ीमत कब समझ आएगी। इस बार मंच मूर्ति के रूप में आदरणीय सुरेंद्र सिंघल जी ने अध्यक्ष का भार अपने कंधो पर वहन करने की अनुमति प्रदान की। गोविंद गुलशन जी, डॉक्टर माला कपूर गौहर ,उर्वशी अग्रवाल, कथा रंग के अध्यक्ष शिवराज जी, नेशनल बुक के लालित्य ललित एवं वैंकूवर कनाडा से पधारी प्राची चतुर्वेदी रंधावा ,अन्य के अतिरिक्त हम तो थे ही भैय्या 😎
आशीष द्वारा प्रस्तुत सुन्दर सरस्वती वंदना के अतिरिक्त एक से बढ़कर एक क़लाम पेश किए गए हमने भी अपनी गज़ल प्रस्तुत की।
नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूँ
मैं अपनी आँख का आँसू गिरा दूँ
ग़मों के साए में जीना है मुश्किल
ख़ुशी के वास्ते तुमको भूला दूँ
जो समझा ही नहीं अश्कों की क़ीमत
तुम्हीं बोलो उसे मैं क्या सिला दूँ
जहाँ भी जाऊँगी वो ढूँढ लेगा
तुम्हीं बोलो कहाँ ख़ुद को छुपा दूँ
जहाँ के सारे ग़म मेरा मुकद्दर
इन्हें ले जाके किस जगह बिठा दूँ
बड़ी बा बातेँ वो सबसे कर रहा है
कहो तो मैं भी कुछ तेवर दिखा दूँ
मकर भर के पड़ा है जाने कब से
औ तुम कहते कि मैं इसको जगा दूँ
कि कब से सीना जोरी कर रहा है
कहो तो 'दीप' मैं उसको डरा दूँ
हमसे पहले भी और हमारे बाद भी वास्तव में कुछ अच्छी रचनाएँ पढ़ी गईं। गोविंद गुलशन, मासूम गाज़ियाबादी, सुरेंद्र जी, माला कपूर उर्वशी अग्रवाल के अतिरिक्त भी कानों को बहुत दिन बाद कुछ अच्छा सुनने को मिला।
पिछले दो बार की बनिस्पत मैं इस बार अंत तक डटा रहा, अच्छी बात ये रही कि कार्यक्रम 8.15 पर समाप्त हो गया जिससे मुझे 8.40 की मेरठ की बस मिल गई और मैं ठीक 22:45 पर घर। बस से उतरकर स्कूटी से घर के रास्ते में ठंडी हवा ने कानों में सरगोशी की कि हुजूर अगले प्रोग्राम में कुर्ता पायजामा नहीं 🙂↔ नई तो प्यार हो जाएगा 🤪🤪🤪
प्रदीप डीएस भट्ट-161024
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