Tuesday, 27 December 2022

"तीसरे पहर का प्यार"



           

प्रिय पाखी,    

           किसी को भौतिक रुप से  (जिसे पैसे से खरीदा जा सके) उपहार देने मात्र से प्रेम पदर्शित करना आम है। सभी अपनों के लिए किसी न किसी रुप में अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं। उन भावनाओं को व्यक्त करने का तरीका भी यही है कि किसी अपने प्रिय को कोई उपहार दिया जाए ताकि उसे प्रसन्न किया जा सके जिससे सम्बंधित को लगे कि उसे उसकी कितनी फिक्र है (इश्क है या नहीं ये अलग विषय हो सकता है) सामान्यत: इस प्रकार की भावनाएँ भौतिकवाद के पंजे से बच नहीं पाती और सम्बंधों में थोडी सी भी तल्खी आ जाए तो विवाद सत्य नारायण की कथा की तरह ज्यादा से ज्यादा पाँच अध्यायों तक ही चल पाते हैं, अन्यथा एक दो अध्याय में ही रिश्तों की इति श्री हो जाती है और फिर सिलसिला चल पडता है एक दूसरे को नीचा दिखाने या शर्मिंदा करने का “किसने किससे कितना झूठ बोला ये सब रिश्तों में खटास आने के बाद ही शुरू होता है” अन्यथा मीठा मीठा गप्प गप्प कडवा कडवा थू थू)। शायद एक हद के बाद लोग रिश्तों में तल्खियाँ बरदाश्त नहीं कर पाते जो कि स्वाभाविक प्रक्रिया है। कभी कभी तो बात दिया गया उपहार वापिस माँगने तक भी आ जाती है (टीन एज़ बच्चे या तुम्हारे शब्दों में पौधे) मैंने इस सच्ची घटना को एक कहानी में ढालने का प्रयास किया है।(आजकल कविताओं के साथ- साथ कहानियाँ भी लिख रहा हूँ) (स्ट्र्म्ब्लिंग दी रॉक नॉट गैदर मॉस यानि जो पत्थर लुढकता ही रहता है उस पर कभी काई नहीं जम पाती) वो काई ज्ञान की भी हो सकती है और प्रेम की भी।  प्रेम तो सभी करना तो चाह्ते हैं लेकिन कोई प्रेम को समझना नहीं चाहता (सब कुछ पाने की जल्दी जो ठहरी)। समझना मुश्किल होता है किसके दिल में क्या है। खैर अच्छी बात ये है कि 15 अप्रैल-2022 से पहले मैं इन सबसे बचा रहा क्यों कि जीवन में इतनी तल्खियाँ थी कि उन्हें बयाँ करना मुश्किल है। ईश्वर की कृपा रही कि इन तल्खियों /बदतमिज़िओं के  बाद भी मुझे औरत जात से नफरत नहीं हुई (एक को छोडकर)। किंतु 9 अगस्त -2022 से तकलीफों का जो सिलसिला चल रहा है उसमें कुछ तकलीफ लेकर 26 अगस्त से तुम भी शामिल हो गईं अशंकित या सशंकित मन के साथ्। तुम्हारे मन में क्या है तुम जानो। मैं आज भी 15 अप्रैल वाला पा ही हूँ।

 

           तुम ढूँढो खुशिया अपनी पैसों में,और मैं ढूँढू बस तुम में तुम्हें शायद बुरा लगा था, किंतु जब 13 सितम्बर को पार्सल मिलने के बाद तुमने दोनों भावयुक्त मेसैज (ऊपर वाला मैंने लगभग पढ लिया था किंतु दूसरा पढने से पहले ही........तुमने मैसेज डीलीट कर दिये मुझे निश्चित रुप से बहुत खराब लगा और गुस्सा भी आया। उस दिन अच्छा नहीं लगा। ( क्या डर था या है) मैं तुम्हें तुमसे बेहतर समझ सकता हूँ। फिर तुम बार बार पैसे भेजने के लिए कह रही हो, क्यूँ, हम जिस रिश्ते में हैं उसमें पैसा इतना महत्वपूर्ण कैसे और कब हो गया। पाखी उन दोनों ही दिनों में मैं बहुत ज्यादा व्यथित हुआ। तुम मुझे पाकर गौरवांवित महसूस करती हो मैं तुम्हें, वास्तव में मैं तुम्हारे लिए खास ही हूँ । “न भूतो न भविष्यते”15 अप्रैल से 26 अगस्त तक कुछ भी झूठ नहीं था सब कुछ शीशे की तरह साफ है। तुम्हारे शब्दों में तुम्हें किसी ने आज तक पाँच रुपये ऑफर नहीं किये उल्टे तुम्हारा तन, मन धन सब कुछ लूट कर चलते बने। और मैं तुमसे धन नहीं केवल भावनाएँ (भविष्य में कभी मैसेज डीलिट मत करना) चाहता हूँ। तुम्हें महादेव की सौगंध खाकर वचन दिया था कि स्थिति परिस्थित कुछ भी हो मेरे लिए तुम सर्वोपरि रहोगी, मैं आज भी तुम्हें वचन देता हूँ मैं तुम्हारा साथ कदापि कदापि नही छोडूँगा और मैं इस पर दृढ प्रतिज्ञ हूँ। भगवान को मानती हो तो विश्वास करना भी सीखो, उन्होंने ही हम दोनों को 15 अप्रैल को मिलवाया, 16 को हम दोनों को ही पता था कि हम एक दूसरे के पूरक बन गये हैं। आख्रिर कब तक खुद को आजमाती रहोगी। तुम अच्छी तरह जानती भी हो और मानती भी हो कि तुम्हारे जीवन में मुझसे ज्यादा अच्छा और लॉयल कोई नहीं हो सकता।   तुम मेरा पहला और अंतिम प्रेम हो। जैसे मैं टिम्सी के जाने के बाद हर लडकी में टिम्सी को ही देखता हूँ वैसे ही जब भी किसी महिला से किसी प्रोग्राम में मिलता हूँ तो तुरंत तुम्हारा हँसता मुस्कुराता चेहरा सामने आ जाता है। अगर मैं अच्छा और सच्चा नहीं होता तो तुम कदापि मेरा वरण नही करती। ये अलग बात मैं इस अच्छे पन की कीमत पिछले तीस पैतीस साल से अदा किये जा रहा हूँ। तुम्हारे हिस्से के अच्छे पन की कीमत भी मैं ही चुकाउँगा।


                                        “झूठ धूप की लग जाती जब रिश्तों में

  कर्ज़ चुकाना पडता है तब किश्तों में”

           जिस रिश्ते की शुरुआत झूठ पर टिकी हो वो रिश्ता ज्यादा दिन चल नहीं सकता मैंने तो फिर भी लगभग तीन दशक चला दिया। ये जानते हुए भी कि सामने वाला एक झूठ छुपाने के लिए दूसरा झूठ बोल रहा है मैंने कभी किसी का भी झूठ उसको बताकर शर्मिंदा नहीं किया, रिश्तों की मर्यादा यही कहती है। वरना रिश्ते जुडते कम हैं और टूटने ज्यादा लगते हैं। कहीं न कहीं टिम्सी का भविष्य सब कुछ सह लेने को बाध्य करता रहा जो कि ठीक भी था किंतु अब उसे गये हुए भी साढे सात वर्ष हो चुके हैं। पिछले साढे सात सालों में स्थिति पहले से कहीं ज्यादा भीषण हो गई हैं। बहुत सारा अच्छा पन बाकी था इसलिए कहा नहीं सिर्फ सहा, फिर कहता भी किससे?  फिर 15 अप्रैल को तुम मेरे जीवन में आईं और थोडे दिनों में ही हम दोनों की दुनियाँ बदल गई। मुझे लगा ये वही है जिसकी कमी मेरे अंतर्मन में बरसों से रही है और निश्चित तुम्हारी सोच भी ऐसे ही थी। जानती हो हम दोनों में शायद एक ही फर्क है मैं तकलीफें झेलते झेलते पिछले 30 वर्षो में ज्यादा धैर्य धरना सीख गया हूँ। इसलिए आज तक हँसता रहा मगर अंदर से घुटता रहा। कभी कभी मन में आता है मरने से पहले उन दुष्टों को अच्छा सा सबक सिखाउँ जिन्होंने तुम्हें तल्ख अनुभव दिये हैं (शायद ऐसा करूँ भी)

 

“मुझे पता है कभी-कभी मैं लास्ट हो जाती हूँ

                                                                और कभी कभी बहुत रुड भी हो जाती हूँ

     कभी कभी एक दम से बात को खत्म कर देती

   हूँ। कभी-कभी अच्छी तरह से बात सुनती भी

  नहीं हूँ। इन सभी चीज़ों के लिए दिल से माफी

मांगती हूँ आपकी पंक्तियां हैं” जैसा हूँ स्वीकार करो”

           शायद तुमने कुछ ऐसा ही बताया था या लिखा था,सोचा था इन पंक्तियों को एक नज़्म का रुप दूँगा लेकिन  मूड बना ही नहीं और इसे छोडकर तुम्हारे लिए काफी कुछ और लिख डाला लेकिन एक बात सत्य है “ मैंने तो तुम्हें 15 अप्रैल की साँझ को ही स्वीकार कर लिया था वो भी बिना किसी इफ या बट के या हिंदी में बिना लाग लपेट के। रिश्तों में कमियाँ खोजने या निकालने का मुझे कोई शौक नहीं वरन कमियों को सामने वाले को बताए बिना दूर करने का प्रयास करता हूँ। मुझे स्वंय पर प्रभु पर ( अब तो देवी माँ के दिन चल रहे हैं, आज छ्टा दिन है। तुमसे आज तक कभी झूठ नहीं बोला न ही बोलूँगा| मेरे हिसाब से रिश्ते में झुठ के लिए कोई जगह होती भी नहीं )और तुम पर भी अगाध विश्वास है  लेकिन एक बात कहूँ तुम्हें झूठ बोलना भी नहीं आता, और फिर बोलना भी क्यूँ है और वो भी मुझसे।

 

          अब बात करते हैं तुम्हारे अवतरण दिवस की। ये तो निश्चित था कि मैं तुम्हारे अवतरण दिवस को ग़्रांड तरीके से सेलिब्रेट करना चाहता था। नो डाउट उसमें भौतिक पदार्थ भी शामिल रहेंगे, ये मेरी प्रबल भावना थी कि तुम्हारा जन्मदिन तुम्हारे साथ सेलीब्रेट किया जाए इसलिए जून से ही प्लान किया था कि 9 अक्टूबर को रामेश्वरम या सोमनाथ जायेंगे, वहाँ पूरे विधी विधान से पूजा अर्चन करेंगे अगर सम्भव हुआ तो दोनों बच्चे साथ होंगे) फिर 9 अक्टूबर को वडोदरा किसी होट्ल में  तुम्हारी मनपसंद पार्टी। लेकिन...............। सो जो करने सोचा है वो सोमनाथ या रामेश्वम न होकर हैदराबाद का पद्दमागुड्डी मंदिर में 9 अक्टूबर-2022 को प्रात: 9 बजे तुम्हारे नाम की विशेष पूजा होगी। इसलिए मई माह के अंतिम सप्ताह में तुम्हारे लिए साडियाँ मँगाने का आर्डर दिया था ( तुम्हें सरप्राइज़ देने का मन था) लेकिन साडियाँ, कोलॉज, ग्रीटिंग ,ये सब तो भौतिक है न तो गोवा के दो दिनों और कुछ 26 अप्रैल तक-2022 के दिनों तक की मधुर स्मृतियों को एक नज़्म का रुप दे दिया है            फिर यूँ ही ख्याल आया कि ये तो औरों ने भी किया होगा तुम्हारे लिए तो कुछ नया क्या जो मन को संतोष देने वाला हो वो सभी करना चाहिए। तभी एक विचार मन में कौंधा वैसे भी मैं तुम्हारे जन्म दिन पर कुछ विशेष करना भी चाहता था सो याद आया कि तुम्हें तो शुगर है (और तुम ठहरी चटोरी) सो ये निश्चित किया कि, 9 अक्टूबर-2022 को तुम्हारे नाम से मंदिर में विशेष पूजा कराई जाए, प्रसाद ग्रहण किया जाए और जीवन पर्यंत के लिए चीनी बंद, आइस्क्रीम बंद, दुग्ध वाली चाय बंद,कोल्ड ड्रिंक मैं वैसे भी नहीं के बराबर पीता हूँ वो भी बंद्। (टिम्सी के जाने के बाद मैं वैसे भी मैं मखाने की खीर खाना बंद कर चुका हूँ)। और हाँ 26 सितम्बर से सुबह ब्रंच और शाम को  बस एक रोटी,दाल, चावल या दलिया) तुम्हें लग रहा होगा ये सब करके मैं पाखी को प्रभावित करने के लिए कर रहा हूँ। नहीं प्रिय पाखी मेरा बस चले तो तुम कुछ फरमाइश करो और मैं उसे पूरी करने में लग जाऊँ बस्। एक बात का अहसास अवश्य हुआ कि प्रेम में देने में जो आनंद है वो कुछ भी पाने में नहीं।

