(पुस्तक ऑनलाइन मँगाने के लिए )
अमेजन लिंक
https://amzn.to/3BrfaqK
“चाँद को ऑन लाइन मंगा लिया जी“
जब मेरी प्रथम कृति “दरिया सूखकर सहरा हुआ है” 29 फरवरी-2022 को हैदराबाद में लोकार्पित हुई थी। मैं कुछ ही बंधुओं को पुस्तक की प्रति भेंट कर पाया था, तभी कोरोना बाबू पूरे जोर शोर से आ धमके। वैसे भी अपना कोई भी काम सीधे सीधे कब निपटता है भाई! ये विषय अलग है कि हम कुछ बहुत ही ज्यादा सीधे साधे हैं (कसम से झूठ ही बोल रहा हूँ) तब डिपार्टेमेंट के कई साथियों ने जो देश के दूसरे शहरों में कार्यरत्त थे ने शिकायत की थी कि कोरोना बाबू आ गये किताब कैसे मिलेगी। यार ई कितबवा ऑनलाईन काहे उपलब्ध नहीं है। हमने प्रकाशक की कुछ मजबूरिया और अनभिज्ञता का जिक्र किया फिर ज्यादा जोर देने पर जैसे तैसे सात आठ प्रिय मित्रों को स्पीड पोस्ट से पुस्तक भिजवा दी। उनमें से पाँच तो फोन पर ही नाराज ही हो गये । अरे भई ये क्या हमें लिंक भेज देनी थी हम खुदई मँगवा लेते तुम काहे कष्ट किये।
खैर अब जब दूसरी पुस्तक “असलियत में चाँद मेरे पास है” 29 दिसम्बर-2023 को गाँधीनगर (गुजरात) में लोकार्पित हुई तो हमने आदतानुसार एक रिपोतार्ज़ लिख मारा साथ ही ऑनलाईन पुस्तक मंगाने के लिए लिंक भी शेयर कर दिया इससे पहले कि कोई और मित्र ऑनलाईन पुस्तक मंगवाने का कष्ट करते हैदराबाद की ही स्नेही मित्र मोहिनी गुप्ता जी ने बिना बताए बिना देरी किये पुस्तक मंगवा भी ली और हमें चित्र भी व्हाट्सअप पर शेयर कर दिया जैसे कहने चाह रही हों हमसे बढकर कौन है रे बाबा। उनके इस स्नेह पर एक गज़ल की पंक्ति याद हो आई।
“मुझसे बढ के यहाँ, तुझे कौन है चाहने वाला
अगर यकीं नहीं तो तू भी देख, पैर का छाला“
खैर इसके लिए वे स्नेह की पात्र तो हैं ही। अच्छी बात ये है कि वे स्वंय भी अच्छी कविताएँ लिखती हैं पढने का अंदाज़ भी बढिया है। तो भईय्या इस बार कऊनो गल्ती न की है जऊनो जऊनो ऑनलाईन मँगाना चाहें मंगा लो भाई फिर न कहना ॥
जय श्री राम!!!!!!
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-16.01.2023
No comments:
Post a Comment