Wednesday, 25 May 2022

" बस यूँ ही "

 


रिपोतार्ज़

                                            

                                     “बस यूँ ही”




 

कभी कभी आप कुछ करके या लिखकर भूल जाते हैं और ऐसा अकेले मेरे साथ ही होता हो ना जी ना ऐसा कभी न कभी सबके साथ होता है। खैर किस्सा कुछ यूँ है कि मैं 30 नवम्बर-2018 को मुम्बई से रिलीव हुआ और 12 दिसम्बर-2018 को मैंने अपने चरण कमल हैदराबाद में रख दिये। कादम्बिनी क्ल्ब, साहित्य सेवा समिति काव्य धारा, काव्य सरोवर, कहानीवाला, सूत्रधार न जाने कितन ग्रुप्स से जुडाव हुआ। “ यहाँ यह सनद रहे कि हैदराबाद ऑफिस में मैं अकेला देहली वाला (हिन्दी भाषी) बाकी सब तेलगू, दो कन्नड वाले। वो बोलते और मैं सुनता रहता किन्तु अच्छी बात यह थी कि ऑफिस में एक मात्र हिंदी समाचार पत्र “डेली हिन्दी मिलाप” मेरी सीट पर मेरे आने से पहले ही रखा हुआ होता। मैं भी खुश कि चलो कोई तो है जो दोस्ती निभा रहा है। मेरा अपना मानना रहा कि छ्पना और खपना मेरे बस की बात नही किंतु यहाँ यानि हैदराबाद में आकर कुछ मित्रों की सलाह को खारिज़ न कर सका और अंतोगत्वा 29 फरवरी-2020 को मेरा पहला काव्य संग्रह दरिया सूखकर सहरा हुआ है” उर्दु हॉल, हिमायत नगर में विमोचित हो गया।  फिर एक लम्बा समय कोरोना भाई साहब खा गये (अभी भी बीच बीच में अपनी उपस्थिति जताने से नही चूकते) इसी बीच निमंत्रण आते रहे और कोरोना भाई साहब को छ्काते हुए कुछ समय चुराते हुए विभिन्न शहरों के कवि सम्मेलन वगैरह में अपनी शिरकत करते रहे।

 

14 फरवरी-2022 जब हम ऑफिस पहुँचे तो टेबल पर रखे “डेली हिंदी मिलाप” रखा था, फ्रेश होकर पन्ने पलटने शुरु किया तभी होली पर्व पर प्रतियोगिता के विषय में पढा।जो कि युद्द्वीर फांऊडेशन करा था। कुछ देर सोचा और अगले ही दिन फॉर्म वगैरह भरकर कविता, फ़ोटो स्कैन की और भेज दिया।  इस बीच हम ऑफिस व्यक्तिगत कार्यों में व्यस्त हो गये। इसी बीच 15,16 अप्रैल गोवा में व 29,30 अप्रैल व 1 मई नेपाल के सम्मेलनों में व्यस्त हो गये। फुर्सत मिली तो कुछ और कार्यो में मन लगाकर बैठ गये ( हम सच्ची कह रहे हैं कार्यो में न कि किसी नाज़नीन से) लगभ 15-20 दिनों तक मेल भी खोलने की जहमत नही उठाई और उठाते भी क्यों अवकाश पर जो थे। घूमफिर कर 16 मई को हैदराबाद पहुँचे फिर 17 को ऑफिस्। एक लम्बे सफर के बाद थकावट भी आ ही जाती है ( भाई लोगों गलत न समझना-हम अभी बूढे न हुए हैं वैसे भी कवि का तन बूढा होता है कलम नही बल्कि कलम की धार तो कुछ ज़्यादा ही तेज़ हो जाती है) खैर 18 को मेल खोला तो मिलाप का मैसेज  “तनिक आप अपना दूरभाष/मोबाईल नम्बर तो देवें। मेल पढते ही हमारी बत्ती जल गई सब कुछ याद हो आया। तुरत ही अपना मोबाईल नम्बर छोड दिया, और लीजिए अगले दिन फातिमा जी का फोन आ गया। आप तो डेली हिन्दी मिलाप ऑफिस के सामने ही रहते हैं फिर आपने अपना मोबाईल नम्बर क्यूँ नही दिया। हमने बताया शायद भूल गये होंगे। फातिमा जी फिर बोली हम कब से आपसे सम्पर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं खैर कल आप ऑफिस आकर मिलें, हमने कहा सम्भव नही ऑफिस कार्यो में व्यस्त है, फुर्सत पाते ही आपके दर्शन करेंगे  सब कुछ जानते हुए भी हमने पूछा वैसे फातिमा जी मैटर क्या है। उन्होंने तुरंत ही बताया आपकी कविता को पुरुस्कार मिला है आप अपना प्रमाणपत्र यहाँ आकर प्राप्त कर लें, हमने कहा ऐं ये क्या बात हुई, फिर पूछ ही लिया क्या कोई फंक्शन नही कर रहे है उन्होंने तुरत कोरोना भाई साहब की दुहाई दे डाली। हम सोच में पड गये, कोरोना भाई साहब एक बार आये दूसरी बार आये तीसरी बार आए, अब जब कोरोना खुद को भारत में सुरक्षित महसूस नही कर रहा फिर ये इससे इतना क्यूँ डर रहे हैं, अरे भाई फंक्शन कर लेते थोडा चाय पानी का जुगाड हो जाता। खैर हमने आज यानि 23 मई को आने का वादा दिया। फातिमा जी बोली आज तो18 है हमने कहा मोहतरमा जहाँ से घर चलता है उसके प्रति भी हमारी कुछ जिम्मेदारी है ना।

