रिपोतार्ज
दो खूबसूरत शामें “THE FEET ON EARTH FESTIVAL”के नाम
आजकल उत्सवों क़े दिन चल रहे हैं। सभी मस्ती क़े मूड में हैं। ये विषय अलग है कि कुछ क़े भाग्य में ये सुख भी नहीं है। किंतु यही तो जीवन क़ी सुंदरता है, कवि प्रदीप क़ी पंक्तियाँ है न।
“सुख दुःख जिसमें संग संग रहते, जीवन है वो नाव,
कभी धूप तो कहीं छाँव, कभी धूप तो कहीं छाँव”।
(रामचंद्र नारायण चंद्र द्विवेदी यानि कवि ‘प्रदीप’, 6 फरवरी-1915)
मेरा मानना है कि ऐसी स्थिति में कभी कभी यूँ ही बिना कुछ सोचे बिचारे कुछ भी कर लेना चाहिए वो भी जब,जब कि आप ज़िंदगी क़ी उलझनों से दो चार हो रहे हों। ऐसा सभी क़े जीवन में होता है कुछ क़े जीवन में कुछ कम और कुछ क़े जीवन में कुछ ज़ियादा! तो भैय्या हम तो ठहरे भगवान जी क़े अच्छे वाले प्रिय से सच्चे से बच्चे सो उन्होंने हमें दूसरे नंबर पर ही रख़ना उचित समझा और लीजीए हुज़ूर हम पक्के तौर पर दो नम्बरी हो गये। सो दो एक साल पहले हमने भी कुछ लिखने का प्रयास किया।
"दहर क़ी उलझनों से बातें, बस दो चार करनी हैं
नहीं पतवार हाथों में, नदी पर पार करनी है"
(प्रदीप देवीशरण भट्ट यानि कवि ‘प्रदीप’,27फरवरी-1963)
अब लगातार तीन दिन क़ी छुट्टी अपने लिए तो ये पनिशमेंट ही समझो भैय्या। घऱ में टी वी और बीवी को एक साथ झेलना बड़ा मुश्किल है। इसी उधेड़बुन में थे कि "The Feet on Earth Festival" का निमंत्रण मिला। घऱ से यही कोई 3-4 KM दूर सालारजंग म्यूज़ियम क़े ऑडिटोरियम में। प्रोग्राम डाँस बेस्ड था और हमारा डाँस से दूर दूर तक भी कोई रिश्ता नहीं लेकिन डाँस देखना और वो भी भारतीय सांस्कृति को दर्शाने वाला, फिर तो मैं देखने अवश्य जाता हूँ।किसी भी प्रकार क़े डाँस का तकनीकी ज्ञान बिलकुल भी नहीं है लेकिन देखकर आत्मा अवश्य प्रसन्न होती है। एक कवि और लेखक क़े तौर पर हम सभी एक ही बिरादरी क़े हैं। मेरा मानना है कि कलाकारों और साधु संतों क़ी कोई जाति नहीं होती। तो भैय्या तुरंत सुहास भटनागर जी को फुनवा मिला दिया। राम राम क़े बाद पूछ लिया प्रोग्राम में चलेंगे। उन्होंने तुरंत कहा अवश्य लेकिन पहले 5 बजे एक मीटिंग बंजारा हिल्स पर अटेंड करेंगे फ़िर सालारजंग का प्रोग्राम अटेंड करेंगे साथ ही ये बताना नहीं भूले कि उन्होंने मुझे कल ही व्हाट्सएप पर इस प्रोग्राम क़ी सूचना भेजी थी जिसे मैंने अभी तक नहीं देखा था। दिमाग वैसे तो हैय्ये न लेकिन जितना भी बचा खुचा था भगवान जी ने हमें पकडा दिया तो उसी में एक ख्याल आया कम से कम दो शामें अपनी खूबसूरत हो सकती हैं बशर्ते कोई .............। दीपावली का समय चल रहा है सो ख्याल ये भी आया कि मेट्रो में तो गज़ब की भीड होगी सो साहब अपनी मैस्ट्रो स्कूटी को याद किया जो कई महीनों से नाराज़ चल रही थी कि मुझे कहीं घुमाने क्यूँ नहीं ले जाते फोकट में पेट्रोल भरवाकर छोड देते हो चलाते हो नहीं। सो पहले तो स्कूटी को धोया फिर प्यार से पुचकार कर स्टार्ट किया तो थोडी सी ना नुकुर के बाद वो भी स्टार्ट हो गई। सुहास जी को पीछे बिठाया और ट्रैफिक से जूझते हुए जा पहुँचे बंजारा हिल्स, लगभग एक घंटे बाद फिर वहाँ से अपने घर के आगे से गुजरते हुए 19:15 पर जा पहुँचे सालारजंग म्युज़ियम। कार्यक्रम से लगभग आधा घंटा लेट (जो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं)
