-कौन कहता है आतंक का धर्म नहीं होता -
कितनी अजीब और हैरतअंगेज बात है कि भारत की जनता जिन नेताओं को चुनकर संसद में अपनी रक्षा और तकलीफ़ों के समाधान हेतु भेजती है वही नेतागण इतने संवेदनहीन व्यवहार का उदहारण प्रस्तुत करते हैं जिससे टीवी पर देख रही और समाचारों पत्रों द्वारा पढ़ रही जनता को अहसास हो रहा है कि उन्होंने किन लोगों को संसद में भेज दिया है जिन्हें इराक में मारे गए 39 भारतियों से ज्यादा फ़ेसबुक डेटा चोरी पर चर्चा ज्यादा महत्वपूर्ण लगती है। आख़िर किस मिट्टी के बने हैं ये लोग ? क्या आज राजनीती इतनी ओछी हो गई है कि लोगों के मरने पर भी नेतागण सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी मुद्दे पर वार्ता या चर्चा करना चाहते हैं जिसमें उनका स्वार्थ या हित छुपे हुए हैं। निश्चित रूप से ये स्थिति अच्छी नहीं है।
15 जून 2014 को मोसुल जो कि इराक का एक शहर है में 40 भारतीय मजदूरों का ISIS द्वारा अपहरण कर लिया गया। तब भारतीय राजनीती में भूचाल तो नहीं आया वरन ऐसे हालत जरुर बन गये थे जिससे विपक्ष को भाजपा को कोसने का मौका मिल गया था किन्तु विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा व्यक्तिगत तौर पर ये आश्वासन दिया जाता रहा कि वे इस गंभीर मुद्दे पर अपनी पैनी नजर बनाए गुए हैं। सुषमा स्वराज का स्वभाव और उनकी इमेज इतनी अच्छी है कि भारत की आम जनता को ये विश्वास था कि जैसे अब तक उन्होंने प्रत्येक कार्य को सुचारू रूप से अंजाम दिया है वे 39 लोगों को किसी ना किसी प्रकार से स्वदेश वापस लेकर जरुर आयेगीं। किन्तु ऐसा हो न सका और लगभग चार वर्ष के पश्चात् जब इस बात के पक्के सबूत मिल गये कि ISIS द्वारा 40 में से 39 लोगों मार दिया गया है तो देश में सभी राजनैतिक पार्टियों ने इस पर जमकर कोहराम मचाना शुरू कर दिया। उस कोहराम का एक ही उद्देश्य था कि किसी भी तरह उन ३९ मजदूरों की निर्मम हत्या का दोषी मोदी सरकार को ठहराया जा सके।
ISIS ने 2014 में ही 40 में से 39 लोगों को इराक के मौसुल से आठ किलोमीटर दूर बादुश नामक इलाके में धर्म के आधार पर बेरहमी से मार दिया गया और जमीन के सैकड़ों फुट नीचे दफ़न कर दिया गया । एक हिंदू मजदूर जो उस निर्मम हत्याकाण्ड से बच सका तो उसका सिर्फ़ एक कारण था और वह था उसका झूठ बोलना। इराक के मौसुल में मजदूरी करने गये मजदूर जिनमें पाकिस्तानी बांग्लादेशी और भारतीय भी थे तो ISIS सभी मजदूरों से उनका नाम पूछा जिनका नाम मुस्लिम था उन्हें छोड़ दिया गया और बाकी बचे 40 मजदूरों में से एक हरजीत ने ISIS को अपना नाम हरजीत न बताकर अली बताया और इसी वजह से उन्होंने उसे मुस्लिम समझकर छोड़ दिया। अगर हरजीत झूठ ना बोलता तो ये कभी पता ना चलता कि ISIS ने किस प्रकार धर्म के आधार पर निर्मम हत्याकांड को अंजाम दिया।