 

“जवानी कट गई कटनी थी जैसी, बुढापा संग तेरे काटना है

जो गम बाकी बचे दामन में तेरे,उन्हें अब संग मिल के बाँटना है”

         मैं इस तीस साल पुराने रिश्ते में अब एक क्षण भी रहने का इच्छुक नहीं हूँ बदतमिज़ियों और टेंशन से हालात ये हो गई है कि कभी कभी लगता है सर दो भागों में विभक्त हो जाएगा। सो इस बार मेरठ गया तो सबसे पहले अम्मा से माफी माँगी। बारिश के कारण बस एक दिन ही दो तीन लोगों से मिलना हुआ। सो अम्मा को पहली बार अपनी व्यथा बता दी, (पूरे परिवार ने इन व्यथाओं को बहुत झेला है) अम्मा के साथ एक बात शेयर की कि रिटायर्मेंट तक जिंदा रहा तो ठीक अन्यथा मैं बाद में कहीं भी सब कुछ छोड कर चला जाउँगा। मेरी हालात देककर ही अम्मा ने कहा भाई बस तू कुछ गडबड मत करियो, जहाँ तेरे जी को चैन पडे वहाँ रह्।  खैर एक निश्च्य किया है कि जून के बाद (अगर कुछ होनी न हुई तो) जून के बाद वडोदरा शिफ्ट हो जाता हूँ। कम से कम ये तसल्ली तो रहेगी कि पाखी के पास हूँ।सो अब जीवन पर्यंत पाखी के साथ रहना है या............. लेकिन उससे पहले अपना लिखा सब कुछ एक पार्सल में भरकर पाखी को भेज दूँगा। यदि सम्भव हुआ तो पेंशन पेपर्स में तुम्हारा नाम डलवा दूँगा (इसको ये भी नहीं दूँगा) साथ ही कुल जमा पूँजी की एक वसीयत जिसमें चार हिस्सों में एक एक हिस्सा दोनों भाइयों को, एक हिस्सा तुम्हारा और एक हिस्सा प्रशु की शादी के लिए वो भी सुरक्षित तुम्हारे हाथों में। टाइप करते करते याद आया आज सुबह करीब 05:15 पर आँख खुल गई, छोटी टिम्सी को बाँह फैलाए अपनी तरफ आते देखा फिर पता नहीं वो कहाँ विलीन हो गई। (वो तीसरे नवरात्र को गोलोक वासी हुई थी) जीवन में पैसे की बहुत तंगी देखी है लेकिन तुम अच्छी तरह जानती हो मुझे फिर भी पैसे से कोई मोह नहीं है। मेरे पास करोडों अरबों हों और उसको भोगने के लिए पाखी न हो तो क्या फायदा है ऐसे पैसे का।  मैंने अपनी सारी भावनाएँ अपने सारे सपने सिर्फ और सिर्फ तुम तक सीमित कर दिये हैं ।टिम्सी के बाद सिर्फ तुम्हीं हो (शिव से पहले कुछ नहीं था बाद शिव के सिर्फ तुम हो- एक पुरानी कविता की पंक्ति याद हो आई)तुम जानती हो मैं अपने निश्च्य पर अटल रहता हूँ। मेरा तुम्हारा रिश्ता ऐसा नहीं जो हल्की सी आँधी से उडकर कहीं दूर जा गिरे। मैं पिछले एक माह से महसूस कर रहा हूँ कि प्रेम में विछोह क्या होता है, तुमने तो वो झेला है... मैं रिश्तों में कमजोर नहीं हूँ। “मैं राखी के बंधन में पति बनके बहुत खुश हूँ” स्थिति परिस्थिति कुछ भी रहे, पाखी को लेकर कोई समझौता नहीं।हम अपनी मर्ज़ी से इस रिश्ते में आए हैं न, पैसा जाता है जाए, जीवन जाता है जाए लेकिन पाखी नहीं, कभी भी कभी नहीं! ये तीसरे पहर का सशक्त प्यार है।

तुम्हारा

 

(प्रदीप भट्ट)

Wednesday, 9 November 2022

"मन चाहा होता नहीं प्रभु चाहें तत्काल"

रिपोतार्ज़

"मन चाहा होता नहीं, प्रभु चाहें तत्काल"

  हर चीज़ का समय निश्चित है, कब कहाँ कैसे क्या होगा वो सब नीली छतरी वाले ने हमें अवनि पर भेजने से पहले डिसाइड किया हुआ है। अगर दूसरे उदाहरण से समझाऊँ तो ये हमारा शरीर हार्ड वेयर है और बाकी जो भी दिनचर्या में शामिल है वह साफ्ट वेयर् है। हमारे पैदा होने से लेकर मरने तक सब कुछ फिक्स्। मानो तो ठीक नहीं तो जय श्रीराम्। कुछ लोगों को लगता है कि किस्मत हमारे हाथ में है जो कि कभी नहीं होती। हर चीज़ निश्चित समय और निश्चित मात्रा में ही होती है। न एक बूँद इधर न एक बूँद उधर्। अब इसमें लॉजिक ढूँढने की कतई ज़रुरत न है। मैं तो वैसे भी कहता हूँ कि –

क्रोध की अग्नि में तू, जल जाएगा
प्रेम से ईश्वर तुझे, मिल जाएगा
झूठ का कुछ काल, लम्बा है मगर
सत्य का इक दिन, कँवल खिल जाएगा
कर्म की तू व्याख्या न, कर कभी
भाग्य से ज्यादा नहीं, मिल पाएगा

 वर्चुअल या आभासी मीटिंग जो भी आप कहना चाहें कह लें, कोरोना काल में बहुत अच्छा लगा क्यूँ कि हमें भी आज की पीढी से कदम से कदम मिलाकर चलने का या दिखाने का मौका मिला कि “हम भी किसी से कम नहीं” किंतु जल्दी ही आभास हो गया कि एक कविता पढने के लिए दो तीन घंटे मॉनिटर के सामने बैठना कोई अक्लमंदी का काम नहीं। इससे बडी बात ये कि जो आनंद मंचो पर कविता पढकर प्राप्त होता है उसका 1 प्रतिशत भी आनंद इस आभासी दुनियाँ से प्राप्त नहिं हुआ। इसलिए मैंने धीरे धीरे इस आभासी दुनियाँ से दूरी बनानी शुरु कर दी। अब यदा कदा ही इस तरह की मीटिंग अटेंड करता हूँ। दो तीन महीने में एक भी बाहर का कार्यक्रम मिल जाए तो वल्ले वल्ले (अरे भैय्या ज्यादा कर जो नहीं सकते, भारत सरकार की सेवा भी ज़रुरी है न)

 अचानक 10 अक्टूबर-2022 को अर्चना पाण्डेय जी जो कि डी आर डी ओ के डी आर आई एल में सहायक निदेशक (राजभाषा) हैं ने अगले दिन यानि 11 अक्टूबर मंगलवार को डी आर आई एल में कविता पाठ का निमंत्रण दिया जिसे हमने सहर्ष स्वीकार कर लिया। अगले दिन मैं और ज्योति नारायण जी नियत समय पर पहुँच गये। चूँकि डिफेन्स का मामला है इसलिए दो सज्जन ( श्री सिंह व श्री ओझा) हमें रिसीव करने गेट पर ही मौजूद थे। उन्हीं से ज्ञात हुआ क़ी हमारी वरिष्ठ डॉक्टर सुमन लता जी भी पधार रहीं है।निश्चित सुनकर आनंद क़ी अनुभूति हुई। हम दोनों के मोबाईल गेट पर ही जमा कराने का आग्र्ह हुआ जिसे हमने मैनेज कर ज्योति जी की गाडी में ही ड्राइवर के पास छोड दिया। ज़रूरी पास बनवाने में दोनों ने पूरी पूरी मदद की व प्रोटोकॉल के तौर पर कार्यक्रम के शुरु से लेकर अंत तक हमारे साथ ही बने रहे। बेहतरीन हॉल व व्यवस्था के तो क्या कहने। डी आर आई एल के निदेशक चूँकि एक आवश्यक मीटिंग में थे इसलिए कार्यक्रम थोडा विलम्ब से शुरु हुआ। प्रथम सत्र में निदेशक व सन्युक्त निदेशक के द्वारा हम सभी कवियों का शाल उढाकर, पुष्प गुच्छ देकर भव्य स्वागत व सम्मान किया गया। डी आर आई एल  के अधिकारियों व स्टाफ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया गया जिसमें विजेताओं का भी भव्य तरीके से सम्मानित किया गया। तदुपरांत डी आर आई एल के अधिकारियों द्वारा हिन्दी भाषा के उत्थान पर चर्चा की गई। फिर दस मिनिट्स के लिए रेफ्रेश्मेंट ब्रेक, अरे भैय्या “भूखे भजन न होय गोपाला, पकड ये अपनी कंठी माला”

 दूसरे सत्र का श्रीगणेश साथी कवि दीपक द्वारा कविता पाठ करके दिया गया। प्रत्येक कवि के लिए 15 मिनिट्स निर्धारित थे। मैंने भी एक गज़ल, दो देश भक्ति के गीत प्रस्तुत किये।
(1)
“ सरहद पर दुश्मने ललकारे,
   उठो जवानों धरा पुकारे
   कर्ज़ चुकाना है माटी का,
   एक अकेला सौ को मारे।”

(2)                                                                                                   “दोस्तों की अब यही पह्चान है,
  खंजरों के पीठ पर निशान हैं।
  धर्म का निरपेक्ष रुप देखिए,
  मस्ज़िदों में हो रहा गुणगान है॥

(3) हम सहिष्णु हैं, अर्थ नहीं तुम कायर समझो
       भस्म करे जो पल में, ऐसा फायर समझो
    इश्क विश्क के गीत नहीं मैं, लिख सकता सुन
    देश प्रेम की अलख जगाता, शायर समझो

इसके अतिरिक्त मैंने हिन्दी भाषा पर अपने विचार भी रखे । अपनी आदत के मुताबिक मैंने तय समय सीमा से एक मिनिट कम लेकर अपनी वाणी को विराम दिया। तालियों की गडगडाहट ने साबित किया कि मंचों पर कविता पढने में कितना आनंद है। मेरे बाद ज्योति जी ने हिन्दी भाषा पर सुंदर गीत प्रस्तुत किया फिर सभी के आग्रह पर अर्चना पाण्डेय जी ने भी कुछ पंक्तियाँ पढ्कर मंच को नमन किया।  इसके बाद विजेताओं को ट्राफी, प्रमाण पत्र व पुरुस्कार प्रदान किये गये। फिर जैसा कि होता है विजेताओं के साथ यादगार के तौर पर एक छाया चित्र लिया गया। अच्छी बात ये रही कि अति व्यस्तता के बावजूद भी निदेशक व सन्युक्त निदेशक कार्यक्रम के अंत तक उपस्थित रहे।

 कार्यक्रम के बाद अर्चना जी के आग्र्ह पर हम उनके कक्ष तक गये रास्ते में उन्होंने हमें वह कमरा भी दिखाया जिसमें भारत रत्न महामहिम भूतपूर्व राष्ट्रपति जी बैठते थे। मुझे अनायास ही 29 जनवरी-2004 याद हो आई जब अपनी टीम के साथ मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य मिला था ( 26 जनवरी-2004 को गणतंत्र दिवस पर जो परेण होती है उसमें “KVIC Tubule” टीम का मैं इंचार्ज़ था) एक बेहतरीन दिन, बेहतरीन एंकरिंग, बेहतरीन कार्यक्रम बेहतरीन व्यवस्था, बेहतरीन आव भगत (और कवियों को चाहिए भी क्या) ।

 अर्चना पाण्डेय जी एवम उनकी टीम को साधुवाद!!!!