अन्दर हॉल में पहुँचे तो कार्यक्रम शुरु हो चुका था और पुजीता कृष्णा का कुचीपुडी नृत्य अपने पूरे जोर पर था।हॉल में पिन ड्राप साइलेंस था। हमने अपनी जगह पकडी और तल्लीनता से डांस देखने लगे। कुछ भी तकनीकि ज्ञान न होने के बावज़ूद मैं डांस को आत्मसात करने का प्रयत्न कर रहा था। पूजिता ने अद्भुत नृत्य प्रस्तुत किया। अब बारी थी शर्मिला बिस्वास जी कि उन्होंने भी अदभुत ओडिसी नृत्य प्रस्तुत किया । उम्र का तकाज़ा कहें या कुछ और उन्होंने ये नृत्य दो भागों में प्रस्तुत किया जिसे उन्होंने बाद में बताया भी कि उम्र बढने के कारण वे अब एक स्टांस में इसे प्रस्तुत नहीं पर पाईं । खूबसुरत प्रस्तुति। अब बारी थी पल्लवी वर्मा मिन्नागंति एवम नेनिता प्रवीण (फिजिकल थियेटर) की जिन्होंने एक नृत्य के माध्यम से एक खूबसूरत नाटकी प्रस्तुत की। सच कहूँ तो दोनों ने मन मोह लिया। दोनों की प्रस्तुति देखकर ऐसा लगता था कि जैसे जलधि की तरंगे एक दूसरे के साथ किलोल कर रही हैं। बस आज की प्रस्तुतियां समपन्न हो चुकी थी। एक बेहतरीन शाम अपने उतार पर थी। कार्यक्रम के बाद पल्ल्वी व नेनिता से मिलना सोने पे सुहागा जैसा था। पल्ल्वली और नेनिता की उम्र में काफी अंतर है किंतु मंच पर दोनों की प्रस्तुति देखकर नहीं लगा कि ऐसा कुछ है।
अगले दिन सुबह एक और निमंत्रण आ पहुँचा। शाम को 7-11 बजे तक ‘दीपावली मिलन समारोह’। अब थोडा कंफ्यूजन था कि दोनों कार्यक्रम कैसे अटेंड करेंगे। खैर मैं निश्चित था कि मुझे तो डांस का प्रोग्राम ही अटेंड करना है। फिर भी सुहास जी से पूछा तो उन्होंने भी यही कहा डांस प्रोग्राम फाईनल सो साहब रविवार को हम 18:30 पर ही सालारजंग म्युज़िय जा पहुँचे। कार्यक्रम की शुरुआत श्रीविद्या अंगारा सिन्हा के कुचीपुडी नृत्य से हुई लगभग 30-35 मिनिट्स तक सिर्फ एक शब्द आनंदम आनंदम आनंदम्। भारतीय नृत्य प्रस्तुति में कितना स्टेमिना लगता है मैं सोचकर ही रोमांचित हो रहा था। मैं व्यक्तिगत रुप से कहूँ तो इतना आनंद आया कि अगर ये नृत्य दो घंटे भी चलता मैं इसे अपलक देखता रह सकता था। उत्तमता के उच्च मानदंड स्थापित करते कलाकार्। इसके बाद Maaraa (Manmatha or Kamadeva-Cupid) की बेहतरीन प्रस्तुति। बेहतरीन गायक प्रस्तुति के साथ साथ नृत्य प्रस्तुति। अद्भुत अद्भुत अद्भुत्। अंतिम प्रस्तुति के तौर पर सन्निधा राजा सागि द्वारा कुचीपुडी नृत्य की बेहद उम्दा प्रस्तुति। मैं सदैव तुलनातक अध्य्यन से बचता हूँ। और यहाँ तो तुलना करने का प्रश्न ही नहीं उठता। खूबसूरती के साथ साथ कुचीपुडी की नृत्य मुद्राओं के प्रदर्शन में न पूजिता कम लगी न श्रीविद्या अंगारा सिन्हा और न सन्निधा राजा सागि। जहाँ तक शर्मिला विस्वास जी की बात है वे जिस मुकाम पर हैं वो ये दर्शाती है कि उन्होंने ओडिसी नृत्य को अपना सब कुछ अर्पण कर दिया है। स्त्री सुंदर हो तो अच्छा किंतु यह भी सत्य है कि सुंदरता ज़ियादा दिनों तक साथ नहीं देती। साथ देती है आपके द्वारा अर्जित विद्या। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि ये छहों स्त्री इस पैमाने पर खरी उतरती हैं और यक्षगाना में मैं किरिमाने श्रीधारा हेगडे (पुरुष) ने ये कहीं भी अहसास नहीं होने दिया कि वो किसी से कम हैं।
अंत में दो खूबसूरत शामें प्रदान करने के लिए “ THE FEET ON EARTH FESTIVAL” की पूरी टीम को प्रणाम। पूजिता कृष्णा को विशेष्।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-25:10:2022
No comments:
Post a Comment