Monday, 30 November 2015

जूती खाए कपाल




“ रहिमन जिव्हा बावरी कह गई सरग पाताल
आप  कह भीतर  भाई जूती खाये कपाल
    रहीम दस जी ने सेकड़ों वर्षो पूर्व जो अपने अनुभव से लिखा उस पर आज के मौहल  मे ज्यादा तवाव्ज्जो दिये जाने की जरूरत है । जिसे भी देखिए बिना किसी विषय की जानकारी के अनाप-शनाप बके जा रहा है, और आजकल तो समाजपरक माध्यम (Social media) का चलन हमारे रोज़मर्रा के जीवन में कुछ इस कदर हो गया है कि यंग जेनेरेशन सुबह का सूरज देखे न देखे अपने एलेक्ट्रोनिक गजेट्स मुंह अंधेरे ही देखने की  आदि हो चुकी है । घर से बाहर पाँव निकालने से पहले अगर कोई एक वस्तु कि उन्हे सबसे ज्यादा चिंता होती है तो वह है चलायमन/भ्रमणकारी/चपल/चर/जंगम न न घबराइए नहीं ये एक ही गजेट्स Mobile” के हिन्दी नाम हैं। खैर बदलाव प्रकर्ति का नियम है। बदलाव हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे।

     अब बात करते हैं दो विशेष घटनाओ कि कल एक मौलवी  साहब (नाम याद नहीं आ रहा, वैसे भी ऐसे लोगो का नाम याद भी क्यों रखना)TV पर गला फाड़ –फाड़ कर चिल्ला रहे थे कि औरतें तो बच्चा पैदा करने कि मशीन मात्र है । स्त्री और पुरुष कि बराबरी कभी नहीं हो सकती। निश्चित  रूप से उन्होने इसके आगे और पीछे भी कुछ कहा होगा जो कर्णप्रिय तो कदापि नहीं होगा । अब प्रश्न ये है कि परसो से आज तक किसी भी माध्यम मे किसी भी बुद्धिजीवी ने ,मुस्लिम धर्म गुरुओ ने,साहित्यकारों ने अपना विरोध दर्ज क्यो नहीं कराया। किसी हिन्दू धर्म गुरु से इस पर टिप्पणी कि अपेक्षा तो मै वैसे भी नहीं कर रहा हूँ क्यो कि अगर ऐसा हुआ होता तो अब तक छ्द्म बुद्धिजीवी और साहित्यकार उनकी लानत-अमानत कर डालते। किन्तु सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात का हुआ शबाना आज़मी जो मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी कि सुपुत्री हैं और मशहूर लेखक और गीतकार जावेद अख्तर कि बीवी हैं, ने भी अभी तक इस पर कोई टीका-टिप्पणी क्यों नहीं की जब कि वे इस तरह के ज्वलंत मुद्दे पर सदैव मुखर रही हैं। और भी न जाने कितने ऐसे महारथी है जिनहे इस भद्दी एवम बेहूदी बात के लिए उन मौलाना को  लताड़ा जाना चाहिए थे किन्तु ऐसा नहीं होने से  निश्चित रूप से एक सहिष्णु देश के बुद्धिजीवी,साहित्कारों, नेताओ और  महिला मोर्चा के केन्द्रीय व राज्य स्तरीय अधिकारियों ठंडे रवैये ने शर्मसार ही किया है। एक शेर याद आ रहा है :-
मुर्दा पड़े हैं लफ़्ज़ किताबों कि कब्र मे ।
लाशों का एक शहर है जो बोलता नहीं ।।

     अब बात दूसरी घटना की जो श्रीमान फारुख अब्दुल्लाह, पूर्व मुखमंत्री जम्मू एंड कश्मीर के एक बयान से उत्पन्न हुई । उनका ये बयान कि “ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर पाकिस्तान का हक है, जब कि जम्मू एंड कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है उनके इस वक्तव्य ने और आग मे घी का कम किया कि “भारत कि सारी सेना मिलकर भी आतंकवादियों का मुक़ाबला नहीं कर सकती।

     फारुख अब्दुल्लाह पहले भी ऐसे बयान देते रहे हैं या इसे इस तरह कहा जाए कि वे इस तरह के बयान देने के लिए ही जाने जाते हैं। किन्तु एक प्रश्न फिर खड़ा हो जाता है कि आखिर वो इस प्रकार के बयान देकर  साबित क्या करना चाहते हैं। जब जब भी कश्मीर मे कोई समस्या उत्पन्न होती है तो ज्ञात होता है कि फारुख अब्दुल्लाह साहब तो लंदन मे छूटियाँ माना रहे हैं और गोल्फ खेल रहे हैं । आश्चर्य इस बात का ज्यादा है कि वे भूल जाते हैं कि जिस आर्मी कि क्षमता पर वे सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं उसी आर्मी कि बदौलत ही आज कश्मीर फिर उठ खड़े होने कि चेष्टा कर रहा है। कौन भूल सकता है पिछले वर्ष की बाढ़ की भयावहता जब सारे रास्ते बंद हो रहे थे तब भारतीय सेना ने ही मोर्चा संभाला और कश्मीर के जन जन तक अपनी पहुँच ही नहीं बधाई वरन उनकी दुआएं भी लीं। तब ऐसी कर्मठ  सेना पर सवालिया निशान क्यों और उनकी हैसियत ही क्या है इस तरह का प्रश्न करने की ।

अंत मे उनके इस वक्तव्य पर एक बात अवश्य कि “ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर पाकिस्तान का हक है, जब कि जम्मू एंड कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है मुझे उनकी मानसिकता और साथ मे उनके दिमागी दिवालियेपन पर तरस आता हैं किन्तु इस तरह का बयान अगर एक राजनेता देता है तो ये सोचने का विषय है कि वो भारतीय  संविधान की शपथ लेकर इस प्रकार का देशद्रोह पूर्ण बयान कैसे दे सकता है, और भारत सरकार उनके इस बयान को कैसे ट्रीट करती है।

     उपरोक्त दोनों ही घटनाओ पर मै अपने रोष प्रकट करता हूँ।


:::::प्रदीप  भट्ट ::::30.11.2015

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