पहले हम पूरी दुनियां में वहशत और दहशत का पर्याय बन चुके आतंकी संगठनों जिनमें अलकायदा ,तालिबान ,बोको हरम तहरीक -ए –तालिबान पाकिस्तान,अलनुस्रा फ्रंट,हिज्बुल्ल्हा हमास ,कुर्दिस्तान एवं रेवोल्शुनरी आर्मड फोर्सेस ऑफ कोलंबिया जैसे दुर्दांत संघठन पूरी दुनिया में आतंक मचाए घूम रहे थे जिनसे पार पाना किसी एक देश के बस की बात नहीं थी । जाने कितने मुस्लिम आतंकी संगठनों के विषय में पढ़ते रहते थे कि कैसे उन्होंने पूरी दुनियां को अपने कब्जे में लेने के लिए जहाँ तहां आतंकवादी हमले किये हैं । अजीब बात ये थी कि पश्चिमी देश और मीडिया इस तरह की किसी भी घटना पर ज्यादा तवज्जो नहीं देता था किन्तु आज की तारीख में इनमें से बहुत सारे संघठनों ने अब पुरे यूरोप में अपनी दशहत की दस्तक दे दी है जिससे अमेरिका ब्रिटेन फ़्रांस जर्मनी और रशिया भी अब इनसे पार पाना चाहते हैं किन्तु यक्ष प्रश्न यही है कि हर देश इसे अपनी धरती से मिटा देना चाहता है वह आज भी अच्छे और बुरे आतंकवाद का सहारा लेकर इससे बचना चाहते हैं किन्तु ऐसा कब तक होगा मालूम नहीं।
ये भी सत्य है की आतंकवाद ने सबसे ज्यादा यदि किसी को परेशान किया है तो वो है भारत देश। इस विषय में भारत विश्व बिरादरी के सामने बार बार इसके बुरे परिणामों के विषय में बताता रहा किन्तु सब सोने का नाटक करते रहे। आज स्थिति ये है कि दुनियां के ५४ -५५ मुश्लिम देशों में से अधिकतर में भी आतंकवादी गतिविधियाँ पुरे ज़ोर पर चल रही हैं फ़िर वो चाहे इराक हो कर सीरिया कुर्दिस्तान हो अफ़गानिस्तान या अन्य कोई मुस्लिम देश । किन्तु इसके साथ साथ यूरोप अमेरिका ब्रिटेन भारत पाकिस्तान और अन्य देशों में इस्लामिक आतंकवाद ने लोगों का जीना हराम कर दिया है । जो देश या लोग कहते हैं कि आतंकवाद और आतंकवादी का कोई चेहरा नहीं होता उन्हें थोडा और अधिक जानकारी जुटानी चाहिए । आज पूरे विश्व में सिर्फ़ और सिर्फ़ इस्लामिक आतंकवाद ही पनप रहा है ये और बात है कि कुछ राजनेता वो भी भारत में और कुछ छद्म बुद्धिजीवी जिनके सुर में बिका हुआ मीडिया भी अपना सुर मिलाकर ये साबित करने की कोशिश करता रहता है कि आतंकवादी और आतंकवाद को कोई चेहरा या धर्मं नहीं होता।
जिन बेहुदे और कम अक्ल लोगों को आतंकवादी और आतंकवाद में फ़र्क नहीं मालूम या तो वे झूठ बोल रहे हैं या वे भी कहीं ना कहीं आतंकवादियों के रोल में ही हैं क्यों कि आतंकवाद का विरोध न करने वाला भी कहीं ना कहीं आतंकवाद का पोषक ही होता है। ऐसे लोगों के घर में जब तक कोई आतंकवादी के हाथों नहीं मारा जाता है तब तक उन्हें असलियत पता नहीं चल पति अन्यथा ऐसे लोग अपनी राजनीती महत्त्वकान्षाओं को पोषित करने का मौका कहीं न कहीं निकल ही लेते हैं । कुछ दिनों पूर्व ईराक के रुदेव मीडिया तेत्वोर्क ने 8 मार्च 2017 को लिखे एक लेख में इस बात को माना कि ISIS ने कैसे जेलों में बंद अपने ही 670 लोगों (मुस्लिमस, क्यों कि वो सब शिया,कुरदीश यजीदी और दुसरे धर्मो के लोग थे) की निर्मम हत्या की।आश्चर्य की बात ये है कि इस हत्याकांड से एक रात पहले ही जेल में तैनात सभी गार्ड जेल छोड़ छोड़ कर भाग गए थे लेकिन जाता जाते उन्होंने जेलों के दरवाजों को पूरी तरह सील कर दिया था जिस कारण जेल में बंद लोग भाग नहीं ।
