रिपोतार्ज़
“चेन्नई जा रहा हूँ मैं”
-खुबसूरत यादों और अहसासों को समेटे-
5 अगस्त को चारमीनार एक्स्प्रेस से
हैदराबाद डेक्कन रेलवे स्टेशन से सायं 6 बजे प्रस्थान कर बिना किसी विघ्न बाधा के
चेन्नई के ताम्बरम रेलवे स्टेशन सुबह 8:10 पहुँच गये। वहाँ पहले से ही गोवा की टीम
प्रतीक्षारत्त थी । टैक्सी की व्यवस्था कोठारी जी द्वारा पहले से ही कर दी गई थी
सो लगभग एक घंटे बाद लश गार्डन जो कि चेन्नई सेंट्रल से लगभग 40 किलोमीटर है पहुँच
गये। रुम अलॉट्मेंट के बाद पता चला कि एक रुम में तीन लोगों की व्यव्स्था की
गई। मेरे रुम पार्टनर में एक सज्जन कानपुर
व दूसरे सज्जन राजस्थान से, दोनों
लगभग 25 बरस के रहे होंगे। नमस्कार के
उपरांत मैं फ्रेश होकर कार्यक्रम स्थल पहुँचा तो बताया गया हुज़ूर पहले पहले पेट
पूजा (नाश्ता) कर लें। जब नाश्ते में छ: सात: आइटम हों तो सोचिए लंच और डिनर में
कितने होंगे। सो पेट पूजा के पश्चात मीटिंग हाल में पहुँचा, कुछ
ही देर में सरस्वती वंदना से कार्यक्रम की शुरुआत हो गई। पहला सत्र सम्मान समारोह
में गुजरा तत्पश्चात लंच के बाद दूसरा सत्र लगभग 3 बजे प्रारम्भ हुआ। गज़ल सत्र में
औरों के अतिरिक्त हमने भी अपनी एक गज़ल “संग संग तेरे चलना चाहूँ,
चल न पाऊँ, क्या बोलूँ” पढी। दूसरा सत्र सांय को लगभग
9:30 बजे समाप्त हुआ। घोषणा हुई डिनर के बाद मीटींग हाल के सामने वाले हाल में फिर
महफिल जमेगी, सो 11 बजे महफिल फिर जमी, उस महफिल का अध्यक्ष हमें बना दिया गया। लगभग ढाई बजे अध्यक्षीय टिप्प्णी
के बाद हमने अपने लिखी गज़ल “ बेवजह खुर्शीद पर उँगली उठाया मत करो, खाक हो जाओगे तुम नज़रें मिलाया मत करो” पढकर महफिल की बर्खास्तगी की घोषणा
की फिर उन्नीदें से होकर हम अपने रुम की ओर चल पडे, नॉक किया
राजस्थानी मित्र ने दरवाजा खोला, दोनों ही मित्र आराम से बेड
पर सोये हुए थे मेरी उपस्थिति से दूसरा मित्र भी जाग गया। इससे पहले कि वो कुछ
कहते मैंने स्थिति को भाँपते हुए कहा “ आप दोनों ऊपर पलंग पर ही सोयेंगे और मैंने
तुरंत कपडें चेंज करते हुए गद्दा बिछाया और ये लो जी पाँच मिनिट में ही निंद्रा
रानी की गोद में सर रखकर सपनों में खो गये।
अगली सुबह दोनों मित्रों के चेहरों
पर कुछ उलझन के भाग देखे तो पूछा तबियत किसकी गडबड है, कानपुर वाले मित्र बोले, सर हमें कल से बुखार है, हमने ठीक है, यहाँ से प्रस्थान तक आप पलंग पर ही
सोयेंगे, फिर कुछ और बातों का सिलसिला चल निकला, या यूँ कहूँ कि वरिष्ठ होने के नाते उन्हें कुछ समझाया भी ताकि उनकी
हिचकिचाहत दूर की जा सके। थोडी देर में ही दोनों मुस्कुराते हुए जवाब देने लगे। ये
एक शुभ संकेत था। फ्रेश हुए नाश्ता किया और पहुँच गये कार्यक्रम स्थल दूसरा तीसरा
सत्र गीत सत्र था जिसमें से हमने स्वंय ही नाम वापिस ले लिया। ऐसा करके हम किसी पर
अहसान नही जताना चाहते थे बल्कि हमारा मानना है कि ये क्या ज़रुरी है कि हर कवि हर
सत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराए ही। ऐसे कितने ही कवि हैं जिन्हें यदा कदा ही
मंच मिलता है तो उन्हें मौका मिलना चाहिए था किंतु अफसोस दिल गड्डे में। दो चार को
छोड दें तो ऐसा प्रतीत होता हुआ जैसे
सबके पेट मेंंअफारा हो रहा था। बस एक ही लगन ज्यादा से
