-प्रदीप की कलम से-
आपदा में
अवसर –
(-कोरोना
काल )
आजकल
जिस तरफ़ भी देखिए दो चर्चाएं आम हैं। एक है कोरोना और दूसरा धूर्त चीन। ख़ैर चीन
का इलाज तो भारत की दमदार सरकार और भारतीय
सेना ने कर ही दिया समझो बाक़ी बचा कोरोना तो इसका भी देर सवेर इलाज हो ही जाएगा। इस
लेख का शीर्शक “आपदा में अवसर” रखने का किस्सा भी बड़ा मजेदार है । कल ही मेरे पास
एक ग्रूप में एक चुटकुला आया जिसे मैं यहाँ शेयर कर रहा हूँ। एक व्यक्ति जिसे कोरोना
पोसिटिव आया तो वह सरकार द्वारा बनाए गये कोरोंटाइन में रहने चला गया। वहाँ पहले से
ही काफी लोग थे। दो तीन दिन बाद वहाँ कोरोना का इलाज करा रहे लोगों से पोलिस से शियाकय
की कि ये व्यक्ति जब से आया है दिनभर फोन पर ही लगा रहता है पता नहीं किसे किसे धमकी
देता रहता है। जब पोलिस ने उससे पूछताछ की तो बड़ा ही हास्यास्पद किस्सा सामने आया।
पता चला कि कोरोना का ईलाज कराने आए व्यक्ति ने मोदी जी का भाषण सुना था कि लोगों को
“ आपदा को अवसर में बदलना चाहिए” बस ये बंदा जिस दिन से आया है अपने सभी देनदारों को
फोन करके बोल रहा है मेरा पैसा लौटा दो वरना मैं पोलिस को बता दूँगा कि तुम भी मुझसे
मिले थे और फिर पोलिस तुम्हें घर से पकड़कर उठा लाएगी कोरोना टैस्ट कराएगी, नेगेटिव
आए तो कोई बात नहीं अगर पोसिटिव आए तो मेरे साथ रहना पडे़गा और मैं तुम्हें यहाँ तकादा कर कर के ज्यादा परेशान
करुँगा। पोलिस भी हैरान परेशान कि इस बंदे के खिलाफ क्या केस दर्ज़ करे किंतु मन ही
मन उस कोरोना पोसिटिव बंदे की अक्ल की दाद भी दे रही है।
वुहान
(चीन) की लैब में बायोलॉजिकल वैपन के तौर पर विकसित किया गया कोरोना जिसे चीन
द्वारा जान बूझकर विश्व में फैलाया गया ताकि वह विश्व की अर्थव्यवस्था धरातल पर आ
जाए और चीन सस्ते दामों में बड़ी बड़ी कंपनियाँ ख़रीद ले और अपनी विस्तारवादी
नीतियों में क़ामयाब हो जाए किंतु वो दोनों ही मोर्चों पर पूरी तरह असफ़ल होता
दिखाई दे रहा है। विश्व बिरादरी उसे हेय दृष्टि से अलग देख रही है।
पिछले
300 वर्षों का इतिहास बताता है कि प्रत्येक 100वर्षों के अंतराल में महामारी आती
रहती है। करोड़ो की संख्या में लोग मरे भी हैं आशा की जानी चाहिए कि कुछ वर्ष पहले
जीका वायरस का टिका बनाने में क़ामयाब होने वाली हैदराबाद की कंपनी "भारत
बायोटेक" टेक कोरोना का टिका बनाने में जल्द क़ामयाब हो जाएगी। भारत बायोटेक
के संस्ठापक डोक्टर कृष्णा एला जिनका जन्म तमिलनाडू के थिरुथानी में एक मध्यम
किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने अमेरिका में पढाई की वहीं बसना भी चाहते थे
किंतु माँ के कहने पर वे भारत लौटे और भारत बयोटेक कम्पनी बनाई। इस तरह की आपदाओं
में मानव जाति को जहाँ जान देकर क़ीमत चुकानी पड़ती है। वहीं ये ज़िंदगी जीने के नये
रास्ते भी खोलती है। शुरू शुरू में जहाँ भारत सरकार और राज्य सरकारें लाकडाऊन
लगाकर स्थिती को काबू में करने के प्रयास करती दिखीं वहीं इस राजनीति भी ख़ूब हुई।
कोरोना
काल में जहाँ मजदूर वर्ग शहरों से अपने अपने गाँव को पलायन करने को मजबूर हुआ वही
नौकरी पेशा लोगों को भी तनख़्वाह के नाम पर 20-30% प्रतिशत तनख़्वाह से संतोष करना
पड़ा वहीं सरकारी नौकरी वालों को भी अपने तीन महँगाई भत्तों को गवांना पड़ा। किंतु
इन सबके बावजूद इस कोरोना काल में लोगों ने संयुक्त परिवार की महत्ता को समझा।
मजबूरी में सही लोगों ने घऱ में रहकर घऱ की घरवालों की क़ीमत समझी । मोबाईल गेम
खेलने में अपनी शान समझने वाले बच्चों ने पुराने खेलों लूडो, साँप
सीढ़ी कैरम को घऱ के बुजुर्गो से जाना समझा और खेलकर एन्जॉय भी किया है।
बच्चे भी ऑनलाइन
पढ़ने का नया अनुभव करके लुत्फ़ उठा रहे हैं। कवि साहित्यकार भी ऑनलाइन मीटिंग कर गोष्ठियां आयोजित कर रहे हैं
वहीं प्राईवेट और सरकारी मीटिंग्स भी ऑनलाइन हो रही हैं। निश्चित इससे नये नये
रास्ते उत्पन्न हो रहे हैं वहीं फिजूलखर्ची भी रुकी है। बच्चे हों या बडे़ या फ़िर
गली के नुक्कड़ पर पानीपूरी की दुकान पर सी सी करती महिलाओं की टोली, सबकी
जायके के लिए मचलती ज़ुबान पर ब्रेक लगा है। इस स्थिती का फ़ायदा भी हुआ है बच्चे
घऱ के ख़ाने में टेस्ट ढूँढ़ रहे हैं और आपदाकाल में क्या क्या क्या और कैसे एहतियात
बरतें।
अंत
में इस कोरोनाकाल में लाकडाउन के कारण जब यातायात के सब साधन बंद थे तब पोल्यूशन
में इतनी कमी दिखाई दी की नदियाँ स्वतः रिचार्ज होने लगीं। डेल्ही में जहाँ यमुना
नदी को गंदा नाला कहा जाता था में मछलियां तैरते हुए पाई गईं। सहारनपुर , बिजनौर
से हिमालय के साफ़ दर्शन की तस्वीरें वायरल हुई। इससे ये तो साबित होता है कि आपदा
में भी अवसर होते हैं जिन्हें पहचानकर फ़ायदा लिया जा सकता है। जैसे भारत सरकार ने
"आत्मनिर्भर भारत अभियान" के तहत 2लाख PPE किट
बनाकर इसका परिचय दिया।
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प्रदीप देवीशरण भट्ट -
9:07:2020
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