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-18:10:2022

Tuesday, 25 October 2022

दो खूबसूरत शामें The Feet On Earth Festival के नाम

रिपोतार्ज 
दो खूबसूरत शामें “THE FEET ON EARTH FESTIVAL”के नाम

आजकल उत्सवों क़े दिन चल रहे हैं। सभी मस्ती क़े मूड में हैं। ये विषय अलग है कि कुछ क़े भाग्य में ये सुख भी नहीं है। किंतु यही तो जीवन क़ी सुंदरता है, कवि प्रदीप क़ी पंक्तियाँ है न। 
“सुख दुःख जिसमें संग संग रहते, जीवन है वो नाव,
कभी धूप तो कहीं छाँव, कभी धूप तो कहीं छाँव”। 
                                      (रामचंद्र नारायण चंद्र द्विवेदी यानि कवि ‘प्रदीप’, 6 फरवरी-1915)

मेरा मानना है कि ऐसी स्थिति में कभी कभी  यूँ ही बिना कुछ सोचे बिचारे कुछ भी कर लेना चाहिए वो भी जब,जब कि आप ज़िंदगी क़ी उलझनों से दो चार हो रहे हों। ऐसा सभी क़े जीवन में होता है कुछ क़े जीवन में कुछ कम और कुछ क़े जीवन में कुछ ज़ियादा! तो भैय्या हम तो ठहरे भगवान जी क़े अच्छे वाले प्रिय से सच्चे से बच्चे सो उन्होंने हमें दूसरे नंबर पर ही  रख़ना उचित समझा और लीजीए हुज़ूर हम पक्के तौर पर दो नम्बरी हो गये। सो दो एक साल पहले हमने भी कुछ लिखने का प्रयास किया।
"दहर क़ी उलझनों से बातें, बस दो चार करनी हैं
नहीं पतवार हाथों में, नदी पर पार करनी है"
                                                       (प्रदीप देवीशरण भट्ट यानि कवि ‘प्रदीप’,27फरवरी-1963)
         अब लगातार तीन दिन क़ी छुट्टी अपने लिए तो ये पनिशमेंट ही समझो भैय्या। घऱ में टी वी और बीवी को एक साथ झेलना बड़ा मुश्किल है। इसी उधेड़बुन में थे कि "The Feet on Earth Festival" का निमंत्रण मिला। घऱ से यही कोई 3-4 KM दूर सालारजंग म्यूज़ियम क़े ऑडिटोरियम में। प्रोग्राम डाँस बेस्ड था और हमारा डाँस से दूर दूर तक भी कोई रिश्ता नहीं लेकिन डाँस देखना और वो भी भारतीय सांस्कृति को दर्शाने वाला, फिर तो मैं देखने अवश्य जाता हूँ।किसी भी प्रकार क़े डाँस का तकनीकी ज्ञान बिलकुल भी नहीं है लेकिन देखकर आत्मा अवश्य प्रसन्न होती है। एक कवि और लेखक क़े तौर पर हम सभी एक ही बिरादरी क़े हैं। मेरा मानना है कि कलाकारों और साधु संतों क़ी कोई जाति नहीं होती। तो भैय्या तुरंत सुहास भटनागर जी को फुनवा मिला दिया। राम राम क़े बाद पूछ लिया प्रोग्राम में चलेंगे। उन्होंने तुरंत कहा अवश्य लेकिन पहले 5 बजे एक मीटिंग बंजारा हिल्स पर अटेंड करेंगे फ़िर सालारजंग का प्रोग्राम अटेंड करेंगे साथ ही ये बताना नहीं भूले कि उन्होंने मुझे कल ही  व्हाट्सएप पर इस प्रोग्राम क़ी सूचना भेजी थी जिसे मैंने अभी तक नहीं देखा था। दिमाग वैसे तो हैय्ये न लेकिन जितना भी बचा खुचा था भगवान जी ने हमें पकडा दिया तो उसी में एक ख्याल आया कम से कम दो शामें अपनी खूबसूरत हो सकती हैं बशर्ते कोई .............।  दीपावली का समय चल रहा है सो ख्याल ये भी आया कि मेट्रो में तो गज़ब की भीड होगी सो साहब अपनी मैस्ट्रो स्कूटी को याद किया जो कई महीनों से नाराज़ चल रही थी कि मुझे कहीं घुमाने क्यूँ नहीं ले जाते फोकट में पेट्रोल भरवाकर छोड देते हो चलाते हो नहीं। सो पहले तो स्कूटी को धोया फिर प्यार से पुचकार कर स्टार्ट किया तो थोडी सी ना नुकुर के बाद वो भी स्टार्ट हो गई। सुहास जी को पीछे बिठाया और ट्रैफिक से जूझते हुए जा पहुँचे बंजारा हिल्स, लगभग एक घंटे बाद फिर वहाँ से अपने घर के आगे से गुजरते हुए 19:15 पर जा पहुँचे सालारजंग म्युज़ियम। कार्यक्रम से लगभग आधा घंटा लेट (जो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं) 
अन्दर हॉल में पहुँचे तो कार्यक्रम शुरु हो चुका था और पुजीता कृष्णा का कुचीपुडी नृत्य अपने पूरे जोर पर था।हॉल में पिन ड्राप साइलेंस था। हमने अपनी जगह पकडी और तल्लीनता से डांस देखने लगे। कुछ भी तकनीकि ज्ञान न होने के बावज़ूद मैं डांस को आत्मसात करने का प्रयत्न कर रहा था। पूजिता ने अद्भुत नृत्य प्रस्तुत किया। अब बारी थी शर्मिला बिस्वास जी कि उन्होंने भी अदभुत ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया । उम्र का तकाज़ा कहें या कुछ और उन्होंने ये नृत्य दो भागों में प्रस्तुत किया जिसे उन्होंने बाद में बताया भी कि उम्र बढने के कारण वे अब एक स्टांस में इसे प्रस्तुत नहीं पर पाईं । खूबसुरत प्रस्तुति।   अब बारी थी पल्लवी वर्मा मिन्नागंति एवम नेनिता प्रवीण (फिजिकल थियेटर) की जिन्होंने  एक नृत्य के माध्यम से एक खूबसूरत नाटकी प्रस्तुत की। सच कहूँ तो दोनों ने मन मोह लिया। दोनों की प्रस्तुति देखकर ऐसा लगता था कि जैसे जलधि की तरंगे एक दूसरे के साथ किलोल कर रही हैं। बस आज की प्रस्तुतियां समपन्न हो चुकी थी। एक बेहतरीन शाम अपने उतार पर थी। कार्यक्रम के बाद पल्ल्वी व नेनिता से मिलना सोने पे सुहागा जैसा था। पल्ल्वली और नेनिता की उम्र में काफी अंतर है किंतु मंच पर दोनों की प्रस्तुति देखकर नहीं लगा कि ऐसा कुछ है। 

अगले दिन सुबह एक और निमंत्रण आ पहुँचा। शाम को 7-11 बजे तक ‘दीपावली मिलन समारोह’। अब थोडा कंफ्यूजन था कि दोनों कार्यक्रम कैसे अटेंड करेंगे। खैर मैं निश्चित था कि मुझे तो डांस का प्रोग्राम ही अटेंड करना है। फिर भी सुहास जी से पूछा तो उन्होंने भी यही कहा डांस प्रोग्राम फाईनल सो साहब रविवार को हम 18:30 पर ही सालारजंग म्युज़िय जा पहुँचे। कार्यक्रम की शुरुआत श्रीविद्या अंगारा सिन्हा के कुचीपुडी नृत्य से हुई लगभग 30-35 मिनिट्स तक सिर्फ एक शब्द आनंदम आनंदम आनंदम्। भारतीय नृत्य प्रस्तुति में कितना स्टेमिना लगता है मैं सोचकर ही रोमांचित हो रहा था। मैं व्यक्तिगत रुप से कहूँ तो इतना आनंद आया कि अगर ये नृत्य दो घंटे भी चलता मैं इसे अपलक देखता रह सकता था। उत्तमता के उच्च मानदंड स्थापित करते कलाकार्।  इसके बाद Maaraa (Manmatha or Kamadeva-Cupid) की बेहतरीन प्रस्तुति। बेहतरीन गायक प्रस्तुति के साथ साथ नृत्य प्रस्तुति। अद्भुत अद्भुत अद्भुत्।  अंतिम प्रस्तुति के तौर पर सन्निधा राजा सागि द्वारा कुचीपुडी नृत्य की बेहद उम्दा प्रस्तुति। मैं सदैव तुलनातक अध्य्यन से बचता हूँ। और यहाँ तो तुलना करने का प्रश्न ही नहीं उठता। खूबसूरती के साथ साथ कुचीपुडी की नृत्य मुद्राओं के प्रदर्शन में न पूजिता कम लगी न श्रीविद्या अंगारा सिन्हा और न सन्निधा राजा सागि। जहाँ तक शर्मिला विस्वास जी की बात है वे जिस मुकाम पर हैं वो ये दर्शाती है कि उन्होंने ओडिसी नृत्य को अपना सब कुछ अर्पण कर दिया है। स्त्री सुंदर हो तो अच्छा किंतु यह भी सत्य है कि सुंदरता ज़ियादा दिनों तक साथ नहीं देती। साथ देती है आपके द्वारा अर्जित विद्या। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि ये छहों स्त्री इस पैमाने पर खरी उतरती हैं और यक्षगाना में मैं किरिमाने श्रीधारा हेगडे (पुरुष) ने ये कहीं भी अहसास नहीं होने दिया कि वो किसी से कम हैं।
अंत में दो खूबसूरत शामें प्रदान करने के लिए “ THE FEET ON EARTH FESTIVAL” की पूरी टीम को प्रणाम। पूजिता कृष्णा को विशेष्।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-25:10:2022

Monday, 17 October 2022

“गुड बॉय”



 रिपोतार्ज़

                                                                “गुड बॉय”

पिछले कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है कि मानसून विदाई ले रहा है किंतु तभी मौसम विभाग भविष्य्वाणी कर देता है “ बंगाल की खाडी में उठे चक्रवात के कारण फलां फलां प्रदेशों में बदरा जम के बरसेंगे”।अरे भैय्या पूरे नोर्थ में जब लोग भीषण गर्मी से त्राही माम त्राही माम कर रहे थे तब तो तुम न बरसे और न ई सुसरा चक्रवात ही कहीं उठा। लगभग पूरे नोर्थ की धरती मैय्या पर बसे लोगां भगवान इंद्र को अगले इलेक्शन में वोट न देने का फैसला कर चुके थे । शायद किसी ने उनसे चुगली कर दी सो भगवान इंद्र को भी जल्दी समझ में आ गया कि भारत में लोक तंत्र है और आजकल लोग कुछ ज्यादा ही जागरूक हो गये हैं सो रिसर्व वाटर का ढक्कन खोल दिया और बदरा जम कर बरसने लगे। सच्ची बताउँ कई रिश्तेदारों से बात चीत हुई तो बताया भैय्या कई दिनों से एक ही कच्छे में विचरण कर रहे हैं, सुसरा सूखता ही नहीं है। सूरज निकलता नहीं और बारिश रुकती नहीं और दामिनी की अपनी इच्छा आए तो दस घंटे और न आए तो घंटा घंटा।


यहाँ हैदराबाद में तो पिछले तीन बरस से बादल कुछ ज्यादा ही बरस रहे हैं, ऑफिस के लोगां और कुछ अच्छे दोस्तां ताना मारते हैं कि भैय्या जब से तुम्हारी चरण रज इस हैदराबाद की धरती पे पडी है इंद्र भगवान कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गये हैं। सर्दी भी औसत से ज्यादा ही सता रही है। खैर शुक्रवार को GHMC ने 20 तारीख तक के लिए येलो अलर्ट जारी किया है। येलो मतलब बारिश पडेगी तो पडेगी नहीं पडी तो जय श्रीराम्। तो साह्ब शुक्रवार को दामिनी भी तडक भडक के साथ गरजी (शायद कहीं गिर भी गई हो) और लगभग पूरी रात बदरा जम के बरसे भी। शनिवार सुबह टी0 वी में उसी अंदाज़ में रिपोर्टर चीख चीख के बतलाए जा रहे रहे थे कि शहर के किन किन स्थानों पर जल भराव हुआ है कुछ बेचारे GHMC की कार्य प्रणाली को भी कोस कर अपने प्रदर्शन में सुधार करने की कोशिश कर रहे थे। 


