Monday, 18 January 2016

तुर्क

“तुर्को पर आखिर पर इतनी दरियादिली क्यों”

     पिछले कई सालो से सामान्य जन यह देखकर हैरान एवं परेशान है कि देश मे कुछ राज्यो की सरकारें चुनाव मे तो बड़े बड़े भाषण देती है कि अगर हम सत्ता मे आ गए तो देश के संविधान के अनुरूप ही शासन करेंगे। किसी भी जाति या धर्म विशेष के  लोगों के प्रति न तो दुराग्रह रखेंगे और न ही उन्हे एक दूसरे से अनुचित लाभ प्रदान करेंगे किन्तु ऐसा होता दिख तो बिलकुल नहीं रहा।

     मै ये स्पष्ट कर देना मुनासिब समझता हूँ की मेरे इस लेख का मकसद किसी भी  जाति या धर्म पर आधारित लोगों या समूह का विरोध करना नहीं है । भारत देश विभिन्न जातियों, धर्मो और भारत की विशाल सांस्कृतिक धरोहर का विश्व पटल पर जीता जागता नमूना है । हाँ जो लोग समाज को बांटने का राजनैतिक षड्यंत्र रचते रहते हैं।गुलामों (गुलाम अली) की महफिल की शोभा बढ़ाना ज्यादा ज़रूरी समझते हैं किन्तु एक युवा सैनिक की मौत पर चार दिनों तक मौन रहते है मै ऐसे असमाजिक लोगों द्वारा फैलाये जा रहे प्रदूषण का घोर विरोधी हूँ, जो हमारी सांस्कृतिक विरासत को डकार जाना चाहते हैं।

     मालदा (पश्चिम बंगाल) मे हुई सांप्रदायिक घटना होती है जिसमे जान  –माल मे साथ एक पुलिस स्टेशन को सम्पूर्ण रूप से जला दिया जाता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस घटना को सांप्रदायिक मानने से ही इंकार कर देती हैं। आखिर ऐसा क्यो? भारत सरकार का एक प्रतिनिधि मण्डल श्री विजय वरगिस जो की पश्चिम बंगाल के प्रभारी हैं के नेत्रतत्व मे एक प्रतिनिधि मण्डल मालदा जाना चाहता है तो उन्हे जबरन रोक दिया जाता है वहीं मुस्लिम कट्टरपंथी संगठन इदारा-ए-शरिया के लगभग दो लाख लोगो को प्रदर्शन की इजाजत दे दी जाती है आखिर क्यों ?

     चूंकि मालदा बांग्लादेश सीमा के निकट है और वहाँ से बहुत सारे उल्टे सीधे काम होते रहते है जिनमे बंगाल के राजनैतिक दलों के कई नेता शामिल हो सकते  है और जिनके खिलाफ काफी सबूत मालदा के उस पुलिस स्टेशन के रेकॉर्ड रूम मे मौजूद थे। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि देश कि राष्ट्रीय जांच संस्था (एनआईए) इस बात कि पिछले कुछ माह से जांच मे लगी हुई है । अतएव इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि “मालदा कांड “ के पीछे निश्चित रूप से उन सफेदपोश लोगो का हाथ हो सकता है अन्यथा क्या कारण है कि पुलिस स्टेशन को आग लगाई गई और उसमे भी वहाँ मौजूद रेकॉर्ड रूम का पूरा जलकर स्वाहा जो जाना इस बात को इंगित करता है कि दाल मे ज़रूर कुछ काला है ।

     मालदा मे सांप्रदायिक हिंसा बड़े पैमाने पर होती है और भीड़ द्वारा पुलिस स्टेशन को जला दिया जाता है। जब ममता बनर्जी को ये खबर लगती है कि मालदा घटना की जांच NIA करने वाली है तब उस पुलिस स्टेशन को दिन-रात एक करके रंग-रोगन लगाकर चमका दिया जाता है आखिर ऐसा क्यों ? आखिर बीजेपी मजबूर होकर महामहिम राष्ट्रपति से गुहार लगाती है और जापन मे जड़ यू संसद गुलाम रसूल ,अदरिश अली और इमरान अहमद जो कि तृणमूल काँग्रेस से ताल्लुक रखते है पर संदेह जताया जाता है।

     अब बात करते हैं भारतीय वायु सेना के एक 23 वर्षीय ऑफिसर कोरपोरल अभिमन्यू गौड़ की जिनकी कोलकतता के रेड रोड एरिया मे अंबिया और संबिया सोहराब जो कि  तृणमूल काँग्रेस के नेता मोहम्मद सोहराब के पुत्र है ने शराब के नशे मे बुधवार प्रातः तब अपनी ऑडी कर से कुचलकर हत्या कर दी जब वे 26 जनवरी के परेड की  रिहरर्सल कर रहे थे। यहाँ यह उल्लेखनीय है की जब –जब इस प्रकार की परेड की रिहरर्सल आयोजित की जाती है तब तब नियमानुसार स्थानीय पुलिस पर सुरक्षा का भार होता है इसी के साथ साथ वायु सेना अन्य जवान भी सुरक्षा प्रदान करते हैं । अब प्रश्न यह है इतनी सुरक्षा के बावजूद वो दोनों नशेडियो को उस ज़ोन मे आने की इजात कैसे मिली और पुलिस द्वारा लगाई गई 3-4 बेरिकेडो को तोड़कर कैसे वे परेड स्थल तक पहुँचने मे कामयाब रहे । तत्पश्चात ऑडी कार को छोडकर वो कैसे भागने मे कामयाब हो गए ?

      प्रदीप भट्ट
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                                           दिनांक :18.01.2016

तुर्को पे मेहरबानी का आलम तो देखिये,
मरता रहा जवान और सरकार मौन है ।

क़ातिल को बड़े ठाठ से बैठा लिया घर मे,
और हमसे पुछते  बता  मकतूल कौन है।

जाने भी दो एक मौत पे रोने से फायदा,
क़ातिल है मेहरबान बता परिवार कौन है।

तुम बेवजह ही दीप यूँ बदनाम न करो,
तुम जानते नहीं हो क्या सरकार डॉन है।

                                      ::::प्रदीप भट्ट :::::


     उपरोक्त घटना के पश्चात चार दिनो तक कोई भी कारवाई न होना क्या दर्शाता है कि पश्चिम बंगाल कि पुलिस और सरकार क़ातिलो से मिली हुई है या उन्हे बचाने का प्रयास कर रही है जिसकी तसदीक पश्चिम बंगाल से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र भी कर रहे हैं। इससे भी ज्यादा शोचनीय पहलू यह है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस दुखद घटना पर चौतरफा दबाव (बीजेपी और मीडिया ) के पश्चात हरकत मे आती हैं  और अधमने मन से घोषणा करती हैं कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा । ये सब क्या साबित करता है कि सरकार चाहे उत्तर प्रदेश की हो या पश्चिम बंगाल की सबको छद्म अल्पसंख्यकों (मुस्लिम भारत मे दूसरी सबसे बड़ी आबादी है ) की पड़ी है। हिन्दुओ को मार दो काट दो कोई खबर नहीं वहीं अगर किसी मुस्लिम पर कुछ हो जाए तो देश मे आशिष्णुता बढ्ने की भ्रामक खबर फैला दी जाती हैं। आखिर ये तुष्टीकरण की युक्ति कब तक और क्यों कर चलने देनी चाहिए ।


                                      ::::प्रदीप भट्ट :::::

                                      18.01.2016

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