Wednesday, 27 July 2022

" एक ख़ूबसूरत भीगी भीगी शाम "

“एक खूबसूरत भिगी भिगी शाम”

पिछले 10 दिनों से हैदराबाद शहर को वर्षा रानी ने  तर- ब -तर किया हुआ है। आप कहीं अन्यत्र घूमने जाना भी चाहें तो जा नहीं सकते सो हम भी सिवाय भारत सरकार क़ी ड्यूटी बजाने क़े अतिरिक्त अगर कुछ कर पा रहे थे तो वो था घऱ में भरपूर आराम, उमड़ते घुमड़ते बादलों को बरसते देखना,कुछ देर उनका रुकना (शायद बादल पानी भरने गये होंगे - बचपन में हम यही अंदाज़ा लगाते थे) फ़िर पहले से भी ज्य़ादा ज़ोर से गर्जना और बरसना। इसके अतिरिक्त अगर कुछ था तो वो वर्चुअल मीटिंग अटेंड करना (मैं तो बुरी तरह पक गया हूँ।) किंतु कुछ नियर व डियर मित्रों का आग्रह टालना संभव नहीं होता। 
मैं सोमवार 18:07:2022 को अभी ऑफिस पहुँचा ही था तभी एक परिचित क़ी फ़ोन कॉल आई। दूसरी ओर गोविंद मिश्र जी थे नमस्कार चमत्कार के उपरांत उन्होंने सूचित किया क़ी शुक्रवार दिनांक :22:07:2022 को होटेल प्लेटिमा हिमायत नगर में उनक़े ग़ज़ल संग्रह “ जलती आँते “    का विमोचन है, अनुरोध है आप ज़रूर पधारें।मैंने कहा अवश्य गोविंद जी आप अग्रज हैं, मैं अवश्य उपस्थित रहूँगा। दो दिनों बाद उन्होंने फ़िर स्मरण कराने हेतु सूचित किया साथ ही सुहास भटनागर का दूरभाष भी माँगा  साथ ही प्रार्थना क़ी कि आप उन्हें भी लेकर आवें ,वे आपके अच्छे मित्र हैं आपको तो मना नहीं करेंगे। मैंने नंबर देने के उपरांत उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं उन्हें ले आऊँगा। शुक्रवार सुबह फ़िर उन्होंने स्मरण कराया और बताया कि सुहास जी ने आने में असमर्थता प्रकट क़ी है क्यों कि उन्हें किसी अन्य कार्यक्रम में जाना है। मैंने कहा जी उन्होंने मुझे भी इस बारे में सूचित किया है किंतु मैंने आपसे वादा किया है तो आप निश्चिंत रहें मैं अवश्य आऊँगा। गोविंद जी ने बोले कल रात से जिस हिसाब से बारिश हो रही है तो मुझे लगा आप भी कुछ लोगों क़ी तरह आने में असमर्थता व्यक्त कर पल्ला झाड़ लेंगे। मैंने कहा मिश्र जी हैदराबाद मैं  पिछले साढ़े तीन साल से हूँ और मैं आज पहली बार घऱ से छाता लेकर आया हूँ। निश्चिंत रहिए कोई पहुँचे न पहुँचे मैं अवश्य पहुँचूंगा।   
बारिश तो बारिश ठहरी वो भी आज हमारी परीक्षा लेने पर तुली थी। ख़ैर ऑफीस से निकले मेट्रो स्टेशन तक पैदल फ़िर मेट्रो ली अमिर पेट चेंज क़ी असेंबली उतरे ऑटो लिया और लीजिए हुज़ूर लेफ़्ट साइड से पूरे भीगते हुए 18:40 होटेल पहुँच गये। चौथी मंज़िल क़े हॉल में कार्यक्रम का इंतेजामात किया गया था। कुछ परिचित चेहरे देखकर दुआ सलाम हुई।गोविंद जी देखते ही आत्म विभोर हो गये मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर काफ़ी देर तक शुक्रिया अदा करते रहे। तदुपरांत सुनीता लुल्ला जी ,प्रिय संतोष पाण्डेय प्रिय विनोद से मुलाक़ात हुई।मुझे मिलाकर कुल ग्यारह लोग। हॉल क़ी क्षमता लगभग 70-80 बाहर वर्षा रानी झूम झूम कर हवा संग नाच रही हैं। तभी हॉल में वर्षा शर्मा जी ने प्रवेश किया। कुछ देर बात फ़ुर्सत मिलने पर उनसे मुलाक़ात हुई तो हमने थोड़ा हास्य बिखेरते हुए कह दिया 'बाहर भी आप अंदर भी आप' रब मेहर करें।