 

आज लगभग 12:30 बजे हम हिंदी मिलाप के ऑफिस पहुँचे, रिसेप्शन वाले ने फातिमा जी को मैसेज छोडा और कुछ ही देर बाद फातिमा जी एक लिफाफा लेकर हमारे सम्मुख प्रकट हो गई। दुआ सलाम के बाद उन्होंने हमें प्रमाण पत्र व एक 6,000/- हजार का चैक थमा दिया और प्राप्ती के हस्ताक्षर के लिए कहा हमने भी चुपचाप अपनी फोटो के आगे ऑटोग्राफ देकर इतिश्री कर ली। हमने उन्हें धन्यवाद किया तो वो फट पडी, आप लोगों को क्या लगता है हम इसी काम के लिए बैठे हैं, हम मिलाप के स्टाफ हैं ,ये ट्रस्ट का काम हैं लेकिन हम फिर भी कर रहे हैं। मुझे लगा वे पता नही किस किस से नाराज़ होकर भरी बैठी हैं इसलिए पुन: उनका धन्यवाद किया किंतु उनकी नाराज़गी जा ही नही रही थी” आप सामने ही रहते हैं फिर भी.......... मैंने कहा मेरी कहाँ गल्ती है फातिमा जी मैं 3 हफ्ते से प्रवास पर देहली में था 16 को हैदराबाद वापिस आया हूँ, इससे पहले कि वे कुछ और कहती मैंने जय श्रीराम बोला और दरवाज़े की ओर लपक लिया।

 

ऑफिस आकर प्रमाण-पत्र चेक किया तो पाया मेरे प्रमाण-पत्र के साथ चिपक कर प्रिया जैन का प्रमाण-पत्र भी साथ ही आ गया है ( ना ना हुज़ुर सिर्फ प्रमाण-पत्र चेक वगैरह कुछ नही) आज तो सम्भव नही हाँ कल ज़रुर फातिमा जी को कष्ट दूँगा क्यों कि कल अगर प्रिया जैन अपना प्रमाण-पत्र लेने पहुँची और वो उन्हें नही मिला तो .............

 

 

जय श्रीराम

 

 

 

-प्रदीप देवीशरण भट्ट-23:05:2022


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