ज्यादा कविताएं सुना डालो। खैर जैसी प्रभु की इच्छा। लंच के बाद दो खूबसूरत सत्र
एक छंद/दोहे/मुक्तक का जिसमें मुझे अतिथि के तौर पर मंच पर सम्मान दिया गया किंतु
मैंने यहाँ भी कार्यक्रम अध्यक्ष श्री भदोरिया से स्वंय कुछ भी प्रस्तुत न करने के
लिए माफी माँग ली। अगला सत्र छंद मुक्त कविताओं/अतुकांत कविताओं का था जिसका मैंने
भरपूर आंनद लिया।एक से बढकर एक प्रस्तुति।
ऐसी कविता जो किसी बंधन की मोहताज़ नहीं । कविता दिल से लिखी, दिल से पढी, और दिल
तक जा पहुँची। यही तो कविता का धर्म है। अंतिम सत्र चूँकि कवि सम्मेलन का था इसलिए
देर होती देख तय किया गया कि ये सत्र डिनर के बाद कल वाली जगह पर आयोजित होगा। ये
सत्र 8 अगस्त की सुबह लगभग तीन बजे तक चला।
फ्रेश हुए नाश्ता किया और 11 बजे के लगभत दो बसों में सवार
होकर शब्दाक्षर परिवार महाबलीपुरम के लिए प्रस्थान किया, पौराणिक काल के मंदिर देखे,कोवलम बीच पर मस्ती की और सांय 8 बजे के लगभग बैक टू दी पैविलियं। डिनर के
बाद महफिल फिर जमी और लीजिए हुज़ुर 8 अगस्त की रात्रि 11 बजे से 9 अगस्त की प्रात:
तक जोरदार कवि सम्मेलन हुआ। कुछ लोग तो फ्रेश हुए उड लिए एअर पोर्ट के लिए। मैं भी
लगभग 9 बजे फ्रेश होकर उसी स्थान पर मय सामान के हाज़िर हो गया। आदेश ऐसा ही था कि
सुबह फ्रेश होकर मय सामान के नियत स्थान पर सभी हाज़िर रहें, गाडियों
की व्यव्स्था पहले ही की जा चुकी थी। नाश्ता से फ्री होकर फिर से महफिल जम गई इस
बार संचालन मेरे हाथ में था। लोग आते गये कवि कारवाँ जमता गया। राऊंड द क्लॉक की
तर्ज़ पर मैंने संचालन सँभाला एक के बाद एक कवि पढते गये। तभी रवि प्रताप सिंह,
राष्ट्रीय अध्यक्ष भी पधार गये। महफिल आगे बढी, किन्हीं सज्जन ने दखलंदाज़ी की तो मैंने उन्हें विनम्र्ता से समझा दिया “
देखिए हुज़ुर इस अनौपचारिक सत्र का संचालन मैं कर रहा हूँ। बारी आने पर ही कविता
पढनी होगी इससे पूर्व कदापि नहीं। कृपया मर्यादा का पालन करना सीखें। शायद उन्हें
अच्छा न लगा हो किंतु मैं चाहता हूँ कि कुछ लोगों को ऐसे आयोजन से कुछ तो सीखना
चाहिए। देश के लगभग हर कोने से लोग पधारें हैं अब अगर हर व्यक्ति इस प्रकार का
व्यवहार करेगा तो कैसे होगा। 6,7,8 व
नौ अगस्त तक का आधा दिन गीत, गज़ल,मुक्तक,
छंद की प्रस्तुति व व्याख्या साथ ही हल्की फुल्की चुहल बाजियों में
निकल गया। हमने भी 1:45 बजे सामान लपेटा और एक अन्य साथी के साथ चेन्नई सेंट्रल के
लिए निकल पडें। समय से काफी पहले पहुँच भी गये।
अंतिम पैरा लिखने से पूर्व अगर मैं
चंद खूबसूरत लोगों के विषय में कुछ न कहूँ तो मेरी कलम का कोई फायदा नहीं। रवि
प्रताप सिंह जो शब्दाक्षर के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, उनकी कविताएँ माशा अल्लाह, संचालन बेहद
उम्दा, दोनों में ही गाँव की महक के दर्शन कराने का उनमें
उत्तम गुण है। दयाशंकर मिश्र जी, राष्ट्रीप कोषाध्यक्ष,
सौम्य हैं सरल हैं, कविताओं पर अच्छी पकड है।
केवल कोठारी जी जो शब्दाक्षर के तमिलनाडू के प्रांतीय अध्यक्ष हैं, इनके बारे में क्या कहूँ। सभी उनका गुणगान कर रहे हैं। गुस्से को गुस्सा
आता है किंतु कोठारी जी को नहीं। सहृदय, एकला चलो का पाठ
