“क्या इरोम चानू
शर्मिला का लक्ष्य मुख्यमंत्री बनना ही था? ”
लगभग 16 वर्षो से
मणिपुर राज्य से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आफ़स्पा) हटाने को लेकर भूख हड़ताल कर रही इरोम चानू
शर्मिला ने कल 9 अगस्त -2016 को अपना अनशन समाप्त कर दिया और घोषणा की कि अब वे
मणिपुर की मुख्यमंत्री बनकर और अहिंसा के रास्ते पर चलकर मणिपुर से आफ़स्पा हटवाने
का प्रयास करेंगी। क्यों कि उनका मानना है कि मणिपुर मे सभी जगह भ्रष्टाचार ने
अपनी जड़े जमा ली है और अब आगे भी भूख हड़ताल करने से कुछ नहीं होने वाला अतएव
उन्होने जुलाई -2016 मे अचानक ये घोषणा करके सबको चौका दिया कि वे जल्दी ही अपनी
भूख हड़ताल समाप्त करने वाली है इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होने बताया कि
मणिपुर की आम जनता अब उनके इस अनशन के प्रति सकारात्मक रुख नहीं अपना रही है और 9
अगस्त -2016 को उन्होने 16 वर्ष पुराना अपना अनशन समाप्त कर दिया। प्रश्न ये है कि आखिर इरोम चानू शर्मिला को ये
रास्ता क्यों अख़्तियार करना पड़ा। चलिये कुछ इस पर प्रकाश डालते हैं।
Agreement made
this twenty first day of September, 1949 between the Governor General of India
and his Highness, the Maharajah of Manipur.
Whereas in the best interests of
the State of Manipur as well as of the Dominion of India it is desirable to
provide for the administration of the said State by or under the authority of
the Dominion Government.
इरोम चानू शर्मिला का जन्म 14 मार्च 1972 को
कोंग्पाल, इम्फ़ाल (मणिपुर) मे एक बेहद साधारण परिवार मे हुआ।इरोम चानू शर्मिला के
पिता इरोम नन्दा सरकारी पशु विभाग मे कार्यरत्त हैं उनकी माँ इरोम ओंगबी सखी एक घरेलू महिला है। इरोम
चानू शर्मिला सन 2000 मे HRA (ह्यूमन राइट अलर्ट)से जुड़ी।एचआरए द्वारा गठित
एक कमेटी के सदस्य के रूप मे इरोम चानू शर्मिला ने आर्मड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट
(AFSPA) के प्रभावों कि छानबीन की इसी के साथ इरोम पीपलस इंक्वारी कमिशन (पीआई) के साथ भी जुड़ी और AFSPA
के प्रभावों का गहराई के साथ अध्ययन किया। AFSPA को लोकसभा द्वारा पारित किया गया जिसको आर्मड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट
कहा जाता है। इसका मकसद आंतरिक सुरक्षा को सुनिश्चित करना था एवं इस सर्वप्रथम
नागा लोगों के स्वतन्त्रता के संघर्ष को दबाने के लिए इस्तेमाल किया गया।तत्कालीन
गृहमंत्री भारत सरकार द्वारा आश्वासन दिया गया था कि इसे सही समय आने पर निरस्त कर
दिया जाएगा।इसके विपरीत सरकार ने इसे 1958 के बाद
उत्तर पूर्व के समस्त सातों राज्यों के कई इलाकों मे लागू कर दिया
गया।जिनमे असम,मणिपुर,मिज़ोरम तथा
नागालैंड के कई इलाके शामिल हैं।यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मिज़ोरम के कुछ एरिये को
इससे मुक्त रक्खा गया है। इसी प्रकार अरुणाचल के चंगलांग और तिरप जिलों मे ही
एएफ़एसपीए लागू है न कि पूरे अरुणाचल मे। इसी प्रकार मेघालय मे भी लगभग 20 KM
के दायरे मे जहां इसकी सीमा अन्य राज्यों से जुड़ी हैं वही पर AFSPA
