Saturday, 2 June 2018

unisef मतलब चुनिंदा धर्म जातियों के बच्चों का रखवाला

               .            Satarday, June-02,2018

“यूनिसेफ मतलब चुनिंदा धर्म और जातिओं के बच्चे”

पिछले सप्ताह हिंदी एवम होलिवुड फ़िल्मों की जानी मानी अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने म्यांमार स्थित रोहिंग्या शरणार्थी कैम्प्स का दौरा किया। इन कैम्प्स में लगभग 7 लाख के तक़रीबन शरणार्थी रह रहे हैं, निश्चित रूप से उनकी स्थिति अच्छी नहीं है और ऐसा भी नहीं की विश्व में जहाँ जहाँ भी शरणार्थी रह रहे हैं उनकी स्थिति बहुत अच्छी है किंतु पिछले 2-3   वर्षों से रोहिंग्या मुस्लमानों  के विषय में मीडिया और राजनैतिक स्तर पर कुछ ज्यादा ही तव्वजो दी जा रही है। ऐसा प्रतीत हो रहा है किपूरे  विश्व में केवल रोहिंग्या पर ही सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहा है। जब कि अगर ईमानदारी से विश्व पटल पर नज़रें दौड़ाई जाए तो पाएंगे कि पूरे विश्व में सबसे ज्यादा अत्याचार करने में सिर्फ़ मुस्लिम ही ज़िम्मेदार हैं। मुसलमान  हिंदुओं क्रिश्चन,यहुदिओं और अन्य धर्मो के लोगों  मारकर अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है।अजीब बात ये भी है कि इस वर्चस्व कायम करने ही होड़ में वे मुसलमानों को भी मार रहे हैं कभी शिया के नाम पर कभी सुन्नी के नाम पर या  फिर अहमदिया के नाम पर। और इसकी ताज़ा मिसाल म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान जिन्होंने 2012 में एक बौद्ध भिक्षुणी के साथ सामूहिक बलात्कार किया और उसके परनाम स्वरूप “बौद्ध” जो शांति के लिए जाने जाते हैं ने भी तात्कालिक सरकार के उदासीन रैवैय्ये को देखते हुए हथियार उठाना ही एक मात्र उपाय समझा। उसके बाद से ये रोहिंग्या मुसलमान आज उस स्थिति में पहुँच गए हैं कि इनके लिए अपना कोई देश ही नहीं बचा।  चूँकि  ये  अपनी बद आदतों के चलते  खुराफ़ात किये बिना बाज़ नहीं आते जिस देश में रहेंगे उसी देश के दुश्मन बन जायेंगे, शिया सुन्नी अहमदिया और ना जाने क्या क्या ब्राचों के लोग अपने ही लोगों के दुश्मन बन जायेंगे । लड़ना झगड़ना मरना इनके स्वभाव में है। सामान्यत: हर गलत काम के पीछे इन्हीं लोगों का रोल निकलता है तो आज विश्व में इनकी स्थिति बहुत ही ज्यादा शोचनीय बनती जा रही है। लेकिन यक्ष प्रश्न ये है कि वो चाहते हैं क्या और किससे ?

प्रियंका चोपड़ा द्वारा म्यांमार स्थित रोहिंग्या शरणार्थी कैम्प्स के दौरे के समय हर प्रकार के मीडिया ने अलग अलग तरह ही तस्वीरे जिसमें प्रियंका रोहिंग्या बच्चों के साथ खेलते हुए, दुलार करते हुए अपनी भावनाएं व्यक्त करने का प्रयत्न कर रही हैं। इस प्रकार की तस्वीरे मीडिया पर वायरल होते ही प्रियंका तुरंत ट्रोल होने लगी ।जितनी चीख चिल्लाहट हुई उससे ऐसा प्रतीत होने लगा कि जैसे देश में बहुत कुछ गलत हो गया है और उसकी जिम्मेदार केवल प्रियंका चोपड़ा ही है। जब कि प्रियंका चोपड़ा UNICEF की ब्रांड राजदूत होने के कारण सिर्फ़ अपना काम ही कर रही थी।  प्रियंका चोपड़ा के अतिरिक्त भी हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री से सदी के महानायक अमिताभ बच्चन एवं शर्मीला टैगौर भी यूनिसेफ के ब्रांड रह चुके हैं। राजदूत चलिए पहले यह जान लेते हैं कि ये यूनिसेफ है क्या और ये विश्व स्तर पर क्या क्या कार्य करती है।