पढाते हुए। बचपन से सुनते आ रहे हैं अकेला चना भाड नही फोड सकता , लेकिन मुझे शब्दाक्षर के इस कार्यक्रम के विषय में यह कहने में कोई संकोच
नही कि कोठारी जी नामक चने ने अपना सब कुछ झोंक दिया। मैं हमेशा कहता हूँ अगर बडे
हो तो बडे के जैसे काम भी करने चाहिए” कोठारी जी इस उक्ति पर सौ फीसदी खरे उतरते
हैं। मैंने अपने अभी तक के जीवन में 2-3 लोगों में ऐसी कर्मठता देखी है।है। केवल
अर्थात मात्र/शुद्ध्। मुझे आपका सानिध्य मिला मैं इससे अभिभूत हूँ। ज्योति नारायण
जो तेलांगना प्रदेश की अध्यक्ष है, मैं उनसे पिछ्ले तीन
वर्षो से परिचित हूँ।सौम्य, मृदु भाषी, बच्चों जैसी खिलखिलाहट की स्वामिनी। प्रिय अजय श्रीवास्तव, विश्वजीत
शर्मा जी, प्रिय शिल्पी या सुनीता जी प्रिय वंदना, वर्षा, दत्ता प्रसाद जोग,रीटा
सहगल,उमेश सहगल, प्रिय रुहानी, कुसुम, अंजु छारिया जी, श्रीमती
त्रिवेदी, सी0 ए0 ,अमन शुक्ला, महावीर सिन्ह वीर, कनक लता तिवारी जी, अन्नपूर्णा,आलोक जायसवाल,राज
कुमार महोबिया,श्यामल मजुमदार दादा,सुबोध
मिश्र, कुछ और मित्र भी जिनका नाम स्मरण नहीं हो पा रहा है।(
अभी इन तीनों ने पूरी तरह पिंड नहीं छोडा है शायद इसलिए) प्रिय सागर एवम निशांत की
मेहनत के बिना ये महोत्सव महोत्सव जैसा नही होता, नई पीढी के
बच्चे हैं। तकनीक का सुंदर प्रयोग जानते हैं। इन दोनों को विशेष स्नेह्। एक सुंदर
आयोजन के लिए सभी का सह्योग रहा। सिर्फ
कविता पढना या सुनना आवश्यक नहीं है वरन इस तरह के आयोजन से हम उन लोगों से मिलते
हैं जिन्हें वर्चुअल के माध्यम से पहचानते हैं या नहीं भी। इस महोत्सव की एक बडी
उपल्ब्धि या ये कहूँ तो ज्यादा श्रेयस्कर होगा कि विशेष उपल्ब्धि ये रही की
शब्दाक्षर ने नई पीढी के लिए मंच प्रदान किया जो साहित्य के लिए शुभ संकेत है।
थ्रोट इंफेक्शन बुख़ार बॉडी पेन
जाने कब से घात लगाए बैठे थे ,या यूँ कहूँ तो ज़ियादा बेहतर होगा कि मैं इन्हें appointment
नहीं दे रहा सो ये तीनों गुस्से में थे। तीन दिवसीय साहित्य
महोत्सव में तो इन तीनों क़ी हिम्मत नहीं हुई शायद भीड़ देखकर घबरा गए हों या डर रहा
हो अगर इस बंदे को छेड़ा तो 72 कवि अपनी कविताएं सुनाकर उन्हें ही न बीमार कर
दें।एक क़े हिस्से में लगभग 25 कवि 😜किंतु परसों जैसे ही मैं रेलवे स्टेशन पहुँचा तीनों घेर लिए
बहुत अनुनय विनय क़ी पर ससुरे माने नहीं रात भर बहुत तंग किया वो तो भला हो हमने
हैदराबाद प्रस्थान से पूर्व ही डोलो क़ी ठो गोली रख ली थीं सो सात बजे ही निगल ली
और कंबल खींचकर सोने का प्रयास किया किंतु अफ़सोस दिल गड्ढे में। राम राम करते
सुबह ट्रेन ने 05:35 पर हैदराबाद डेक्कन का प्लेटफार्म छुआ तो जान में जान आई।
जैसे ही प्लेट्फार्म पर कदम रखा तो ठंटी बयार ने जोरदार स्वागत किया, अनुमानत: 35-40 किलोमीटर प्रति घंटे की
रफतार रही होगी। वो तो भला हो हमारे बैग का जिसका वजन हमें हमें सँभाले रखा वरना
बिना ऑटो के ही घर पहुँच जाते।ख़ैर अब घऱ पर आराम फरमा रहें है। थोड़ा आराम है किंतु
जब खाँसी आती है तो पूरी बॉडी कभी शेर कभी मुक्तक कभी कविता कभी ग़ज़ल क़ी तरह पटक
पटक क़े प्यार देती है।
कित्ता आनंद आ रहा है 😜😜😜
-प्रदीप देवीशरण
भट्ट-12.08.2022
उपाध्यक्ष, “शब्दाक्षर”,
तेलांगना ईकाइ, हैदराबाद