पिछले लगभग दो माह से अपने साथ भी कुछ अजब गजब चल रहा है समझ नहीं आ रहा कुछ लोगों के अच्छे बुरे कर्मो का फैसला भगवान पर छोड दें (जो आज तक करते आए हैं) या फिर कभी लगता है कि शायद भगवान ने कुछ लोगों को सबक सिखाने का माध्यम हमें ही बनाया हो और हम अपनी आदत के अनुसार सब भगवान पर छोड दिये जा रहे हैं। (वो भी किस किस के कर्मो का फैसला करेगा) खैर इसी उधेडबुन में थे कि मोबलिया घनघना उठा। चिरपरिचित आवाज़ सुनी “ गुड बॉय देखने चलेंगें”  हम तो दो महीने से भरे बैठे हैं सो हमने भी आदतन उनको अपने अंदाज़ में जवाब दे दिया” चलेंगे क्या किसी का गुड बॉय कर दें क्या” उधर से हें हें करके हँसने की आवाज़ आई फिर बोले अमिताभ और रश्मिका मंधाना की फिल्म है कल ही रिलीज़ हुई है अभी टीज़र देखा है। जब दिमाग पे तनाव ज्यादा बढता है तो मैं या तो कॉमेडी फिल्म देखता हूँ या 11 नम्बर की बस ( पैदल पैदल) का इस्तेमाल कर कई कई किलोमीटर चलता रहता हूँ जब तक थक न जाउँ। सो ये सोचकर गुड बॉय कॉमेडी फिल्म होगी मैंने हाँ भर दीं। रविंद्र भारती में लीड इंडिया फाऊंडेशन भारत रत्न डॉक्टर अब्दुल कलाम के जन्मदिन पर एक विशेष कार्यक्रम कर रहा था सो पहले उसे अटेंड किया फिर कुछ खाया पिया और 1.30 बजे इर्रम मंज़िल स्थित मॉल में पहुँच गये। 


एक वाहयात गाने के साथ फिल्म की शुरुआत होती है। कुछ ही देर में नीना गुप्ता जो कि अमिताभ बच्चन की पत्नि का किरदार निभा रही हैं की मृत्यु का समाचार अमिताभ रश्मिका मंधाना को देने का प्रयास करते हैं किंतु वो कान फोडू संगीत के साथ वाइन गटकती हुई नज़र आती हैं। अगले दिन अमिताभ के साथ उनका फोन पर वार्तालाप/व्यव्हार (वे ऑफ टॉकिंग)  ये प्रदर्शित करता है कि आजकल के 99 प्रतिशत बच्चों को माँ बाप की कितनी परवाह है। घर में एक मात्र ऐसी लडकी जिसे नीना गुप्ता नोर्थ ईस्ट से लाकर अपने साथ रखती हैं का नीना व अमिताभ के प्रति कितना अधिक अटैचमेंट होता है वो उन पाँच बच्चों में से एक है जो कि अमिताभ और नीना के साथ रहती है। खैर एक लडका जो विदेश में है के लिए कम्पनी का प्रोजेक्ट अहम है वो तय नहीं कर पा रहा कि माँ की मृत्यु ज़रुरी है या कम्पनी का प्रोजेक्ट्। एक लडका जो सरदार है वो भी विदेश में है किंतु जैसे तैसे दुबई के रास्ते आने की कोशिश कर रहा है। एक लडका नकुल जिसका फोन नहीं लग रहा है सो हारकर धर्म बेटी उसको एक मैसेज करके छोड देती है। आशिष विद्यार्थी सिंह साहब की भूमिका में ये बताने की कोशिश करते हैं कि ऐसे समय में क्या करना है और क्या नहीं करना है। नीना गुप्ता की डेड बॉडी घर के बाहर के बरामदे में रखी है। उस बॉडी को पूरब दिशा में रखना है या उत्तर में वहाँ उपस्थित हुज़ूम समझ ही नहीं पा रहा है। मुझे अकस्मात “जाने भी दो यारों” की याद ताज़ा हो आई जिसमें नीना गुप्ता एक अहम किरदार में थीं और सतीश शाह की डेड बॉडी के साथ क्या क्या प्रयोग किये जाते हैं। इसी डेड बॉडी संग एक लम्बे सीन पर पूरी फिल्म का पूरा दारो-म-दार टिका हुआ था। इन सबके बीच रश्मिका मंधाना का हर रीति रिवाज़ में लॉजिक ढूँढना  या ये बताने की कोशिश करना कि नीना गुप्ता मेरी भी माँ थी और वो कैसे मरना चाहती थीं पर अमिताभ संग काफी तीखी बहस होते दिखाया गया है। फिल्म देखते देखते सनातनी लोगों को लगेगा कि इस फिल्म के द्वारा हमारे रीति रिवाज़ों पर कुठाराधात किया गया है किंतु......


फिल्म का टर्निग़ पॉइंट सुनील ग्रोवर की एंट्री से होता है जो एक पढा लिखा और विचार शील, तर्कवान कर्मकाण्डी पंडित की भूमिका में है। हरिद्वार हर की पैडी की घिचपिच का अच्छा चित्रण किया गया है। कर्मकाण्ड के बाद पंडित जी का छोले भटूरे खाने का आग्रह करना और ये बताना कि पेट की क्षुधा शांत होगी तभी सब काम ठीक प्रकार सम्पन्न होंगे। सुनील ग्रोवर किस तरह रश्मिका मंधाना के उल जलूल प्रश्नों के उत्तर बडी तार्किकता के साथ देता रहता है जिससे धीरे धीरे रश्मिका को अपने अधकचरे ज्ञान का अहसास होता है और वह सनातन धर्म संसकृति को धीरे धीरे ही सही समझने लगती है। एक सीन बडा मजेदार है जब हर की पौडी पर सुनीन ग्रोवर कहता है कि बडे लडके को (जिसने क्रिया सम्पन्न की है) को अपने बालों का त्याग करना होगा।बडा लडका जो अभी तक रश्मिका मंधाना ओ रीति रिवाजों क्यूँ ज़रुरी है के लिए ज्ञान बाँट रहा होता है वो बाल न कटवाने के लिए नाना प्रकार के बहाने ढूँढता है क्यों कि उसे लगता है गंजा होने पर वो कम्पनी के प्रजेंटेशन कैसे देगा। बाल कटवाने क्यूँ ज़रुरी है इस बात को काफी अच्छे से समझाया गया है। 


अंत आते आते तीन में से दोनों भाई (सरदार को छोडकर) समझ आने पर अपनी इच्छा से बालों का यानि अहम का त्याग करते दिखाये गये हैं। इस फिल्म का एक छुपा हुआ पहलू यह भी है कि पाँचों बच्चे ( तीन लडके, दो लडकी) अमिताभ और नीना गुप्ता द्वारा अडॉप्ट किये जाते हैं। मुझे लगता है आज के दौर में जब फिल्म निर्माण पूर्णतया एक व्यापर हो गया है। कार्पोरेट घरानों द्वारा सिर्फ पैसा कमाने के उद्देश्य से ही ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के साथ हद से ज्यादा छेड छाड की जा रही है,जिसका जागरुक दर्शक द्वारा ऐसी बेतुकी फिल्मों का बहिष्कार करके ऐसे निर्माताओं को सबक सिखाने का प्र्यास किया जा रहा है। गुड बॉय हिन्दी फिल्मों के निर्माताओं के लिए एक दर्पण साबित होगी।

-प्रदीप देवीशरण भट्ट- 17.10.2022

Tuesday, 27 September 2022

"सब कुछ ठीक नहीं है"

 








रिपोतार्ज़

सब कुछ ठीक नहीं है”

 

फेस बुक फेस बुक भी है फेक बुक भी है, जिन्होने भुगता है वो जानते हैं। अपने अपने फालोवर बढाने की एक अंधी दौड में लगे हुए हैं कुछ पुरुष मित्रों को तो नहीं अपितु महिला मित्रों से ये बात अवश्य साझा की व आगाह किया कि सिर्फ अपने परिचित की फोटो देखकर ही फ्रेंड रिक्वेस्ट न स्वीकारें। कुछ फेक चेहरे लगाकर भी फेस बुक पर एक्टिव हैं। पता नहीं उन्होंने मेरी बात को कितनी गम्भीरता से लिया है या नहीं भी। जाने अंजाने में बिना खोज बीन के मैं रिक्वेस्ट एक्सेप्ट नही करता हूँ फिर भी गलती है हमसे भी हो जाती है और फिर कुछ दिनों बाद उन सज्जन या सज्जनी को ब्लॉक ही करना पडता है। कुछ लोग मेसेंजर पर शिकायत भी करते हैं “आप अपने आप को क्या समझते हैं ........... ......वगैरह वगैरह” अब उन्हें कौन बताए भैय्या फेस बुक की निर्धारित लिमिट से आगे जाया नहीं जा सकता। और कुछ बंदे या बंदी तो औसतन माह में चार पाँच सीधे मेसेंजर कॉल ठोक देते हैं। शुरु में उठाया फिर जब शिकायत का सिलसिला चल निकला तो हमने बताया फेस बुक की लिमिट हमारे हाथ में नहीं है तो तुरंत सुझाव आप किसी को अन फोलो कर दीजीए हमें जोड लीजिए। न तो स्वंय किसी रिश्ते में गम्भीर हैं न चाहते और कोई रहे, आज अगर मैं किसी और को निकाल कर उन्हें एड कर लूँ तो कल उन्हें भी तो निकाल सकता हूँ, लोग समझते ही नहीं, माना ये आभासी दुनियाँ है किंतु रिश्ते तो रिश्ते हैं। ऐसा कई बार हो चुका है इसलिए मेसेंजर कॉल उठाना ही बंद कर दिया है। लेकिन ऐसी स्थिति आने पर एक बार गलतफहमी होनी स्वाभाविक है “ कहीं अपुन भगवान तो नहीं हो गये” खैर जोक सपाट्। इस आभासी दुनियाँ के कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं जो हमें झेलने ही पडेगें। अब फिर वो चाहे फेसबुक हो अन्य सोशल मीडिया के फन्ने खाँ। खैर अब असली मुद्दा।

 

 

अप्रैल माह में नेपाल जाने से पूर्व राजपाल जी से उनके गुङगाँव स्थित आवास पर मिलना हुआ। उन्होंने दो आग्रह किये कि आप नीरव जी से अवश्य मिले जिसे मैंने नेपाल के साहित्यिक प्रवास के बाद पूरा किया और दूसरा आग्रह आगमन से जुडने का। मैं काफी मंचो से जुडा हूँ और आगमन से जुडने का प्रस्ताव मुझे 2020 में मेरी एक साहित्यक मित्र ने दिया था जिसे मैंने अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए क्षमा माँगते हुए मना कर दिया। किंतु अब लगभग दो वर्ष बाद फिर आग्रह। खैर एक दिन पवन जैन जी का फोन आया और जब उनका परिचय प्राप्त हुआ तो मैंने तुरंत हाँ कर दी। कुछ दिनों बाद पवन जी ने सूचना दी कि 18 सितम्बर-2022 को देल्ही में आगमन के दसवें स्थापना दिवस पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं अगर आप विशिष्ट अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में शिरकत करें तो प्रसन्नता होगी। मैंने अपने परिचितों से फोन कर पूछा तो एक को छोडकर सबने कहा देखेंगें । वास्तव में बच्चे के Exam छोडकर उन एक मात्र मित्र का इस कार्यक्रम में सम्म्लित होना ठीक भी नहीं था। खैंर 17 सितम्बर की सुबह 07:15 की हैदराबाद से राजधानी पकडी और नाश्ता करके बी पी की गोली खाई और सो गये ।सामान्यत: मैं दिन में कभी नहीं सोता चूँकि पूरी रात प्रवचन सुनते बीती तो सो गये। उठे तो पाया मोबालिया को चार्जिंग पे लगाया, फ्रेश होने गये, खाना खाया तब तक 2:20 हो गये थे, बस यूँ ही कवि कैफे ग्रुप में नागपुर की साहित्यिक मित्र को उनकी पोस्ट की कमेंट के साथ लिख मारा “ नागपुर के थाने दार साहब हम नागपुर से गुजरने वाले हैं” इधर मेसैज उधर फोन, और फिर उनका आने के लिए कहना, हमने कहा 5 मिनिट्स के लिए 15-16 किलोमीटर से चलकर आना किंतु साहब थानेदार तो थानेदार ठहरे इधर 15:20 पर गाडी ने प्लेट्फॉर्म को छुआ और थानेदार साहब गेट के सामने। उलाहना बनता था सो उन्होंने दिया। थोडी देर बार दूसरा मोबाईल चेक किया तो पायावो खास बन गया है जो महफिल में आम है” की मिस कॉल है वापिस किया तो ....... अब मन पूरी तरह और ज्यादा खिन्न हो गया था ऐसा पहली बार हुआ जब मैंने 21 घंटे के सफर में किसी सह यात्री से बात नहीं की दो तीन ने कुछ पूछा भी तो सलेक्टिड उत्तर देकर इति श्री कर ली। मन खिन्न होने के कारणमौन सर्वार्थ साधकम” अपना लिया।