कोरोना काल में वर्चुअल माध्यम से जिनसे परिचय हुआ है वर्षा शर्मा उनमें से एक हैं। लगभग साढ़े सात बजे कार्यक्रम जैसे तैसे शुरू हुआ। प्रिय संतोष पाण्डेय ने संचालन संभाला (जिनको करना था शायद उन्हें अन्य क़े साथ वर्षा रानी ने आने न दिया हो) थोड़ी बहुत परेशानी क़े बाद संतोष ने अच्छी तरह मंच संभाल लिया ये और बात क़े कुछ लोगों क़े नाम वे भूल गये या गलत नामों से सम्बोधित कर बैठे। 😜ऐसा होता है मुझे 2001 में आंध्र भवन में अपनी पहली एंकरिंग याद हो आई।मंच पर ओम प्रकाश आदित्य, अशोक चक्रधर जी के साथ दो तीन कवि और थे। सरला माहेश्वरी जो कि दूरदर्शन में हिंदी की न्यूज़ रीडर थी हमारे (खादी और ग्रामोद्योग आयोग) सभी कार्यक्रमों का संचालन वे ही करती थीं, भयंकर बारिश होने के कारण नहीं आ सकी और हमारे डायरेक्टर साहब ने बुलाया और आदेश हो गया कि चूँकि तुम भी कवि हो (उस कार्यक्रम में नही था) तो संचालन तुम ही करो। मैंने जब सारी वस्तु स्थिति अशोक जी को बताई और ये भी बताया कि मैंने इससे पहले कभी किसी भी कार्यक्रम का संचालन नहीं किया है इस कारण दुविधा में हूँ तो अशोक जी ने पीठ थपथपाते हुए कहा, कोई बात नही कुछ इधर उधर होगा तो हम सम्भाल लेंगे आप शुरु करें। निश्चित उनका वो स्नेह और आत्मीय व्यव्हार मेरे मन को छू गया। शुरु में कुछ गडबड हुई किंतु फिर जो मैंने लय पकडी तो बाद में ओम प्रकाश आदित्य बोले और कितना अच्छा संचालन करना चाह्ते हो। खैर कार्यक्रम के बाद मैंने संतोष को वही घटना सुनाई और वही व्यव्हार उन्हें दिया जो अशोक जी और ओम प्रकाश जी ने मुझे दिया था। 
कार्यक्रम के प्रथम भाग में मंच पर आसीन सभी लोगों का बारी बारी से सम्मान किया गया । ततपश्चात गोविंद मिश्र जी की पुस्तक “ जलती आँते “ का लोकार्पण हम सभी मंचासीन लोगों द्वारा किया गया। कार्यक्रम के दूसरे भाग में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें उमा सोनी, विनोद, प्रिय संतोष पाण्डेय, वर्षा शर्मा, सुनीता लूल्ला, गोविंद मिश्र और मैंने भी अपना एक गीत प्रस्तुत किया। अच्छी बात ये रही कि दूसरे सत्र में काफी लोग भीगते भागते कार्यक्रम में आ पहुँचे थे जिससे हाल भर सा ही गया। मुझे यह कहने में कोई संकोच नही कि सबसे अच्छी प्रस्तुति वर्षा शर्मा की रही। उन्होंने गीत में जिस प्रकार से विशुद्ध हिंदी भाषा को प्रयोग किया वह सराहनीय है। उनकी आवाज़ काफी अच्छी है। माँ सरस्वती की उन पर कृपा है । मैंने कार्यक्रम के अंत में उनको सलाह भी दी कि यदि वे थोडा सा प्रयास करें तो वे अच्छी संचालिका हो सकती हैं। वर्षा रानी बाहर अब भी गाजे बाजे के साथ बरस रही थीं। खैर “भूखे भजन न होय गोपाला” साढे नौ बजते बजते खाना शुरु और तृप्त होकर हम निकल पडे घर की ओर लेकिन ये क्या  बूंदा बांदी अभी भी चालू थी। आटो वालों को हाथ दो तो वो हमारी तरफ देखे बिना ही भागे जा रहे थे। इंतेज़ार करते करते साढे दस और हमने सोचा और इंतेज़ार करने से बेहतर है पैदल ही चलते हैं। सो छ्तरी के नीचे किशोर दा का गाना “ तूने हमें क्या दिया री ज़िंदगी” गुनगुनाते हुए टूम्बक टू टूम्बक टू लिबर्टी चौक तक आ पहुँचे। तभी एक ऑटो ने पूछा कहाँ जाना है हमने कहा नामपल्ली छोड दोगे, इससे पहले कि वो पैसे बताता हमने कहा चलो, उसने पीछे मुडकर हमें देखा तो हम छतरी बंद कर मुस्कुराते हुए नज़र आए। वो भी मुस्कुराया और पंद्रह मिनिट के बाद हम नामपल्ली, गाँधी भवन मेट्रो छोड दिया। हमने उतरते हुए पूछा क्या सेवा करें हुज़ूर, शायद उसे ऐसे सम्बोधन की अपेक्षा न थी सो हाथ जोडकर बोला जो आप ठीक समझें, हमने कहा फिर भी, तो बोला अस्सी रुपये हमने मुस्कुराते हुए उसके हाथ में सौ का नोट धर दिया, इससे पहले कि वो पैसे वापिस देता हमने कहा अस्सी आपके और बाकी आपकी मुस्कुराहट के। हम भी खरामा खरामा घर की ओर एक खूबसूरत शाम की यादों के संग चल दिये।

-प्रदीप देवीशरण भट्ट- 27.07.2022