आख़िर ISIS इतना दुर्दांत क्यूँ है,इतिहास में झाँकने पर इस प्रकार की कई घटनाएँ आखें खोलने के लिए पर्याप्त हैं । एक किताब “आदि तुर्क कालीन भारत “ में जियाउद्दीन बरनी के विचारों से जिसमें उनके नाना हुसामुद्दीन गुलाम वश के सुल्तान गयासुद्दीन बलबन से सहयोगी और सिपहसलार का जिक्र है कि यदि शिर्क और कुफ्र जड़ पकड़ गए हों और सभी काफिरों और मुशरिकों को पूरी तरह उखाड़ फेंकना संभव न हो तो कम से कम हिन्दुओं को हर तरह से अपमानित किया जाये। सभी मुस्लिम ये सदैव याद रखे कि हिंदू खुदा और रसूल के सबसे बड़े दुश्मन हैं। बादशाहों की दिन पनही का सबसे बड़ा चिन्ह यह होना चाहिए कि वे जब भी किसी हिंदू को देखें तो उनका मुँह लाल हो जाना चाहिए , उन्हें उस हिंदू को नष्ट करने के सभी उपाय करने चाहिए। ब्राह्मणों का जो कुफ्र के इमाम (नेता) हैं और जिनके कारण कुफ्र और शिर्क फैलता है और जिस कारण कुफ्र की आज्ञाओं का पालन कराया जाता है उनका समूल उच्छेदन कर दिया जाना चाहिए । इस्लाम के सम्मान और दिने हक़ीकी (सच्चे धर्म) के सम्मान के लिए ये ज़रुर्री है कि किसी काफ़िर और मुशरिक को आदर पूर्वक जीवन जीने ना दिया जाये । मुसलमानों के मध्य उनका निरंतर अपमान और तिरस्कार किया जाना चाहिए। ऐसा प्रयास करना चाहिए कि उस ब्राह्मण को संतोष शांति और इत्मिनान कभी नसीब न हो । मुशरिकों और बुत्प्रस्तों को किसी कम समूह विलायत और एकता का हाकिम नहीं बनाया जाना चाहिए । इस्लामी बादशाह के ऐश्वर्य और वैभव के कर्ण खुदा और रसूल के दुश्मनों में से एक भी निश्चिन्तता से पानी तक ना पी सके और ही ही संतोष की शैय्या पर अपने पैर फैला कर सो सके ।
उपरोक्त से ये तो निश्चित समझ में आता है कि इस्लाम में जहाँ बड़ी बड़ी बातों को बताया गया है वहीँ संकीर्ण मानसिकता को भी उभारा गया है हम कितना भी ढोल पीट लें की इस्लाम धर्म बहुत अच्छा है किन्तु यक्ष प्रश्न फ़िर वही है कि अगर वह इतना ही अच्छा है तो फ़िर ये दुर्दांतपाना क्यूँ ? अगर इस्लाम भी और दुसरे धर्मो की तरह सद्भाव और आत्मीयता सीखता है तो फ़िर उसके मानने वाले क्यों निर्दोष लोगों की जघन्य हत्या कर रहे हैं। और तो और इस्लाम की कौन सी धरा ये सिखा रही है कि मुसलमान ही मुसलमान को मारे। निश्चित ये दिमागी बीमारी है । जिसका इलाज निकट भविष्य में तो दिखाई नहीं दे रहा है।
-प्रदीप भट्ट -
अपनी बेबाक राय अवश्य रखे किन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी बेबाक राय से व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस न लगे । हम अपनी स्व्तंत्रता के प्रति सजग रहे किन्तु दूसरों कि स्वतन्त्रता मे बाधक भी न बने ।
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