खैर अगले दिन सुबह 05:34 पर ट्रेन निज़ामुद्दीन स्टेशन पहुँच गई, ऑटो लिया और सीधे पवन गोयल साहब के दर पर (देल्ही छोडे सोलह बरस हो गये, पहले मुम्बई से आते या जाते हुए हॉल्ट अब हैदराबाद से, 42 बरस का याराना है) फ्रेश हुए और 10:10 पर सीधे चौथे माले स्थित आगमन के कार्यक्रम मे।पवन जी मुलाकात हुई, लखनऊ से पधारी रेखा वोरा को देखना सुखद रहा उनसे जनवरी-2020 के कार्यक्रम में जयपुर में मुलाकत हुई थी। धीरे धीरे लोग आते रहे तभी थपियाल जी से मुलाकात हुई उनसे भी गोवा के कार्यक्रम में मुलाकत हो चुकी थी, नईम जी नेपाल के महोत्सव में मिल चुके थे, निशा माथुर जयपुर, और भी कई लोग जो मुझे पहचान रहे थे किंतु मैं उन्हें पहचान नहीं पा रहा था। खैर 11 बजे शालिनी अगम द्वारा प्रथम सत्र का संचालन सँभाला गया। माँ सरस्वती के चरण स्पर्श व ‘प्रदीप’ प्रज्व्व्लित करने का सौभाग्य पाण्डेय जी व तुषा शर्मा के साथ मुझे भी मिला। प्रथम सत्र में जहाँ कार्यक्रम में पधारे मुख्य व विशिष्ट अतिथियों को सम्मानित किया गया वहीं वागीश्वरी पत्रिका का विमोचन भी किया गया। दूसरे सत्र की अध्यक्षता श्रीमती व श्री लक्ष्मी शंकर बाजपई द्वारा की गई। सभी ने अपनी अपनी रचनाओं से समां बाँधा। मैंने भी अपना एक गीत “ आज से मन ये मेरा तुम्हारा हुआ” पढी। कार्यक्रम का समापन राष्ट्र गान से हुआ। दूसरे सत्र का संचालन अनुराधा पाण्डेय व मानसी जोशी ने सन्युक्त रुप से किया। कार्यक्रम के बाद प्रिय पंकज चावला का बर्थडे मनाना यादगार रहा। एक बात जिसका ध्यान मैं सदैव रखता हूँ कि जब भी स्टेज पर जाओ नंगे पैर ही जाओ।

 

अगले दिन एक विशेष कार्य का निपटान करना था सो सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक बढिया वाली धूप में सिकते हुए उस कार्य को पूर्ण किया। ये एक नया अनुभव था जिससे मैं पहली बार दो चार हुआ किंतु संतोष की बात ये कि मैं अपने मिशन में कामयाब होकर लौटा। अगले दिन मेरठ और इंद्र देवता ने मेरे पहुँचते ही सारी टोंटी खोल डाली, पानी रे पानी तेरा रंग कैसा की तर्ज़ पर्। एक दिन में तीन लोगों से मिलना वो भी बारिश की छपाक के साथ्। इसका अलग ही आनंद है। अगले दिन की दो मीटिंग्स बारिश की भेंट चढ गई। मुरादाबाद का कार्यक्रम भी इसी क्रम में रह गया। इंद्र देवता के तेवर कम होने का नाम नहीं ले रहे थे, एक मित्र के आग्र्ह पर शनिवार 4 बजे देह्ली में एक मीटिंग रखी चूँकि ट्रेन 19:50 की थी सो एक बजे मेरठ से बस पकडी, अंदाज़ा था 15:30 आई टी ओ पहुँच जायेंगे किंतु बारिश की गति को देखते हुए मित्र को मना करना पडा और हम 16:00 बजे ही निज़ामुद्दीन स्टेशन पहुँच गये। लगभग 4 घंटे स्टेशन पर बारिश अपने पूरे रौ में बरस रही थी। खैर ट्रेन पकडी खाना खाया और सो गये फिर अगले दिन फिर वही मौन इख्तियार कर लिया, मन को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था सो अगले दिन हैदराबाद ।काम करने थे किये किंतुकोई मन का अगर न मिले जीस्त में, बात करने से भी मन उचट जाता है “ संतोष इस बात का रहा ट्रेन में एक छोटी सी बच्ची बार बार अंकल अंकल कहकर अपनी तोतली भाषा में कुछ समझाती रही शायद मैं भी उसकी बात समझ पा रहा था, बच्चे में भगवान जो बसते हैं। जय श्री राम

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-27:09:2022

 


Thursday, 18 August 2022

"चेन्नई आ रहा हूँ मैं"

 



कार्यक्रम पूर्व रिपोतार्ज़

प्रदीप बाबू बढिया है!!!


                                             "चेन्नई आ रहा हूँ मैं"

“आजादी का अमृत महोत्सव”

यानि

शब्दाक्षर साहित्यिक महोत्सव, चेन्नई"

 

सामान्यत: मैं किसी भी इवेंट के समपन्न होने के पश्चात ही रिपोतार्ज लिखता हूँ। मुझे ये लिखने में कोई संकोच नहीं कि जितनी तारीफ मुझे गीत गज़ल कविता या आर्टिकल के लिए मिलती है उससे कहीं ज़ियादा मेरे रिपोतार्ज के लिए मिलती है। (कभी कभी आलोचना भी कि यार इस गीत/गज़ल /कविता या आर्टिकल में मज़ा नही आया। किंतु संतोष की बात ये है कि रिपोतार्ज के विषय में आज तक कोई आलोचना नहीं हुई वरन कुछ मित्र तो फोन करके पूछते हैं “अबे अगला कब लिख रिया है” (मित्र ऐसे ही बात करते हैं, कमीने कहीं के) खैर  पिछले वर्ष सितम्बर माह में ज्योति नारायण जी का फोन आया नमस्कार चमत्कार के बाद बोलीं “ आप अपना एक चित्र व परिचय मुझे तुरंत भेज दें। पिछले साढे तीन वर्ष के हैदराबाद प्रवास में काफी सारे साहित्यिक मित्रों से मिला हूँ ज्योति जी का सद व्यव्हार काबिले तारीफ है। इसलिए बिना किसी ना नुकुर के तुरंत ही दोनों चीज़े भेज दी गईं। कुछ दिनों बाद ही उनका फोन आया कि 29 सितम्बर-2021 को शब्दाक्षर की मीटिंग घर पर ही रखी है आपको संगठन मंत्री बनाया गया है। कैलेंडर पर निगाह दौडाई तो पाया बुद्द्वार है किंतु आदेश की अवहेलना तो अपने बस की बात न थी सो एक ठो सी एल ली और पहुँच गये। बढिया माहौल में सरस्वती वंदना के साथ मीटींग शुरु हुई और रुचिकर रात के खाने के साथ सम्पन्न ( अब हैदराबाद में देल्ही स्टाइल का खाना मिल जाए तो बल्ले बल्ले होनी स्वाभाविक है)

तभी कोरोना ने देश के दरवाजे पर पुन: दस्तक दी तो मीटिंग्स का सिलसिला वर्चुअल हो गया किंतु मीटिंग रुकी नहीं। मुझे याद है 15 मार्च की मीटिंग्स, जिसमें मुझे अध्यक्ष का दायित्य सौंपा गया। सांय 7 बजे से रात्रि 11.30 बजे तक मैराथन मीटिंग चली किंतु अच्छी बात यह है कि सभी ने साहित्यिकआन्नद की अनुभूति प्राप्त की।  अप्रैल के अंतिम सप्ताह में मैं नेपाल एक साहित्यिक कार्यक्रम में सम्म्लित होने के लिए गया था। देल्ही वापिस आने पर  सूचना मिली कि चेन्नई में अगस्त के प्रथम सप्ताह में “शब्दाक्षर साहित्य महोसव” का भव्य आयोजन किया जा रहा है। सहभागिता हेतु निमंत्रण भी था। सो हैदराबाद आने के बाद सबसे पहले जो काम किया वो था टिकिट बुकिंग का। चूँकि शुक्रवार होने के कारण अवकाश लेना सम्भव नहीं था सो  5 अगस्त की सांय छ: बजे का टिकिट किया और वापिसी का नौ अगस्त का।

अब बात करते हैं इस आयोजन की जिस प्रकार से शब्दाक्षर के कर्मठ पदाधिकारी निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएँ दे रहे हैं वो काबिले तारीफ है प्रिय सागर शर्मा हों या निशांत सिंह गुलशन’ (उपनाम के अनुरुप) केवल कोठारी जी हों या रवि प्रताप सिंह जी या फिर ज्योति नारायण जी या फिर अन्य वो मित्र जो किसी न किसी रुप में इस साहित्यिक महोत्सव में अपना सहयोग दे रहे हैं ( जैसे रामसेतु के निर्माण में नर हो या वानर या हम जैसी चिखूरी) वह अनुकरणीय है।

 अंत में इस वर्ष भारत अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष मना रहा है। तो फिर हम क्यूँ पीछे रहें, सो हम यानी शब्दाक्षर के सभी मित्र गण शब्दाक्षर के “चेन्नई-साहित्यिक महोत्सव” को “आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत” अभूतपूर्व बनाने का अवश्य प्रयत्न करेंगे।

तो आईये मिलते हैं चेन्नई के लश गार्डन रिसोर्ट, में 6 7 व 8 अगस्त-2022 को और मचाते हैं धमाल।

जय श्री राम!!!!!

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-03.08.2022

उपाध्यक्ष, “शब्दाक्षर”, तेलांगना ईकाइ, हैदराबाद


 


"चेन्नई जा रहा हूँ मैं"

 



रिपोतार्ज़

 

“चेन्नई जा रहा हूँ मैं”

-खुबसूरत यादों और अहसासों को समेटे-

 

5 अगस्त को चारमीनार एक्स्प्रेस से हैदराबाद डेक्कन रेलवे स्टेशन से सायं 6 बजे प्रस्थान कर बिना किसी विघ्न बाधा के चेन्नई के ताम्बरम रेलवे स्टेशन सुबह 8:10 पहुँच गये। वहाँ पहले से ही गोवा की टीम प्रतीक्षारत्त थी । टैक्सी की व्यवस्था कोठारी जी द्वारा पहले से ही कर दी गई थी सो लगभग एक घंटे बाद लश गार्डन जो कि चेन्नई सेंट्रल से लगभग 40 किलोमीटर है पहुँच गये। रुम अलॉट्मेंट के बाद पता चला कि एक रुम में तीन लोगों की व्यव्स्था की गई।  मेरे रुम पार्टनर में एक सज्जन कानपुर व दूसरे सज्जन राजस्थान से, दोनों लगभग 25 बरस के रहे होंगे।  नमस्कार के उपरांत मैं फ्रेश होकर कार्यक्रम स्थल पहुँचा तो बताया गया हुज़ूर पहले पहले पेट पूजा (नाश्ता) कर लें। जब नाश्ते में छ: सात: आइटम हों तो सोचिए लंच और डिनर में कितने होंगे। सो पेट पूजा के पश्चात मीटिंग हाल में पहुँचा, कुछ ही देर में सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हो गई। पहला सत्र सम्मान समारोह में गुजरा तत्पश्चात लंच के बाद दूसरा सत्र लगभग 3 बजे प्रारम्भ हुआ। गज़ल सत्र में औरों के अतिरिक्त हमने भी अपनी एक गज़ल “संग संग तेरे चलना चाहूँ, चल न पाऊँ, क्या बोलूँ” पढी।  दूसरा सत्र सांय को लगभग 9:30 बजे समाप्त हुआ। घोषणा हुई डिनर के बाद मीटींग हाल के सामने वाले हाल में फिर महफिल जमेगी, सो 11 बजे महफिल फिर जमी, उस महफिल का अध्यक्ष हमें बना दिया गया। लगभग ढाई बजे अध्यक्षीय टिप्प्णी के बाद हमने अपने लिखी गज़ल “ बेवजह खुर्शीद पर उँगली उठाया मत करो, खाक हो जाओगे तुम नज़रें मिलाया मत करो” पढकर महफिल की बर्खास्तगी की घोषणा की फिर उन्नीदें से होकर हम अपने रुम की ओर चल पडे, नॉक किया राजस्थानी मित्र ने दरवाजा खोला, दोनों ही मित्र आराम से बेड पर सोये हुए थे मेरी उपस्थिति से दूसरा मित्र भी जाग गया। इससे पहले कि वो कुछ कहते मैंने स्थिति को भाँपते हुए कहा “ आप दोनों ऊपर पलंग पर ही सोयेंगे और मैंने तुरंत कपडें चेंज करते हुए गद्दा बिछाया और ये लो जी पाँच मिनिट में ही निंद्रा रानी की गोद में सर रखकर सपनों में खो गये।

