Tuesday, 30 July 2024

" भूखे भजन न होय गोपाला "

 रिपोतार्ज 

       "भूखे भजन न होय गोपाला 
       पकड़ ये अपनी कंठी माला "
 
  18 जुलाई को अचानक (राब्ता) शिवम झा की कॉल आई तब मैं कहीं जा रहा था तो पहली फुर्सत में कॉल बैक किया। फ़ोन उठाते ही शिकायत कि दादा आपने मैसेज नहीं देखा क्या? मैंने अचकचा कर कहा थोड़ा व्यस्त था बालक बताओ क्या बात है तो शिवम ने बताया कि 20 जुलाई को पुराने वैन्यू पालम में ही 11 बजे से कार्यक्रम है आप स्वीकृति देवें। मैंने भी हँसते हुए कहा लो जी लो दी भई 😊। मैं समय से हाज़िर हो जाऊंगा। अब प्रोग्राम गुडगांव में हो या दिल्ली के दूसरे कोने में या मध्य में मुझे समय से पहुंचना पसंद है। हैदराबाद में वक्त की पाबंदगी बड़ी समस्या है। ऐसा कई प्रोग्राम में देखने में आया कि मैं समय से उपस्थित हो गया किंतु जिन्होंने आमंत्रण दिया वे स्वयं नदारत थे😱। सो सामान्य शिष्टाचार के अनुसार मैं 30 से 45 मिनिट प्रतीक्षा करता फिर संबंधित को एक मेसेज ड्रॉप कर वापिस बैक टू पैवेलियन। हाल तो दिल्ली का भी कुछ अच्छा नहीं है किंतु वास्तविक साहित्यकार समय पर उपस्थित होकर साहित्य की गरिमा बचाए हुए हैं।👍🏼

         ख़ैर 20 जुलाई को सुबह 5 बजे उठे, फ्रेश हुए फिर तेजगढ़ी से 7 बजे ब्ला ब्ला ली और ठीक 8.40 ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट वहां से दो मेट्रो बदली और ठीक साढ़े नौ बजे मीटिंग स्थल। लेकिन ये क्या मीटिंग हॉल पर लगा गोदरेज का ताला हमें मुंह चिढ़ा रहा था 😏जैसे कहना चाह रहा हो क्यूं बे घर से फालतू हो क्या जो सुबह इतनी जल्दी टपक पड़े। अब उसे कैसे समझाएं कि इसमें हमारी गलती कछु नाही है। हम तो प्रिकॉशन ले रहे थे लेकिन ब्ला ब्ला ने हमें कुछ ज्यादा ही जल्दी ड्रॉप कर दिया। गर्मी अपने पूरे शबाब पर थी इसलिए और कहीं जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता सो वहीं जीने की सीढ़ियों पर पसर गए।🙃 कुछ रुके फिर शिवम को फ़ोन मिलाने के लिए जैसे ही मोबाइल निकाला तो शिवम का मेसेज देखा किन्ही अपरिहार्य कारणों से प्रोग्राम11 की जगह 12 बजे शुरु होगा। बस भैय्या जोर वाली झुंझलाहट हो आई पर कर भी क्या सकते थे। शिवम से बात हुई तो उसने बताया कि आधे घंटे में पहुंचता हूं। मैंने भी झट कह दिया आ जा भाई सुबह पांच बजे निकला हूं नाश्ता संग संग करेंगे🥘🍰। शिवम अनय के साथ पहुंचा और लग गया काम में। शिवम भी नाश्ता भूल गया और गर्मी का प्रकोप देखते हुए हमने भी उसे याद न दिलाई। तभी संजय जैन जी ने प्रवेश किया फिर आज की उत्सव मूर्ति अमृत बिसारिया जी भी परिवार के साथ आ पहुंची। धीरे धीरे हॉल भरने लगा और ठीक 12 बजे मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन के पश्चात सरस्वती वन्दना हुई। संचालन का दायित्व संभाला शायर संजय जैन जी ने।
      
         राब्ता के संरक्षक विवेक कवीश्वर डॉक्टर कामना मिश्र, खुर्रम नूर, डॉक्टर पूजा सिंह गंगानिया, नीलम गुप्ता जिन्होंने औरों पर एवम स्वंय पर भी अच्छा तंज कसा के अतिरिक्त हशमत भारद्वाज, गोल्डी गीतकार, दीपिका वल्दिया सीमा कौशिक के अतिरिक्त शिवम झा ने भाई बहन के रिश्तों पर गद्यात्मक कविता प्रस्तुत की। मैंने भी अपनी एक गज़ल प्रस्तुत की। वाह वाह के बीच कुछ रिफ्रेशमेंट वितरित हो गया और जब हम फ्री हुए तब तक जय श्री राम। अब भैय्या सुबह से भूखे बैठे ब्रह्म देवता के हिस्से में भोजन तो नहीं अलबत्ता जमकर वाह वाह जरूर हिस्से में आई।🫠

ग़ज़ल 

प्रेम नहीं इतना भी आसां, ख़ुद को खोना पड़ता है 
प्रेम पगे तो हसरत जगती, वरना रोना पड़ता है 

दो ज़िस्मो की बात नहीं ये, दिल का साथ ज़रूरी है 
छत के नीचे साथ हों फ़िर भी, तन्हा सोना पड़ता है

एक दूजे की फ़िक्र भले हो,फ़िर भी ऐसा हो जाता है 
दुनिया को दिखलाने ख़ातिर, इक सा होना पड़ता है 

यकीं नहीं तो आकर देखो, हर घऱ यही कहानी है 
मिट्टी के बर्तन को मिट्टी, से भी धोना पड़ता है

नहीं जगत में कोई ऐसा, जिसको सब कुछ हासिल हो
कभी कभी कुछ पाने खातिर, सब कुछ खोना पड़ता है 

प्रेम की चाहत सच्ची है ग़र,गमलों से शुरआत करो 
नफ़रत के जंगल में उल्फ़त, बीज ही बोना पड़ता है 

यही रीत है यही गीत है, यही मश्वरा है मेरा  
कभी कभी दूजे का बढ़कर, बोझ भी ढोना पड़ता है 

जो अक्षम है प्रेम में उसको, दुनिया ताने देती है 
कभी प्रेम में ख़ुद की ख़ातिर, ख़ुद को रोना पड़ता है  
 
दुनिया की सब बातें छोड़ो, ख़ुद पे कर विश्वास 'प्रदीप' 
प्रेम का धागा सुई नू हौले, हौले पिरोना पड़ता है 
- प्रदीप डीएस भट्ट  -20524

         कार्यक्रम से निफराम हुए और दो मोहतरमाओं के साथ सीधे मेट्रो स्टेशन हौज़ ख़ास चेंज की तभी परम पूजनीय पेट से आकाशवाणी हुई देखो भैय्या मेरठ तक जाना है तो कुछ मुझमें डालो वरना हम तो यहीं मेट्रो 🤤के फर्श पर लेट रहे हैं। हमें भी लगा प्रदीप बाबू पेट के साथ इतनी ज्यादती भी अच्छी नहीं सो भईया एक साथी नाम भूल गया रे...... के साथ भुट्टे के दाने खाए फिर एक एक कॉफी गटकी तब जाकर जान में जान आई। फिर कनॉट प्लेस से आनंद विहार की मेट्रो ली फिर कौशांबी से फिर वही ब्ला ब्ला और भइया जी सीधे साढ़े आठ बजे मेरठ अपने महल में। एक बात पल्ले बांध ली घर से भले किसी समय निकलो पहले ठूस लो नईं तो.....😹


प्रदीप डीएस भट्ट -30724

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