यूनिसेफ यानि यूनाईटेड चिल्ड्रेन फण्ड नमक एक संस्था है जो कि दूसरे विश्व युद्ध के बनी इस संस्था का उद्देद्श्य ही द्वितीय युद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को स्वास्थ्य सेवाएँ के साथ साथ खाना उपलब्ध कराना भी था। इसकी स्थापना 11 दिसम्बर 1946 को हुई एवं इसका मुख्यालय न्यूयार्क में बनाया गया। UNICEFको इसके कार्यो के लिए 1965 में नोबेल शांति पुरुस्कार से नवाजा गया। इसी क्रम में इसे 1989 में इदिरा गाँधी शांति पुरुस्कार से भी सम्मनित किया गया। यूनिसेफ 190 से अधिक देशों  में कार्य कर रही है। यूनिसेफ बच्चों को शिक्षा, पोषित आहार एवं स्वास्थ्य संबधित सहायता प्रदान करती है । यह संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर कार्य करती है।

निश्चित रूप से यूनिसेफ एक विश्व कल्याण के लिए कार्य करने वाली संस्था है किन्तु लोगों का गुस्सा यूनिसेफ के लिए न होकर इस बात पर  है कि भारत में लगभग 40 प्रतिशत आबादी ऐसी है जिसको इस संस्था की मदद सबसे ज्यादा ज़रूरत है किन्तु ये संस्था सिर्फ़ वहीँ अपनापन दिखाती है जहाँ इसे अपने आप को विश्व बिरादरी के सामने ज्यादा प्रोजेक्ट करना होता है। प्रियंका चोपड़ा को क्यों नहीं वो 40 प्रतिशत आबादी दिखाई नहीं देती है जो ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन व्यापन कर रहे हैं , उस बिरादरी में तो सभी धर्मों और जातियों के बढ़े बूढ़े बच्चे सभी शामिल हैं। लेकिन यक्ष प्रश्न फ़िर वही है कि प्रियंका को कौन बताएगा कि भारत में ही इन बच्चों की भी फिर्क की जानी चाहिए। चूँकि प्रियंका चोपड़ा ये काम सीधे तो करती नहीं है तो ये तो  यूनिसेफ की ही हुई कि वो प्रियंका का बताए कि तुम्हारे अपने देश में भी बच्चे इन्हीं सब मुसीबतों से दो-चार हो रहे है तो आओ भारत में कश्मीरी विस्थापितों की भी ख़ोज खबर ले ली जाये किन्तु यूनिसेफ को इससे क्या मतलब सो   इस बार उन्होंने इस दिखावे के लिए म्यांमार को चुना और वो भी रोहिंग्या मुसलमानों के कैंपस को क्यों की यूनिसेफ भी वहीं इस प्रकार का दिखावा करती है जहाँ उसे अमेरिका का हित दिखाई देता है उसके लिए बाकी सभी देश गौण हैं। जिन रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार में हिंदुओं का सामूहिक नरसंघार  किया क्या उनके बच्चों को यूनिसेफ की मदद की दरकार नहीं है। मदद में भी पक्षपात ? 1947 तक जब पाकिस्तान,बांग्लादेश  भारत वर्ष का ही हिस्सा थे तो इन दोनों ही देशों में हिन्दुओ की आबादी क्या थी और आज क्या है? जो मारे गए उनके बच्चों के लिए  यूनिसेफ या और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने क्या किया। निश्चित रूप से कुछ नहीं । मैं गूगल पर सर्च करता रहा किन्तु मुझे तो कुछ नहीं मिला कि यूनिसेफ ने कश्मीरी बच्चों के लिए कुछ किया हो। शायद उनके शब्दकोष में कश्मीरी विस्थापितों और विशेष कर हिंदुओं को छोड़कर पूरा विश्व समाहित है।

रोहिंग्या मुसलमानों ने म्यांमार में जो तांडव किया है उसके बाद उनकों कोई भी देश क्यों कर स्वीकार करना चाहेगा । रोहिंग्या मुसलमानों के कैम्प्स की फोटों देखिये फटेहाल स्थिति किंतु  “ एक आदमी एक औरत उसके आसपास 7-8 बच्चे और एक पेट में ज़रूर दिखाई देगा “ वो निकला तो 2 महीने बाद दूसरा दिखाई देगा मतलब इनका जन्म ही बस जन संख्यां बढ़ाने के लिए हुआ लगता है। यूनिसेफ इसको रोकने के उपाय क्यों नहीं करती। इसका एक मतलब और हो सकता है कि विश्व की चौथाई आबादी सिर्फ़ इसलिए कमाए ताकि इन जाहिलों का पेट भरा जा सके। आख़िर ये स्थिति क्यों और कब तक ? कभी तो इस भयावह होती स्थिति को रोकने का यत्न करना पड़ेगा अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब पानी के साथ साथ खाने के भी लाले पड़ने वाले हैं।  

-                                              -प्रदीप भट्ट -








 




 





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