 

अगली सुबह दोनों मित्रों के चेहरों पर कुछ उलझन के भाग देखे तो पूछा तबियत किसकी गडबड है, कानपुर वाले मित्र बोले, सर हमें कल से बुखार हैहमने ठीक है, यहाँ से प्रस्थान तक आप पलंग पर ही सोयेंगे, फिर कुछ और बातों का सिलसिला चल निकला, या यूँ कहूँ कि वरिष्ठ होने के नाते उन्हें कुछ समझाया भी ताकि उनकी हिचकिचाहत दूर की जा सके। थोडी देर में ही दोनों मुस्कुराते हुए जवाब देने लगे। ये एक शुभ संकेत था। फ्रेश हुए नाश्ता किया और पहुँच गये कार्यक्रम स्थल दूसरा तीसरा सत्र गीत सत्र था जिसमें से हमने स्वंय ही नाम वापिस ले लिया। ऐसा करके हम किसी पर अहसान नही जताना चाहते थे बल्कि हमारा मानना है कि ये क्या ज़रुरी है कि हर कवि हर सत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए ही। ऐसे कितने ही कवि हैं जिन्हें यदा कदा ही मंच मिलता है तो उन्हें मौका मिलना चाहिए था किंतु अफसोस दिल गड्डे में। दो चार को छोड दें तो ऐसा प्रतीत होता हुआ जैसे

सबके पेट मेंंअफारा हो रहा था। बस एक ही लगन ज्यादा से ज्यादा कविताएं सुना डालो। खैर जैसी प्रभु की इच्छा। लंच के बाद दो खूबसूरत सत्र एक छंद/दोहे/मुक्तक का जिसमें मुझे अतिथि के तौर पर मंच पर सम्मान दिया गया किंतु मैंने यहाँ भी कार्यक्रम अध्यक्ष श्री भदोरिया से स्वंय कुछ भी प्रस्तुत न करने के लिए माफी माँग ली। अगला सत्र छंद मुक्त कविताओं/अतुकांत कविताओं का था जिसका मैंने भरपूर आंनद लिया।एक से बढकर एक प्रस्तुति।  ऐसी कविता जो किसी बंधन की मोहताज़ नहीं । कविता दिल से लिखी, दिल से पढी, और दिल तक जा पहुँची। यही तो कविता का धर्म है। अंतिम सत्र चूँकि कवि सम्मेलन का था इसलिए देर होती देख तय किया गया कि ये सत्र डिनर के बाद कल वाली जगह पर आयोजित होगा। ये सत्र 8 अगस्त की सुबह लगभग तीन बजे तक चला।

 

फ्रेश हुए नाश्ता किया और 11 बजे के लगभत दो बसों में सवार होकर शब्दाक्षर परिवार महाबलीपुरम के लिए प्रस्थान किया, पौराणिक काल के मंदिर देखे,कोवलम बीच पर मस्ती की और सांय 8 बजे के लगभग बैक टू दी पैविलियं। डिनर के बाद महफिल फिर जमी और लीजिए हुज़ुर 8 अगस्त की रात्रि 11 बजे से 9 अगस्त की प्रात: तक जोरदार कवि सम्मेलन हुआ। कुछ लोग तो फ्रेश हुए उड लिए एअर पोर्ट के लिए। मैं भी लगभग 9 बजे फ्रेश होकर उसी स्थान पर मय सामान के हाज़िर हो गया। आदेश ऐसा ही था कि सुबह फ्रेश होकर मय सामान के नियत स्थान पर सभी हाज़िर रहें, गाडियों की व्यव्स्था पहले ही की जा चुकी थी। नाश्ता से फ्री होकर फिर से महफिल जम गई इस बार संचालन मेरे हाथ में था। लोग आते गये कवि कारवाँ जमता गया। राऊंड द क्लॉक की तर्ज़ पर मैंने संचालन सँभाला एक के बाद एक कवि पढते गये। तभी रवि प्रताप सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष भी पधार गये। महफिल आगे बढी, किन्हीं सज्जन ने दखलंदाज़ी की तो मैंने उन्हें विनम्र्ता से समझा दिया “ देखिए हुज़ुर इस अनौपचारिक सत्र का संचालन मैं कर रहा हूँ। बारी आने पर ही कविता पढनी होगी इससे पूर्व कदापि नहीं। कृपया मर्यादा का पालन करना सीखें। शायद उन्हें अच्छा न लगा हो किंतु मैं चाहता हूँ कि कुछ लोगों को ऐसे आयोजन से कुछ तो सीखना चाहिए। देश के लगभग हर कोने से लोग पधारें हैं अब अगर हर व्यक्ति इस प्रकार का व्यवहार करेगा तो कैसे होगा। 6,7,8 व नौ अगस्त तक का आधा दिन गीत, गज़ल,मुक्तक, छंद की प्रस्तुति व व्याख्या साथ ही हल्की फुल्की चुहल बाजियों में निकल गया। हमने भी 1:45 बजे सामान लपेटा और एक अन्य साथी के साथ चेन्नई सेंट्रल के लिए निकल पडें। समय से काफी पहले पहुँच भी गये।

 

अंतिम पैरा लिखने से पूर्व अगर मैं चंद खूबसूरत लोगों के विषय में कुछ न कहूँ तो मेरी कलम का कोई फायदा नहीं। रवि प्रताप सिंह जो शब्दाक्षर के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, उनकी कविताएँ माशा अल्लाह, संचालन बेहद उम्दा, दोनों में ही गाँव की महक के दर्शन कराने का उनमें उत्तम गुण है। दयाशंकर मिश्र जी, राष्ट्रीप कोषाध्यक्ष, सौम्य हैं सरल हैं, कविताओं पर अच्छी पकड है। केवल कोठारी जी जो शब्दाक्षर के तमिलनाडू के प्रांतीय अध्यक्ष हैं, इनके बारे में क्या कहूँ। सभी उनका गुणगान कर रहे हैं। गुस्से को गुस्सा आता है किंतु कोठारी जी को नहीं। सहृदय, एकला चलो का पाठ पढाते हुए। बचपन से सुनते आ रहे हैं अकेला चना भाड नही फोड सकता , लेकिन मुझे शब्दाक्षर के इस कार्यक्रम के विषय में यह कहने में कोई संकोच नही कि कोठारी जी नामक चने ने अपना सब कुछ झोंक दिया। मैं हमेशा कहता हूँ अगर बडे हो तो बडे के जैसे काम भी करने चाहिए” कोठारी जी इस उक्ति पर सौ फीसदी खरे उतरते हैं। मैंने अपने अभी तक के जीवन में 2-3 लोगों में ऐसी कर्मठता देखी है।है। केवल अर्थात मात्र/शुद्ध्। मुझे आपका सानिध्य मिला मैं इससे अभिभूत हूँ। ज्योति नारायण जो तेलांगना प्रदेश की अध्यक्ष है, मैं उनसे पिछ्ले तीन वर्षो  से परिचित हूँ।सौम्य, मृदु भाषी, बच्चों जैसी खिलखिलाहट की स्वामिनी।  प्रिय अजय श्रीवास्तव, विश्वजीत शर्मा जी, प्रिय शिल्पी या सुनीता जी प्रिय वंदना, वर्षा, दत्ता प्रसाद जोग,रीटा सहगल,उमेश सहगल, प्रिय रुहानी, कुसुम, अंजु छारिया जी, श्रीमती त्रिवेदी, सी0 ए0 ,अमन शुक्ला, महावीर सिन्ह वीर, कनक लता तिवारी जी, अन्नपूर्णा,आलोक जायसवाल,राज कुमार महोबिया,श्यामल मजुमदार दादा,सुबोध मिश्र, कुछ और मित्र भी जिनका नाम स्मरण नहीं हो पा रहा है।( अभी इन तीनों ने पूरी तरह पिंड नहीं छोडा है शायद इसलिए) प्रिय सागर एवम निशांत की मेहनत के बिना ये महोत्सव महोत्सव जैसा नही होता, नई पीढी के बच्चे हैं। तकनीक का सुंदर प्रयोग जानते हैं। इन दोनों को विशेष स्नेह्। एक सुंदर आयोजन के लिए सभी का सह्योग रहा।  सिर्फ कविता पढना या सुनना आवश्यक नहीं है वरन इस तरह के आयोजन से हम उन लोगों से मिलते हैं जिन्हें वर्चुअल के माध्यम से पहचानते हैं या नहीं भी। इस महोत्सव की एक बडी उपल्ब्धि या ये कहूँ तो ज्यादा श्रेयस्कर होगा कि विशेष उपल्ब्धि ये रही की शब्दाक्षर ने नई पीढी के लिए मंच प्रदान किया जो साहित्य के लिए शुभ संकेत है।

 

थ्रोट इंफेक्शन बुख़ार बॉडी पेन जाने कब से घात लगाए बैठे थे ,या यूँ कहूँ तो ज़ियादा बेहतर होगा कि मैं इन्हें appointment नहीं दे रहा सो ये तीनों गुस्से में थे। तीन दिवसीय साहित्य महोत्सव में तो इन तीनों क़ी हिम्मत नहीं हुई शायद भीड़ देखकर घबरा गए हों या डर रहा हो अगर इस बंदे को छेड़ा तो 72 कवि अपनी कविताएं सुनाकर उन्हें ही न बीमार कर दें।एक क़े हिस्से में लगभग 25 कवि 😜किंतु परसों जैसे ही मैं रेलवे स्टेशन पहुँचा तीनों घेर लिए बहुत अनुनय विनय क़ी पर ससुरे माने नहीं रात भर बहुत तंग किया वो तो भला हो हमने हैदराबाद प्रस्थान से पूर्व ही डोलो क़ी ठो गोली रख ली थीं सो सात बजे ही निगल ली और कंबल खींचकर सोने का प्रयास किया किंतु अफ़सोस दिल गड्ढे में। राम राम करते सुबह ट्रेन ने 05:35 पर हैदराबाद डेक्कन का प्लेटफार्म छुआ तो जान में जान आई। जैसे ही प्लेट्फार्म पर कदम रखा तो ठंटी बयार ने जोरदार स्वागत किया, अनुमानत: 35-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफतार रही होगी। वो तो भला हो हमारे बैग का जिसका वजन हमें हमें सँभाले रखा वरना बिना ऑटो के ही घर पहुँच जाते।ख़ैर अब घऱ पर आराम फरमा रहें है। थोड़ा आराम है किंतु जब खाँसी आती है तो पूरी बॉडी कभी शेर कभी मुक्तक कभी कविता कभी ग़ज़ल क़ी तरह पटक पटक क़े प्यार देती है।

 

कित्ता आनंद आ रहा है 😜😜😜

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-12.08.2022

उपाध्यक्ष, “शब्दाक्षर”, तेलांगना ईकाइ, हैदराबाद

Wednesday, 27 July 2022

" एक ख़ूबसूरत भीगी भीगी शाम "

“एक खूबसूरत भिगी भिगी शाम”