लागू है । पाकिस्तान द्वारा 1990 से ही जम्मू और कश्मीर मे छद्म
युद्ध किया जा रहा है।
पाकिस्तान बार बार बार्डर पर उकसावे की
कार्यवाही करता रहता है साथ ही पाकिस्तान चोरी छुपे आतंकवादीयों को भी पाकिस्तान
से लगातार भारत को अस्थिर करने के उद्देशय से सीमा पार करता रहता है इसी के
मद्देनजर भारत सरकार ने 1990 से ही जम्मू और कश्मीर मे भी स्थिति को कंट्रोल करने
के लिए एएफ़एसपीए लागू कर दिया है। किन्तु जम्मू का लेह और लद्दाख का इलाका इससे
मुक्त रक्खा गया है। AFSPA के मुख्य बिन्दु निम्न प्रकार से हैं:-
1) केंद्र या राज्य सरकारें
किसी क्षेत्र को गड़बड़ी वाला क्षेत्र घोषित करती है ।इससे तात्पर्य है कि इलाका
अशांत घोषित होने पर AFSPA लगाया जा सकता है।
2) सेना को बिना किसी
वॉरेंट के तलाशी लेने गिरफ्तारी करने एवं आवशयकता पड़ने पर शक्ति के इस्तेमाल कि
इजाजत प्रदान करता है इसके अतिरिक्त सेना को ये अधिकार भी होता है कि वे संदिग्ध
व्यक्ति को गोली भी मार सकती है।
3) उपरोक्त परिस्थिति के
अनुसार सेना पकड़े गए व्यक्ति को शीघ्र अति शीघ्र स्थानीय पुलिस को सौपने के लिए
बाध्य है। किन्तु ये सब परिस्थिति पर निर्भर करेगा।
4) इस कानून के डरे मे
कम करने वाले सैनिकों के खिलाफ कोई भी या किसी भी प्रकार कि कानूनी कार्यवाही नहीं
कि जा सकती। इसमे ये व्यवस्था अवश्य दी गई है कि यदि कोई सैनिक किसी गलत कारवाई मे
लिप्त पाया जाता है तो उस पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप के केंद्र सरकार कि
अनुमति से कारवाई कि जा सकती है।
आखिर इरोम इस कानून को मणिपुर से खतम क्यों
करवना चाहती हैं आइये इस पर भी एक नज़र डाल लेते हैं। आरोप है कि इरोम एक शांति
पूर्ण रैली कि तैयारी कर रही थीं तभी मालोम के बस स्टैंड पर सैनिकों ने अंधाधुंद
फ़ाइरिंग कि जिसमे दस लोगों कि मौत हो गई। ये घटना 2 नवम्बर -2000 की है। इस घटना
के विरोध मे इरोम ने 4 नवम्बर-2000 को अनशन प्रारम्भ किया। इसी विरोध के बीच
थाँगज्याम मनोरमा नमक मणिपुर की एक महिला के साथ बलात्कार किया गया जिसके परिणाम
स्वरूप 11 जुलाई-2004 से जनाक्रोश भड़क उठा। वहाँ की महिलाओं ने असम राइफल्स के हैड क्वार्टर के सामने निवस्त्र
होकर प्रदर्शन किया और होठो मे बैनर लहराये जिन पर “Indian Army Rape Us “ लिखा था। इसी घटना के बाद इरोम को आत्महत्या के इरादे के लिए गिरफ्तार कर
लिया गया चूंकि एक वर्ष से अधिक नहीं रक्खा जा सकता अतएव वर्ष बीतने के साथ ही
इरोम को रिहा कर दिया जाता था और तुरंत ही पुन: गिरफ्तार कर लिया जाता था ताकि कोई
अनिष्ट न हो सके।
अब अंत मे आखिर इतनी कवायद करने के पश्चात
इरोम क्यों चाहती है कि वे मणिपुर की मुख्यमंत्री बने ।क्या किसी भी राज्य की किसी
भी समस्या का समाधान मुख्यमंत्री के पास होता है अगर ऐसा है तो भूतपूर्व और
वर्तमान मुख्यमंत्री क्यों नहीं एएफ़एसपीए हटवाने के लिए प्रयास करते। कहीं ऐसा तो
नहीं जो महिला 16 वर्षो तक भूख हड़ताल कर रही थी उसका मकसद कहीं न कहीं सत्ता
प्राप्त करना तो नहीं था
::: प्रदीप भट्ट ::: 10.08.2016
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