Friday, 26 August 2016

कालाहांडी




“ एक अभिशप्त जिले की कहानी- आखिर कालाहांडी ही क्यों “

 

      कालाहांडी  उड़ीसा के कालाहांडी जिले का एक शहर है।ओड़िशा का वर्तमान कालाहांडी जिला प्राचीन काल में दक्षिण कोसल का हिस्सा था। आजादी के बाद इसे ओड़िशा में शामिल कर लिया गया। उत्तर दिशा से यह नवपाडा और बालंगीर, दक्षिण में छत्तीसगढ़  के रायगढ़ और पूर्व में बूध एवं रायगढ़ जिलों से घिरा हुआ है। पूर्वी सीमा पर स्थित भवानीपटना जिला मुख्यालय है। 8197 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैले इस जिले में जूनागढ़, करलापट, खरियर, अंपानी, बेलखंडी, योगीमठ और पातालगंगा आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। एक समय में कालाहांडी से लगभग 26 KM दूर पर स्थित जूनागढ़ कालाहांडी रियासत की राजधानी हुआ करती थी। यह स्थान अपने किले और मंदिरों के लिए खासा चर्चित है। यहां के मंदिरों में उडिया भाषा में अनेक अभिलेख खुदे हुए हैं। सती स्तंभ यहां का मुख्य आकर्षण है।जूनागढ़ राउरकेला से 180 किमी. दूर है।


    रामकृष्ण आश्रम कालाहांडी के मदनपुर-रामपुर ब्लॉक में स्थित है। आश्रम में रामकृष्ण परमहंस और उनकी पत्‍नी शारदामनी देवी व स्वामी विवेकानंद के विचारों की शिक्षा दी जाती है। आश्रम में बताया जाता है कि किस प्रकार मोक्ष प्राप्त किया जाए और जनसमुदाय के कल्याण हेतु किस प्रकार कार्य किया जाए। आश्रम दो हिस्सों में बंटा हुआ है। मुख्य आश्रम में एक मंदिर, आदिवासी छात्रों का हॉस्टल, वृद्धाश्रम, डिस्पेंसरी, पुस्तकालय और साधुओं और कर्मचारियों के लिए कमरे बने हुए हैं। आश्रम ध्यान लगाने के लिए एक आदर्श स्थान है। किन्तु इस आश्रम मे आकार लोग या सीख कर भूल जाते हैं या सिखाया नहीं जाता कि मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है अन्यथा कालाहांडी बार बार नकारात्मक बातों के लिए ही क्यों चर्चा मे आता।





         






     





          बरसों पहले कालाहांडी का नाम इस बात से चर्चा मे आया था कि हिंदुस्तान मे वह पहला स्थान था जहां लोग भूख से मर रहे थे ।तब की उड़ीसा सरकार और दिल्ली मे बैठी हुई भारत सरकार को जवाब देते नहीं बन पड़ रहा था कि आजादी के बाद भी जब कि देश मे हरित क्रांति हो चुकी हो देश मे एक स्थान ऐसा भी है जो विश्व पटल पर सिर्फ इसलिए छा गया क्यों कि वहाँ पर लोग भूखे मर रहे थे। आखिर क्या कारण है कि कालाहांडी का नाम तभी क्यों सुर्खियों मे आता है जब वहाँ कुछ अनिष्ट हुआ होता है। वैसे तो उड़ीसा को पिछड़ा राज्य माना जाता है लेकिन पिछड़ा मे भी क्या अति पिछड़ा भी गिना जा सकता है।


      अब कल एक विडियो वाइरल हो गया जिसमे परसों यानि बुधवार के दिन दीना मांझी नाम का शख़्स अपनी पत्नी उमंगा जिसका तपेदिक के कारण भवानी जिला मुख्यालय के एक अस्पताल मे निधन हो गया था, के शव को अपने कंधे पर रखकर,अपनी बेटी के साथ 10 KM तक चलने को मजबूर हुआ क्याओन कि जिला अस्पताल ने मुर्दाघर की गाड़ी या एम्ब्युलेन्स देने से माना कर दिया और मजबूरी सिर्फ इतनी कि उसके पास मुर्दाघर की गाड़ी या एम्ब्युलेन्स के किराए के लिए पैसे नहीं थे। लोग तमाशा देख रहे थे या विडियो बनाने मे मस्त थे लेकिन उसकी मदद करने को नहीं। आखिर मानवता क्या सिर्फ किताबों मे पढ़ने के लिए रह गई है। ये अलग बात है कि विडियो वाइरल होने के बाद तुरत फुरत कालाहांडी जी जिला कलेक्टर बुन्द्रा डी ने गुरुवार साँय तक जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने के लिए समय सीमा निर्धारित कर दी है।

दीना मांझ अपनी पत्नी उमंगा के शव के साथ     शव कंधे पर ढोते हुए 
   
     एक अच्छी बात ये रही कि जब ये विडियो वाइरल हो रहा था तब तक मांझी भवानी पटना से 60 KM दूर अपने गाँव मेलघरा के रामपुर ब्लॉक की बढ़ रहा था। तभी कुछ स्थानीय पत्रकारों ने इस हृदयविदारक दृश्य को देखकर एम्ब्युलेन्स का इंतजाम किया जिससे अगले 50 KM का सफर उसने इस एम्ब्युलेन्स से पूरा किया। यहाँ ये विशेष है कि बीजू जनता दल जिनकी उड़ीसा मे वर्तमान मे सरकार है ने सरकारी अस्पतालों और सरकार से संबद्ध अस्पतालों से शवों को मृतक के घर तक पहुँचाने की वयवस्था का आदेश फरवरी-2016 से ही “महापरायन योजना” के अंतर्गत दे रक्खा है।

      आखिर क्या कारण है कि एक तरफ जहां भारत वर्ष विश्व पटल पर नित नये आयाम गढ़ रहा है वहीं स्वतन्त्रता के 70 वर्षों के बात भी कालाहांडी बार बार गलत चीजों से ही क्यों चर्चा मे आ रहा है। क्यो नहीं मानव मानवता का सिर्फ चैनलों पर सिर्फ ढिंढोरा ही पीटता नज़र आता है जब कि यथार्थ मे मानवता की इक्की दुक्की घटनाएँ प्रकाश मे आती हैं।

                                                    :: प्रदीप भट्ट ::: 26.08.2016





 




  


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