पिछले 10 दिनों से हैदराबाद शहर को वर्षा रानी ने  तर- ब -तर किया हुआ है। आप कहीं अन्यत्र घूमने जाना भी चाहें तो जा नहीं सकते सो हम भी सिवाय भारत सरकार क़ी ड्यूटी बजाने क़े अतिरिक्त अगर कुछ कर पा रहे थे तो वो था घऱ में भरपूर आराम, उमड़ते घुमड़ते बादलों को बरसते देखना,कुछ देर उनका रुकना (शायद बादल पानी भरने गये होंगे - बचपन में हम यही अंदाज़ा लगाते थे) फ़िर पहले से भी ज्य़ादा ज़ोर से गर्जना और बरसना। इसके अतिरिक्त अगर कुछ था तो वो वर्चुअल मीटिंग अटेंड करना (मैं तो बुरी तरह पक गया हूँ।) किंतु कुछ नियर व डियर मित्रों का आग्रह टालना संभव नहीं होता। 
मैं सोमवार 18:07:2022 को अभी ऑफिस पहुँचा ही था तभी एक परिचित क़ी फ़ोन कॉल आई। दूसरी ओर गोविंद मिश्र जी थे नमस्कार चमत्कार के उपरांत उन्होंने सूचित किया क़ी शुक्रवार दिनांक :22:07:2022 को होटेल प्लेटिमा हिमायत नगर में उनक़े ग़ज़ल संग्रह “ जलती आँते “    का विमोचन है, अनुरोध है आप ज़रूर पधारें।मैंने कहा अवश्य गोविंद जी आप अग्रज हैं, मैं अवश्य उपस्थित रहूँगा। दो दिनों बाद उन्होंने फ़िर स्मरण कराने हेतु सूचित किया साथ ही सुहास भटनागर का दूरभाष भी माँगा  साथ ही प्रार्थना क़ी कि आप उन्हें भी लेकर आवें ,वे आपके अच्छे मित्र हैं आपको तो मना नहीं करेंगे। मैंने नंबर देने के उपरांत उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं उन्हें ले आऊँगा। शुक्रवार सुबह फ़िर उन्होंने स्मरण कराया और बताया कि सुहास जी ने आने में असमर्थता प्रकट क़ी है क्यों कि उन्हें किसी अन्य कार्यक्रम में जाना है। मैंने कहा जी उन्होंने मुझे भी इस बारे में सूचित किया है किंतु मैंने आपसे वादा किया है तो आप निश्चिंत रहें मैं अवश्य आऊँगा। गोविंद जी ने बोले कल रात से जिस हिसाब से बारिश हो रही है तो मुझे लगा आप भी कुछ लोगों क़ी तरह आने में असमर्थता व्यक्त कर पल्ला झाड़ लेंगे। मैंने कहा मिश्र जी हैदराबाद मैं  पिछले साढ़े तीन साल से हूँ और मैं आज पहली बार घऱ से छाता लेकर आया हूँ। निश्चिंत रहिए कोई पहुँचे न पहुँचे मैं अवश्य पहुँचूंगा।   
बारिश तो बारिश ठहरी वो भी आज हमारी परीक्षा लेने पर तुली थी। ख़ैर ऑफीस से निकले मेट्रो स्टेशन तक पैदल फ़िर मेट्रो ली अमिर पेट चेंज क़ी असेंबली उतरे ऑटो लिया और लीजिए हुज़ूर लेफ़्ट साइड से पूरे भीगते हुए 18:40 होटेल पहुँच गये। चौथी मंज़िल क़े हॉल में कार्यक्रम का इंतेजामात किया गया था। कुछ परिचित चेहरे देखकर दुआ सलाम हुई।गोविंद जी देखते ही आत्म विभोर हो गये मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर काफ़ी देर तक शुक्रिया अदा करते रहे। तदुपरांत सुनीता लुल्ला जी ,प्रिय संतोष पाण्डेय प्रिय विनोद से मुलाक़ात हुई।मुझे मिलाकर कुल ग्यारह लोग। हॉल क़ी क्षमता लगभग 70-80 बाहर वर्षा रानी झूम झूम कर हवा संग नाच रही हैं। तभी हॉल में वर्षा शर्मा जी ने प्रवेश किया। कुछ देर बात फ़ुर्सत मिलने पर उनसे मुलाक़ात हुई तो हमने थोड़ा हास्य बिखेरते हुए कह दिया 'बाहर भी आप अंदर भी आप' रब मेहर करें।
कोरोना काल में वर्चुअल माध्यम से जिनसे परिचय हुआ है वर्षा शर्मा उनमें से एक हैं। लगभग साढ़े सात बजे कार्यक्रम जैसे तैसे शुरू हुआ। प्रिय संतोष पाण्डेय ने संचालन संभाला (जिनको करना था शायद उन्हें अन्य क़े साथ वर्षा रानी ने आने न दिया हो) थोड़ी बहुत परेशानी क़े बाद संतोष ने अच्छी तरह मंच संभाल लिया ये और बात क़े कुछ लोगों क़े नाम वे भूल गये या गलत नामों से सम्बोधित कर बैठे। 😜ऐसा होता है मुझे 2001 में आंध्र भवन में अपनी पहली एंकरिंग याद हो आई।मंच पर ओम प्रकाश आदित्य, अशोक चक्रधर जी के साथ दो तीन कवि और थे। सरला माहेश्वरी जो कि दूरदर्शन में हिंदी की न्यूज़ रीडर थी हमारे (खादी और ग्रामोद्योग आयोग) सभी कार्यक्रमों का संचालन वे ही करती थीं, भयंकर बारिश होने के कारण नहीं आ सकी और हमारे डायरेक्टर साहब ने बुलाया और आदेश हो गया कि चूँकि तुम भी कवि हो (उस कार्यक्रम में नही था) तो संचालन तुम ही करो। मैंने जब सारी वस्तु स्थिति अशोक जी को बताई और ये भी बताया कि मैंने इससे पहले कभी किसी भी कार्यक्रम का संचालन नहीं किया है इस कारण दुविधा में हूँ तो अशोक जी ने पीठ थपथपाते हुए कहा, कोई बात नही कुछ इधर उधर होगा तो हम सम्भाल लेंगे आप शुरु करें। निश्चित उनका वो स्नेह और आत्मीय व्यव्हार मेरे मन को छू गया। शुरु में कुछ गडबड हुई किंतु फिर जो मैंने लय पकडी तो बाद में ओम प्रकाश आदित्य बोले और कितना अच्छा संचालन करना चाह्ते हो। खैर कार्यक्रम के बाद मैंने संतोष को वही घटना सुनाई और वही व्यव्हार उन्हें दिया जो अशोक जी और ओम प्रकाश जी ने मुझे दिया था। 
कार्यक्रम के प्रथम भाग में मंच पर आसीन सभी लोगों का बारी बारी से सम्मान किया गया । ततपश्चात गोविंद मिश्र जी की पुस्तक “ जलती आँते “ का लोकार्पण हम सभी मंचासीन लोगों द्वारा किया गया। कार्यक्रम के दूसरे भाग में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें उमा सोनी, विनोद, प्रिय संतोष पाण्डेय, वर्षा शर्मा, सुनीता लूल्ला, गोविंद मिश्र और मैंने भी अपना एक गीत प्रस्तुत किया। अच्छी बात ये रही कि दूसरे सत्र में काफी लोग भीगते भागते कार्यक्रम में आ पहुँचे थे जिससे हाल भर सा ही गया। मुझे यह कहने में कोई संकोच नही कि सबसे अच्छी प्रस्तुति वर्षा शर्मा की रही। उन्होंने गीत में जिस प्रकार से विशुद्ध हिंदी भाषा को प्रयोग किया वह सराहनीय है। उनकी आवाज़ काफी अच्छी है। माँ सरस्वती की उन पर कृपा है । मैंने कार्यक्रम के अंत में उनको सलाह भी दी कि यदि वे थोडा सा प्रयास करें तो वे अच्छी संचालिका हो सकती हैं। वर्षा रानी बाहर अब भी गाजे बाजे के साथ बरस रही थीं। खैर “भूखे भजन न होय गोपाला” साढे नौ बजते बजते खाना शुरु और तृप्त होकर हम निकल पडे घर की ओर लेकिन ये क्या  बूंदा बांदी अभी भी चालू थी। आटो वालों को हाथ दो तो वो हमारी तरफ देखे बिना ही भागे जा रहे थे। इंतेज़ार करते करते साढे दस और हमने सोचा और इंतेज़ार करने से बेहतर है पैदल ही चलते हैं। सो छ्तरी के नीचे किशोर दा का गाना “ तूने हमें क्या दिया री ज़िंदगी” गुनगुनाते हुए टूम्बक टू टूम्बक टू लिबर्टी चौक तक आ पहुँचे। तभी एक ऑटो ने पूछा कहाँ जाना है हमने कहा नामपल्ली छोड दोगे, इससे पहले कि वो पैसे बताता हमने कहा चलो, उसने पीछे मुडकर हमें देखा तो हम छतरी बंद कर मुस्कुराते हुए नज़र आए। वो भी मुस्कुराया और पंद्रह मिनिट के बाद हम नामपल्ली, गाँधी भवन मेट्रो छोड दिया। हमने उतरते हुए पूछा क्या सेवा करें हुज़ूर, शायद उसे ऐसे सम्बोधन की अपेक्षा न थी सो हाथ जोडकर बोला जो आप ठीक समझें, हमने कहा फिर भी, तो बोला अस्सी रुपये हमने मुस्कुराते हुए उसके हाथ में सौ का नोट धर दिया, इससे पहले कि वो पैसे वापिस देता हमने कहा अस्सी आपके और बाकी आपकी मुस्कुराहट के। हम भी खरामा खरामा घर की ओर एक खूबसूरत शाम की यादों के संग चल दिये।

-प्रदीप देवीशरण भट्ट- 27.07.2022

Friday, 24 June 2022

"“मिस्टर XYZ” (शर्म इनको मगर नहीं आती)"

 


“मिस्टर XYZ

(शर्म इनको मगर नहीं आती)


घोंघे तो आप सबने देखें ही होंगे कुछ लोग इन घोंघे जैसे ही होते हैं या शायद इनसे भी दस बीस कदम आगे। अब आप सोच रहे होंगे ये भट्ट साहब आज घोंघे का जिक्र क्यूँ कर रहें हैं या आप ये भी सोचें आज कुछ लम्बा स्यापा होने वाला है। हाँ दोस्तों काफी दिनों से एक विषय पर लिखने की सोच रहा था किंतु सुसरा मूड ही न बन रहा था, अब भैय्या बिना मूड के तो कुछ हो नही सकता और वो भी लेखन! तो जो इस प्रजाति के हैं उन्हें ये अच्छी तरह से पता होगा कि लेखक प्रजाति में सनकी होने को थोडा मक्खन लगा कर फिलोस्फर कहा जाता है। अब फिलोस्फर में तो पहला शब्द ही फिल है तो सोचिए जिसके दिमाग में कछु होय्ये न करी वो फिल का करेगा ऐं।  खैर जोक सपाट। बात आगे बढाते हैं। पिछ्ले वर्ष दिसम्बर-2021 में मैं एक कार्यक्रम के सिलसिले में भोपाल गया हुआ था। कार्यक्रम चूँकि हिंदी भवन में रखा गया था और संस्था द्वारा सभी के रहने के लिए भी हिंदी भवन में ही  इंतज़ाम किया गया था सो ट्रेन से उतकर पहुँच गये सीधे हिंदी भवन, ‘महादेवी वर्माहॉल जिसमें कार्यक्रम तो कुल मिलाकर ठीक ही था किंतु अतिथि गृह के कमरे में प्रवेश करते ही आभास हो गया कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा हिंदी भवन के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। खैर सोचा फिलहाल फ्रेश हो जाते हैं फिर दूसरी व्यवस्था देखेंगे किंतु बॉथरुम में घुसना और निकलने में मात्र दस सेकेंड लगे। ऐसा नही सिर्फ हमारा ही ये हाल था वरन जितने भी लोग अब तक पहुँचे हुए थे सब की राय एक थी कि हमसे न हो पाएगा सो एक मित्र को साथ लेकर निकल पडे अच्छे होटेल की तलाश में ये तलाश ख्तम हुई एम पी नगर के  होटेल निसर्ग पर। अच्छा होटेल सबसे अच्छी बात वहाँ की सर्विस जिसनें हम सभी को प्रभावित किया।

 

