Monday, 14 August 2023

मानवाधिकार की धज्जियाँ उड़ाता पाकिस्तान




“मानवाधिकार की धज्जियां उड़ाता पाकिस्तान और बांग्लादेश 
और वहाँ अपना अस्तीत्व तलाशते हिन्दू”


      पिछले कुछ समय से देश मे हिन्दू-मुस्लिम और बीफ विविद की चर्चा ज़ोरों पर है। अब हम सभी इन बे-सिर पैर की बातों मे उलझकर रह गए हैं। हाँ इतना ज़रूर हुआ की कुछ छद्म साहित्यकारों ने अपने अवार्ड वापिस करने की एक मुहिम चलाई जिसकी शुरुआत तो उदय प्रकाश ने की लेकिन अवार्ड वापिस किया काफी देर से । खैर इस विषय पर मै पहले ही काफी कुछ लिख चुका हूँ। आज हम पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिन्दुओ कि दुर्दशा पर चर्चा करेंगे ।

      पिछले दिनों पाकिस्तान और बांग्लादेश मे हिन्दुओ की स्थिति पर पढ़ने सुनने और समझने का मौका मिला और ये जानकार आश्चर्य हुआ की भारत मे लगभग 18-20 करोड़ मुस्लिम इन दोनों देशो के मुक़ाबले कितने सुखी और सुरक्षित हैं। आइये एक बानगी देखते हैं।

      1947 मे जब भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान नामक देश अस्तीतव  मे आया उस समय पाकिस्तान मे हिन्दुओ की जनसंख्या लगभग 15% थी जो की 1981 आते-आते घटकर 5% रह गई। और अब हिन्दू और सिखों को मिलकर तो ये मात्र 1.6% रह गई है।




  1986-90 तक हिन्दू परिवारों के साथ हुआ जो हुआ  वो कितना  वीभत्सकारी था इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की आज कश्मीर मे कुल 808 हिन्दू परिवार बचे हैं। उस दौर मे कश्मीरी पंडितो के साथ जो कुछ किया गया क्या वो मानवता के ऊपर कलंक नही था। लाखो हिन्दुओ को बेरहमी से मारा गया उनकी बहू -बेटियो की इज्ज़त लूट ली गई पुरुषो और बच्चों का बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया। पाँच लाख से ज्यादा कश्मीरी पंडितओ को दर-बदर होना पड़ा अलग से । मुझे याद नहीं पड़ता कि बुद्धिजीवी ने इस पर उफ भी हो यहाँ तक आज जो पुरुसकर वापिसी का नाटक चलाया जा रहा है तब किसी ने भी ऐसा कोई कदम उठाने का साहस क्यों नहीं किया। मेरी समझ से ये बात सिरे से समझ मे नहीं आई कि इस विषय पर पहले और आज तक भारत सरकार का रुख स्पष्ट क्यों नहीं रहा। क्यों नहीं मानवाधिकार आयोग खामोश क्यों है। जिन छोटे –छोटे मुद्दो पर राजनीति की जा रही है क्या कश्मीरी पंडितो का मुद्दा उनसे भी छोटा है ?



      अब बात करते हैं बांग्लादेश की जिसका जन्म ही भारत की बदोलत 1971 हुआ अन्यथा क्रूर पाकिस्तानी आर्मी ने जितना ज़ुल्म पश्चमी पाकिस्तानी प्रांत पर कर रखा था उससे ऐसा प्रतीत होता था कि पश्चिमी पाकिस्तान जल्द ही नर विहीन हो जाएगा। ये तो भला हो तत्कालीन  भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरागांधी का जिनहोने समय रहते व  सही निर्णय लेते हुए जनरल मानेकशा को भारतीय सेनाओ को दखल देने के लिए कहा। किन्तु भारत के रहमो करम से मिली आज़ादी के बाद बांग्लादेश मे किस तरह हिन्दुओ का उत्पीड़न हो रहा है। वहाँ हिन्दुओ को दोयम दर्जे का नागरिक भी नहीं माना जाता क्यो ? वहाँ पर भी हिन्दुओ कि बहू-बेटियो के साथ बलात्कार करना तो आम बात है। बांग्लादेश मे हिन्दुओ कि गति क्या है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1947 मे वहाँ कि कुल आबादी मे हिन्दुओ कि संख्या 28% थी जो 1981 आते आते सिर्फ 8.5%  रह गई। 1971 कि लड़ाई मे पाकिस्तानी सेना ने हिन्दुओ पर जो अमानवीय अतयाचर किए उससे 1971 से 1981 आते बांग्लादेश से लगभग 10 लाख हिन्दू गायब हो गये। 25 वर्षो मे कुल लगभग 53 लाख हिन्दुओ ने बांग्लादेश से पलायन किया। अगर 1947 से अभी तक कि स्थिति पर द्र्ष्टिपात किया जाए तो ये जानकार आश्चर्य होगा कि पूर्व मे पश्चिमी पाकिस्तान और 1971 मे बने  बांग्लादेश से लगभल 5 करोड़ हिन्दुओ का कुछ अता-पता नही है या ये कहना ज्यादा श्रेयस्कर होगा कि पिछले 60-65 वर्षो मे 5 करोड़ हिन्दू गायब हो गये हैं।



      कुछ इसी तरह कि नितियाँ पश्चिमी बंगाल और उत्तर प्रदेश मे आज भी जारी हैं। पश्चिमी बंगाल के मुर्शिदाबाद मे तो 23 दुर्गा पंडालो मे आग लगाई गई। कोलकाता मे प्रशासन द्वारा  माँ दुर्गा का विसर्जन इसलिए टालने का निर्णय लिया गया क्यो कि 22 अक्तुबर को गुरुवार होने के कारण विसर्जन नहीं किया जाता 23 को शुक्रवार होने के कारण 24 को मुहर्रम होने के कारण मतलब साफ है। यहाँ प्रश्न यही है कि क्या प्रशासन अर्धसैनिक बलों कि मदद लेने का निर्णय नही ले सकता था जिससे दोनों धर्मो के लोगो कि भावनाओ कि रक्षा होती ।  उत्तर प्रदेश मे तो सरकार सरे आम हर विभाग मे जाति और धर्म के चश्मे से सब कुछ देखना पसंद करती है। भारत मे सरकार कोई भी हो उन्हे धर्म विशेष कि भावनाओ कि चिंता ज्यादा रहती है किन्तु यही भावनाएँ बांग्लादेश या पाकिस्तान मे तो हर्गिज नहीं दिखाई पड़ती ।

      विश्व मे भारतवर्ष ही अकेला ऐसा देश है जहां हर धर्म को अपने सरोकारों/ मान्यताओ के साथ जीने की सहूलियत है। इक्का दुक्का घटनाओ से इन सरोकारों/ मान्यताओ की जड़ो को कोई  चाहकर भी नहीं हिला सकता। इस प्रकार के प्रयास चंद फिरकपरस्तों द्वारा पहले भी किए जाते रहे हैं। किन्तु जिस प्रकार सूर्य की प्रथम किरण के साथ अँधियारा छट जाता है उसी प्रकार इस प्रकार की घटनाओ के पश्चात धीरे धीरे सब कुछ स्वत: ठीक होने लगता है।



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