खैर अगले दिन हिंदी भवन के प्रोग्राम को अटेंड किया शाम को एक दुसरे कार्यक्रम के लिए निकल ही रहा था कि कुछ लोकन न्यूज़ वालों ने घेर लिया और बाइट की माँग की मैंने बडी सहजता से बाइट दे दी फिर एक लडके ने कहा सर हम पाँच लोग हैं देर से आए थे तो खाना भी नही खाया अगर आप ठीक समझें तो कुछ दें दे ताकि हम कुछ खा पी लें। चूँकि बात खाने की थी सो मैंने अपनी ओर से पाँच सौ रुपये दे दिये। तीसरे दिन जब हम ट्रेन से वापिस जा रहे थे तो मेरे मित्र का फोन आया चूँकि वो अपने गंतव्य पहुँच चुके थे तो हमारे बारे में जानने के उत्सुक थे, यहाँ वहाँ की बातें हुई फिर बातों बातों में उस सो कॉल्ड मीडिया टीम का जिक्र हो आया, जानकारी लेते लेते जानकर आश्चर्य हुआ कि वो लोग दस-ग्यारह हजार रुपये बटले कर ले गये थे, फिर मित्र ने पूछा तुमने भी दिया क्या ? हमने पूरी स्थित बयाँ कर दी तो हँसते हुए कहने लगे पंडित जी आप भी न, एक तो आप पंडित दूसरे कवि, कहीं पंडितों से कोई पैसे लेता है क्या और चलो जमाना बदल गया है लेकिन कवियों से न बाबा न, कवि और पुलिस वाले पैसे देते नही लेते हैं। हमने एक लम्बी श्वाँस भरते हुए कहा अगर वस्तु स्थिति पता होती तो उसे एक हज़ार की ऑफर करते लेकिन एक शर्त के साथ कि भैय्या दो ठो कविता सुननी पडेगी, वो हाँ भरता फिर हम चार पाँच कविताएँ मिलाकर उसे पहले एक कविता सुनाते, उसे सुनते सुनते वो आधा टेढा हो जाता फिर जैसे ही दूसरी सुनाने लगते वो निश्चित दो हजार हमें उल्टे देकर जाता और पैर अलग छुता। खैर आगे सावधान रहेंगे। अब ये किस्सा यहीं समाप्त किंतु इस घटना को हमने अपने स्मृति पटल से कभी ओझल नही होने दिया।

 

दिसम्बर के बाद काफी प्रोग्राम अटेंड किये कुछ अच्छी कुछ अच्छी यादों के साथ हम नेपाल के चार दिन के प्रवास होकर आए तो एक मित्र ने हमें एक संस्था से जोड दिया वहाँ काफी नये लोगों से परिचय हुआ कुछ पुराने हमें देखकर हर्षित भी हुए। कुछ दिनों बाद उसी संस्था से जुडे एक सज्जन मेरे द्वारा पोस्टिड कविताओं/गज़लों पर अपनी राय जाहिर करने लगे फिर कुछ दिनों बाद  मेसेंजर पर मेसेज किया कि सर आप अपना मोबाइल नम्बर दे दें आपसे बात करनी है। मैंने इसे नोर्मल मानते हुए नम्बर दे दिया। तीन चार दिन बाद ही उनका फोन आ गया। इधर उधर की बात करते हुए मेरी प्रोफाइल, कविताओं इत्यादि की काफी तारीफ की मैंने भी प्रत्युत्तर में कहा, ऐसा कुछ भी नही है हुज़ूर सब माँ सरस्वती की कृपा है, वो चाहती हैं तो लिखा जाता है वरना हम क्या हैं कुछ भी तो नहीं। खैर उन्होंने तुरंत बताया कि सर मैं एक न्यूज़ पेपर का एडिटर हूँ , इससे पहले मैंने ये किया वो किया, पता नही क्या किया फिर अंत में बोले मैं नये लेखकों की कविताएँ छापता हूँ ताकि उन्हें भी एक्सपोज़र मिले,आप जैसे बडे लोगों की रचनाएँ भी उन्हें पढनी चाहिए इसलिए मैंने आपसे सम्पर्क किया है कृपया आप अपनी 8-10 रचनाएँ, प्रोफाइल व एक फोटो दे दें। मैंने कहा मिस्टर XYZ बेहतर होगा आप और किसी से ले लें काफी मैं तो काफी छप लिया हूँ और  काफी खप भी लिया हूँ और कितना और कब तक्। मैं तो मंचो पर कविताएँ पढकर ही खुश हूँ। किंतु मिस्टर XYZ बिलकुल भी हार मानने के मूड में नही थे तुरंत कहने लगे सर आप नाराज़ न हों (मैने स्वंय से प्रश्न किया ऐं मैं भला मिस्टर XYZ से क्यूँ कर नाराज़ होने लगा) जब काफी देर तक ये प्रपंच चलता रहा तो हारकर मैंने कहा ठीक है मिस्टर XYZ मैं आपको pdf फाईल भेज देता हूँ आपको जो भी ठीक लगे छाप दें। धन्यवाद कहते हुए मिस्टर XYZ ने विदा ली। कुछ देर बाद मैं अपने मित्र सुहास भटनागर के साथ व्यस्त हो गया वो बेचारे मुझसे मिलने आए थे और इस इंतेज़ार में थे कि कब मुबलिया से सम्पर्क कटे ताकि हम गुफ्तगू कर सकें, अभी आधा घंटा ही बीता था कि मोबाईल की घंटी ने फिर तंद्रा भंग कर दी। देखा तो वही मिस्टर XYZ,मैने कहा क्या कुछ रह गया हुज़ूर, उधर से बडी धीमी आवाज़ में सर एक मदद चाहिए, कल बिटिया की फीस जमा करनी है और मैं पिछले कुछ दिनों से आर्थिक रुप से तंग हूँ, अगर आप 2000/- फोन पे या पेटिम कर दें दे तो मेहरबानी होगी। मैं अगले हफ्ते लौटा दूँगा। अचानक दिसम्बर की घटना मेरी स्मृति पटल पर ताजा हो उठी, किंतु फिर भी मैंने कहा देखिए मिस्टर XYZ मैं अभी कई प्रोग्राम अटेंड करके आया हूँ। इस समय तो आपकी मदद नही कर पाउँगा हाँ अगर आप अपना एकाउंट नम्बर दें दे तो मैं अगले हफ्ते ट्रांसफर किये देता हूँ। काफी देर तक सन्नाटा भांय भांय करता रहा फिर अचानक फोन कटने की आवाज़ से मुझे अंदाज़ा हो गया कि मिस्टर XYZ नम्बर एक के घोंघे हैं। सुहास भटनाग़र जो अब तक सारा माज़रा समझ चुके थे कातिल मुस्कान के साथ बोले बच गये गुरु। मैंने कहा नही मित्र बात दो हज़ार की नही है मिस्टर XYZ ने जो लूम लपेटा किया है मैं उससे व्यथित हुआ हूँ। ये कोई साहित्य की सेवा नही कर रहा वरन जो बच्चे लिख रहे हैं उन्हें मंच प्रदान करने के नाम पर पैसे ऐंठ रहा है। चाहे कोई अच्छा लिखे या कम अच्छा वो ये ज़रुर चाहता है कि उसका नाम अखबार में आए किंतु ये तो............। मेरा मन थोडा खिन्न हो गया था, सुहास जी मेरी मनोस्थिति को समझ चुके थे अतएव तुरंत किचन की ओर दौड लिए और दो कॉफी बनाकर ले आए। जब तक कॉफी बनी कई विचार मेरे दिमाग में इधर से उधर गुजर गये एक विचार ये भी कि जिस संस्था से ये मिस्टर XYZ जुडे हैं उनके सर्वेसर्वा को ये बात बता देता हुँ ताकि मिस्टर XYZ अपनी हरकतों से बाज़ आ जाएँ किंतु जाने क्या सोचकर मैंने चुप्पी साध लेना ही बेहतर समझा।किंतु मैं उस संस्था के पेज पर जाकर ये चैक अवश्य करता रहा कि आज बकरा कौन बना है, कुछ को मैं जानता था किंतु उनकी रचना नही छ्पी थी जिन्हें मैं जानता नही था और जिनकी रचनाएँ लगातार मेरा मुँह चिडा रही थी उनका दूरभाष नही था सो मैंने जैसी प्रभु की मर्ज़ी कहकर छोड दिया।

 

कुछ दिनों बात मेरी एक मित्र ने मुझे रात्रि में लगभग 11 बजे फोन किया कुछ आवश्यक कार्य था तभी उनके दूसरे फोन पर घंटी बजी, फिर बजी, फिर बजी ,फिर जब चौथी बार बजी तो मैंने ने कहा कौन है ये अतृप्त आत्मा पह्ले इसकी आत्मा तृप्त करो। उन्होनें बताया मिस्टर XYZ हैं कई दिनों से पीछे पडे हैं,जिद कर रहे थे कविताएँ छपवाने की, जिस पेपर से वो जुडे हैं मुझे तो वो कुछ खास नज़र नही आ रहा किंतु मान नही रहे थे तो मैंने दे दी, देने के बात कुछ मदद माँग रहे थे तो मैंने 501/- फोन पे कर दिये अब 2000/- माँग रहे हैं। अनायास ही मेरे मुँह से निकला आज रज़िया गुंडो में फँस गई। उधर से आवाज़ आई क्या मतलब तो मैंने पूरी कहानी बयाँ कर दी, पहले तो उन्हें विश्वास ही नही हुआ फिर बोली अब मैं क्या करुँ, मैंने भी मज़ाक में कह दिया “ एक पेन जॉन ले लो” खैर मैंने कहा जो दे दिया, दे दिया अब कुछ मत देना और हाँ कोई और भी अगर तुम्हारे सम्पर्क में है तो उन्हें इत्तेला कर दो कि मिस्टर XYZ से  सावधान रहे।  खैर उन मोहतरमा की कविताएँ तो छप गई और वो ये सोचकर खुश कि 1500 सौ बचे। कुछ दिन बीतते बीतते दो तीन किस्से और मिले सबको पैसे ऐठने के नाम पर अलग अलग कहानियाँ सुनाई गईं। कल लंच टाइम में अक्स्मात फोन की घंटी बज उठी लंच ख्त्म कर कॉल बैक किया फिर एक परिचित मोहतरमा थीं किसी विषय को लेकर चर्चा करनी थी, चर्चा के दौरान बातों बातों में उन्होंने भी मिस्टर XYZ के विषय में बताया, ये जानकर आश्चर्य हुआ कि उन्होंने 2000/- दे भी दिये और शायद दो तीन दिन बाद कविताएँ छप भी जाएँ, मैंने उन्हें टोकते हुए सारी वस्तु स्थिति बयाँ करने के लिए कहा तो उन्होंने बताया आप तो मुझे जानते हैं, मैं महीने में वैसे भी चार पाँच बार अखबारों में छप ही जाती हूँ किंतु मिस्टर XYZ उनके ऑफिस में काम करने वाले एक लडके की मदद माँग रहे थे जिसके पैर में काफी गहरी चोट लगी है और उसका ऑपरेशन होना है इसलिए मैंने भी 2000/- की मदद कर दी, इस मदद का कविताएँ छपने से कोई लेना देना नही है वैसे भी जिस दिन उन्होंने पैसे माँगे मेरे पति की बरसी थी इसलिए मैंने मना करना उचित नही समझा। ये सब सुनकर मुझे उस दुष्ट घोंघे पर भयंकर क्रोध आने लगा था। मैंने एक ही श्वांस में पिछली घटनाएँ बताई और ताकीद की कि ये बेवकूफी आगे नही करनी है, अपनी स्वंय की गरिमा का और अपनी कलम की गरिमा का ध्यान रखो। अब मेरे सब्र का बाँध टूटने की कगार पर आ गया था अतएव कल सोचा और आज कलम उठा ही ली। कलम इसलिए नही उठाई कि मिस्टर XYZ को एस्स्पोज़ करना है वरन इन जैसे घोंघो के कारण पूरा मीडिया बदनाम हो जाता है। जिस भी अखबार से वे जुडे हैं आखिर कुछ तो मिलता ही होगा या अखबार के मालिक ने छूट दे रखी है कि लो अखबार का एक पेज तुम्हारे नाम जाओ साहित्य के नाम पर लोगों को ठगो, अगर ऐसा है तो वो मालिक महोदय भी कटघरे में हैं। मैं अपने इस लेख की प्रति उन तक पोस्ट द्वारा भिजवाउँगा ज़रुर्। ताकि सच्चाई का कुछ तो पता चले वैसे भी मिस्टर XYZ जिस शहर से ताल्लुक रखते हैं वहाँ कुछ कुछ लोगों से मैं भी परिचित हूँ। कुछ मीडिया के मित्र भी हैं। हो सकता है कुछ लोगों को ये बात बुरी लगे और मिस्टर XYZ को भी पर मैं चाहता हूँ उन्हें बुरे लगे इसलिए तो मैंने लिखा है बाकी जय श्रीराम!

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-24.06.2022